1.SHREE AADI YOGI TEMPLE ( ISHA FOUNDATION ) KOYAMBTOOR
2.RAMESHWARAM
3.RANGNATH SWAMI TEMPLE
4.OOTI HILL STATION
5.BRIDHDESHWAR TEMPLE
6.SHREE MALLIKARJUN JYOTIRLING
7.MEENAXI TEMPLE ( MADURAI)
8.SUDHDESHWAR SHIVA TEMPLE
9.SHREE PADMANABH SWAMI TEMPLE ( TRIVENDRAM, KERALA )
10. KOVLAM BEACH
11.KANYAKUMARI
12.GURUWAYAR TEMPLE
13.SHREE TIRUPATI BALAJI
14.PADMAVATI TEMPLE
15.VARAH LUXMI TEMPLE ( VISAKHAPATNAM)
16.NARSINGH AWATAR TEMPLE
17.VISAKHAPATNAM
1. FROM :- 20-05-2025 TO 28-05-2025
2. FROM :- 09-05-2025 TO 23-05-2025
3. FROM :- 16-09-2025 TO 02-10-2025
4. FROM :- 18-10-2025 TO 01-11-2025
5. FROM :-18-11-2025 TO 01-12-2025
Boarding Stations:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Deboarding Stations:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Departure Train:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Drop Train:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Sleeper Rate24500
AC2 Rate38500
AC3 Rate32500
Flight Rate48500
दक्षिण भारत स्पेशल पैकेज यात्रा 2025
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👉1.आदियोगी
👉2.तिरुपति बालाजी,
जिन्हें भगवान वेंकटेश्वर, गोविंदा या श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है,
दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के तिरुमला पहाड़ियों पर स्थित हैं। यह स्थान हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है।
यहाँ तिरुपति बालाजी मंदिर का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1. मंदिर का नाम
श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (Shri Venkateswara Swamy Temple)
2. स्थान
तिरुमला, जिला तिरुपति, राज्य आंध्र प्रदेश, भारत।
3. भगवान कौन हैं?
भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। वे कलियुग में भक्तों के दुख हरने वाले देवता माने जाते हैं।
4. विशेषता
यह मंदिर दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है।
रोज़ लाखों की संख्या में भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
यहाँ मुंडन (बाल चढ़ाने की परंपरा) विशेष महत्व रखती है।
भगवान को लड्डू प्रसादम चढ़ाया जाता है जो बहुत प्रसिद्ध है।
5. इतिहास और मान्यता
कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर ने कलियुग में लोगों के उद्धार के लिए तिरुमला में वास किया।
यह मंदिर हजारों साल पुराना है और इसे पल्लव, चोल, और विजयनगर साम्राज्य जैसे राजाओं ने भव्य रूप दिया।
6. दर्शन व्यवस्था
मंदिर प्रशासन Tirumala Tirupati Devasthanams (TTD) द्वारा किया जाता है।
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से दर्शन की सुविधा है।
👉3.रामेश्वरम धाम
भारत के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है
और हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
रामेश्वरम धाम के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
1. धार्मिक महत्व:
यह भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ का प्रमुख मंदिर रामनाथस्वामी मंदिर है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और पूजा की थी।
यह धाम शिवभक्तों और वैष्णवों दोनों के लिए बहुत पवित्र है।
2. रामनाथस्वामी मंदिर:
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह मंदिर अपनी लंबी गलियारों (कॉरिडोर) और शानदार द्रविड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र कुण्ड (जलकुंड) हैं, जिनमें स्नान करना पापों को धोने वाला माना जाता है।
3. धार्मिक कथा:
जब भगवान राम ने रावण का वध किया, जो एक ब्राह्मण था, तब उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के LIYE
भगवान शिव की पूजा करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने गए, लेकिन देर हो जाने पर माता सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाया
जिसे रामेश्वरम लिंग कहा जाता है।
4. अन्य दर्शनीय स्थल:
धनुषकोडी: वह स्थान जहाँ से भगवान राम ने सेतु (रामसेतु) का निर्माण किया था।
राम झूला (Adam's Bridge): यह एक प्राकृतिक रेत की श्रृंखला है जो भारत को श्रीलंका से जोड़ती है और इसे ही रामसेतु कहा जाता है।
👉4.मीनाक्षी देवी
दक्षिण भारत की एक प्रमुख और पूजनीय देवी हैं, जिनका मुख्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै शहर में स्थित है
– जिसे मीनाक्षी अम्मन मंदिर कहा जाता है। आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं:
मीनाक्षी देवी का परिचय:
मीनाक्षी का अर्थ होता है "मछली की आंखों वाली" – मीना (मछली) + अक्षी (आंख)।
उन्हें शक्ति (देवी पार्वती) का अवतार माना जाता है।
मीनाक्षी देवी भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और उन्हें सुंदरनेश्वर (शिव के रूप) की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
वे मदुरै की अधिष्ठात्री देवी हैं, और उन्हें एक महान योद्धा रानी के रूप में भी जाना जाता है।
मीनाक्षी देवी की कथा:
कथा के अनुसार, मीनाक्षी एक चमत्कारी राजकुमारी थीं, जो पांड्य वंश के राजा मलयध्वज
और रानी कंचनामलाई से उत्पन्न हुई थीं।
जन्म के समय ही उनके शरीर से दिव्य तेज और तीन स्तन थे। यह भविष्यवाणी हुई थी कि जब वह
अपने पति को देखेंगी, तब तीसरा स्तन स्वयं गायब हो जाएगा।
वे बचपन से ही शक्तिशाली, बुद्धिमान और पराक्रमी थीं। उन्होंने युद्ध विद्या में पारंगत होकर कई राज्यों को जीता।
अंततः जब उन्होंने कैलाश पर भगवान शिव से युद्ध किया, तो शिव को देखते ही उनका तीसरा स्तन अदृश्य हो गया
और उन्हें ज्ञात हुआ कि यही उनके पति हैं।
बाद में शिव ने सुंदरनेश्वर रूप में उनसे विवाह किया और यही विवाह मीनाक्षी-सुंदरनेश्वर विवाह के रूप में
आज भी मदुरै में भव्य रूप से मनाया जाता है।
मीनाक्षी देवी मंदिर:
यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का भव्य उदाहरण है।
इसमें मीनाक्षी देवी और सुंदरनेश्वर (शिव) दोनों के लिए मुख्य गर्भगृह हैं।
मंदिर में 12 विशाल गोपुरम (प्रवेश द्वार) हैं, जिन पर सुंदर नक्काशी और रंगीन मूर्तियाँ हैं।
यह मंदिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
मीनाक्षी देवी की पूजा:
उन्हें शक्ति, समर्पण, विवाहिक सौभाग्य और साहस की देवी माना जाता है।
मीनाक्षी तिरुकल्याणम (मीनाक्षी विवाह महोत्सव) विशेष रूप से अप्रैल-मई के दौरान आयोजित होता है,
जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं
👉5.कन्याकुमारी
भारत के तमिलनाडु राज्य का एक प्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटन स्थल है, जो भारत के सबसे दक्षिणी छोर पर स्थित है।
यह स्थान तीन समुद्रों — बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर — के संगम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इसे "त्रिवेणी संगम" भी कहा जाता है।
यहाँ कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं:
1. ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
देवी कन्याकुमारी मंदिर: यह मंदिर देवी पार्वती के एक रूप कन्याकुमारी को समर्पित है।
मान्यता है कि देवी ने यहाँ भगवान शिव से विवाह के लिए तपस्या की थी।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल: यह स्मारक उस चट्टान पर बना है जहाँ स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था।
यह स्थान आत्मचिंतन और प्रेरणा के लिए प्रसिद्ध है।
गांधी स्मारक: महात्मा गांधी की अस्थियाँ यहाँ कुछ समय के लिए रखी गई थीं। यहाँ सूर्य की किरणें गांधी जी की
अस्थियों पर हर साल 2 अक्टूबर को सीधी पड़ती हैं।
2. प्राकृतिक सौंदर्य
सूर्योदय और सूर्यास्त: कन्याकुमारी का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत सुंदर माना जाता है, खासकर जब समुद्र साफ होता है।
थ्री सी पॉइंट (Three Sea Point): यहाँ खड़े होकर एक साथ तीन समुद्रों को देखा जा सकता है।
3. संस्कृति और विरासत
कन्याकुमारी विविध संस्कृतियों का संगम है। यहाँ तमिल, मलयालम और अन्य दक्षिण भारतीय संस्कृतियों
का प्रभाव देखने को मिलता है। यह स्थान कला, साहित्य और अध्यात्म का केंद्र भी है।
👉6.पद्मनाभस्वामी मंदिर
भारत के केरल राज्य के त्रिवेन्द्रम (तिरुवनंतपुरम) शहर में स्थित एक अत्यंत प्रसिद्ध और रहस्यमयी
हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भगवान विष्णु के 'अनंतशायी' स्वरूप को समर्पित है, जिसमें भगवान विष्णु शेषनाग पर लेटे हुए हैं।
यह मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर की प्रमुख विशेषताएँ:
1. इतिहास और वास्तुकला:
यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला शैली में बना हुआ है, जो दक्षिण भारत के मंदिरों की एक प्रमुख पहचान है।
यह मंदिर सदियों पुराना है और कहा जाता है कि इसका उल्लेख कई पुराणों में भी मिलता है।
2. भगवान की मूर्ति:
मुख्य मूर्ति में भगवान विष्णु शेषनाग (अनंत) पर शयन मुद्रा में हैं। इस मुद्रा को 'अनंतशायी विष्णु' कहते हैं।
मूर्ति इतनी विशाल है कि उसे तीन दरवाजों से देखा जाता है—सिर, नाभि और पैर के भाग अलग-अलग द्वारों से दिखते हैं।
3. समृद्धि और रहस्य:
वर्ष 2011 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर के तहखानों को खोला गया, तो उनमें से अरबों रुपये की संपत्ति जैसे सोने,
हीरे, कीमती आभूषण, प्राचीन मूर्तियाँ आदि मिले।
सबसे रहस्यमय तहखाना है Vault B (कक्ष B), जिसे आज तक नहीं खोला गया है। ऐसा कहा जाता है कि इसे खोलने पर संकट आ सकता है,
और यह नाग रक्षा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
4. प्रशासन:
मंदिर का प्रबंधन पहले त्रावणकोर राजपरिवार द्वारा किया जाता था।
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक विशेष ट्रस्ट इसका संचालन करता है।
5. धार्मिक महत्त्व:
पद्मनाभस्वामी मंदिर 108 दिव्य देशमों में से एक है, जो वैष्णव संप्रदाय के लिए
सबसे पवित्र स्थानों में गिना जाता है।
👉7.श्री मल्लिकार्जुन
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं और यह मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम
(Srisailam) नामक स्थान पर स्थित है। इसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग या श्रीशैल मल्लिकार्जुन भी कहा जाता है।
इस पवित्र स्थल को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है।
विशेषताएं:
1. देवता:
भगवान शिव (मल्लिकार्जुन) और देवी पार्वती (भ्रामराम्बा) की यहां संयुक्त पूजा होती है।
मल्लिकार्जुन = 'मल्लिका' (चमेली) + 'अर्जुन' (शिव का रूप)
यह इकलौता ज्योतिर्लिंग है जहाँ शिव और शक्ति दोनों एक साथ पूजित हैं।
2. स्थान:
श्रीशैल पर्वत, नल्लमाला वनों के बीच, कृष्णा नदी के किनारे बसा है।
3. पौराणिक कथा:
भगवान शिव और माता पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय को मनाने के लिए श्रीशैल पर्वत पर आए थे।
कार्तिकेय ने गुस्से में कैलाश छोड़ दिया था। माता-पिता के आने से वे प्रसन्न हुए और वहीं रहने लगे। इसलिए यह स्थल अति पावन माना जाता है।
4. भ्रमराम्बा शक्तिपीठ:
यहाँ देवी सती का गला गिरा था, इसलिए यह शक्ति पीठ भी है।
यानी यह स्थान ज्योतिर्लिंग + शक्ति पीठ दोनों का संगम है।
5. त्योहार और मेले:
महाशिवरात्रि
नवरात्रि
श्रावण मास में विशेष पूजा होती है।
👉8.ऊटी,
जिसे उदगमंडलम या ऊटकमंड के नाम से भी
जाना जाता है, तमिलनाडु में नीलगिरी पहाड़ियों में बसा एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है। इसे "हिल स्टेशनों की रानी" भी कहा जाता है। यहाँ की खास बातें:स्थान: नीलगिरी जिले में, समुद्र तल से लगभग 2,240 मीटर की ऊँचाई पर।जलवायु: ठंडी और सुखद, साल भर तापमान 5°C से 25°C के बीच। गर्मियों में भी राहतभरी ठंडक।प्राकृतिक सौंदर्य: चाय के बागान, घने जंगल, झीलें, और पहाड़ी दृश्य। ऊटी झील, बोटैनिकल गार्डन,
और डोड्डाबेट्टा पीक प्रमुख आकर्षण।पर्यटन स्थल:ऊटी झील: बोटिंग के लिए प्रसिद्ध।बोटैनिकल गार्डन: 1848 में स्थापित, दुर्लभ पौधों का संग्रह।डोड्डाबेट्टा पीक: नीलगिरी का सबसे ऊँचा शिखर, ट्रेकिंग और मनोरम दृश्य।रोज गार्डन: रंग-बिरंगी गुलाबों की किस्में।
नीलगिरी माउंटेन रेलवे: यूनेस्को विश्व धरोहर,
मेट्टुपलयम से ऊटी तक शानदार यात्रा।गतिविधियाँ: ट्रेकिंग, बोटिंग, घुड़सवारी, और प्रकृति भ्रमण।
संस्कृति: स्थानीय टोडा जनजाति की अनूठी संस्कृति और हस्तशिल्प।खानपान: दक्षिण भारतीय व्यंजन, स्थानीय चाय, और होममेड चॉकलेट्स प्रसिद्ध।यात्रा का समय: अप्रैल-जून (गर्मी) और सितंबर-नवंबर (मानसून के बाद) सबसे अच्छा।
👉9.बृहदेश्वर मंदिर,
जिसे पेरुवुडையार कोविल या तंजौर बिग टेम्पल भी कहा जाता है, तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित एक ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी में चोल वंश के राजा राजाराज चोल प्रथम (985-1014 ई.) द्वारा बनवाया गया था और यह भगवान शिव को समर्पित है। इसे यूनेस्को ने 1987 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।प्रमुख विशेषताएँ:स्थापत्य शैली:मंदिर द्रविड़ स्थापत्य का शानदार उदाहरण है। इसका विशाल विमानम (गोपुरम के ऊपर का शिखर) 216 फीट ऊँचा है, जो इसे अपने समय का सबसे ऊँचा मंदिर बनाता है।शिखर पर 80 टन वजनी एकाश्म (एकल पत्थर) का गुंबद है, जिसे 6 किमी लंबे रैंप से चढ़ाया गया था।
मंदिर का निर्माण पूरी तरह ग्रेनाइट से किया गया, जो स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं था और सैकड़ों किलोमीटर दूर से लाया गया।मुख्य संरचना:मंदिर का गर्भगृह विशाल शिवलिंग का घर है, जिसे पेरुवुडையार (महान स्वामी) कहा जाता है।नंदी मंडपम में 12 फीट ऊँचा और 25 टन वजनी नंदी बैल की एकाश्म मूर्ति है।मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर और भित्तिचित्र हैं, जो चोल कला और संस्कृति को दर्शाते हैं।चित्रकला और शिल्पकला:मंदिर की दीवारों पर चोल काल की भित्तिचित्र और मूर्तिकला देखने योग्य हैं। इनमें शिव के विभिन्न रूप, नृत्य करती अप्सराएँ
और पौराणिक कथाएँ चित्रित हैं।शिलालेखों में
राजाराज चोल के शासन, दान और मंदिर प्रशासन की जानकारी मिलती है।सांस्कृतिक महत्व:यह मंदिर चोल साम्राज्य की समृद्धि, धार्मिक भक्ति और स्थापत्य
कौशल का प्रतीक है।यह आज भी एक सक्रिय
पूजा स्थल है, जहाँ वार्षिक उत्सव और नृत्य समारोह आयोजित होते हैं।मंदिर की 1000वीं वर्षगांठ 2010 में धूमधाम से मनाई गई।रोचक तथ्य:मंदिर का शिखर इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि उसकी छाया दिन के किसी भी समय ज़मीन पर नहीं पड़ती।यह भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है और इसे "दक्षिण भारत का मेरु" भी कहा जाता है।
👉10.रंगनाथ स्वामी मंदिर,
जिसे श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के तमिलनाडु राज्य में तिरुचिरापल्ली (त्रिची) के पास श्रीरंगम में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्री रंगनाथ (रंगनाथ स्वामी) को समर्पित है और वैष्णव संप्रदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर 108 दिव्य देशमों में से प्रमुख है, जो वैष्णव भक्तों के पवित्र स्थल हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थान और संरचना:मंदिर कावेरी
नदी के तट पर श्रीरंगम द्वीप पर स्थित है।यह भारत का सबसे बड़ा मंदिर परिसर है, जो 156 एकड़ में फैला हुआ है।मंदिर में 7 प्राकार (परकोटे) हैं, जो सात दीवारों से घिरे हैं, और 21 गोपुरम (मंदिर के प्रवेश द्वार) हैं। मुख्य गोपुरम, जिसे राजगोपुरम कहते हैं, 73 मीटर ऊँचा है और दक्षिण भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
वास्तुकला:मंदिर द्रविड़ शैली में बना है, जिसमें जटिल नक्काशी और भव्य संरचनाएँ हैं।इसका निर्माण चोल, पांड्य, होयसला और विजयनगर राजवंशों के शासनकाल में हुआ, जिसके कारण इसमें विभिन्न कालों की स्थापत्य कला का समन्वय देखने को मिलता है।धार्मिक महत्व:यह मंदिर वैष्णव आचार्य रामानुजाचार्य से गहराई से जुड़ा है, जिन्होंने यहाँ अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताया और श्रीवैष्णव संप्रदाय को मजबूत किया।मंदिर में
स्थापित भगवान रंगनाथ की मूर्ति स्वयंभू (स्वयं प्रकट) मानी जाती है।यहाँ का आज़ीवार रामानुज संप्रदाय देश भर में प्रसिद्ध है।त्योहार और उत्सव:वைகुंठ एकादशी: यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव है, जिसमें लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।आदिब्रह्मोत्सव और ज्येष्ठाभिषेक भी महत्वपूर्ण उत्सव हैं।
मंदिर में साल भर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव आयोजित होते हैं।इतिहास:मंदिर का इतिहास 10वीं शताब्दी से भी पुराना माना जाता है, हालाँकि इसका विस्तार और पुनर्निर्माण कई शताब्दियों तक चला।इसे चोल, पांड्य और विजयनगर राजाओं ने संरक्षण प्रदान किया।मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणों के दौरान
मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए इसे विभिन्न स्थानों पर ले जाया गया था।अन्य जानकारी:मंदिर में भक्तों के लिए दर्शन सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक उपलब्ध होते हैं, हालांकि समय में बदलाव हो सकता है।
यहाँ का अन्नदानम (नि:शुल्क भोजन) कार्यक्रम भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें रोज़ाना हज़ारों भक्तों को भोजन कराया जाता है।मंदिर के आसपास का श्रीरंगम क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है।
👉11.गुरुवायूर मंदिर,
जिसे गुरुवायूर श्रीकृष्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के केरल राज्य के त्रिशूर जिले में गुरुवायूर शहर में स्थित एक प्राचीन और प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है।
यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिन्हें यहाँ गुरुवायूरप्पन के रूप में पूजा जाता है। इसे दक्षिण की द्वारका भी कहा जाता है, और यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है।
मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथाप्राचीनता: गुरुवायूर मंदिर को लगभग 5000 साल पुराना माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इसका निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया था, और इसे इस तरह बनाया गया कि सूर्य की पहली किरणें भगवान के चरणों पर पड़ें।
पौराणिक कथा: एक कथा के अनुसार, कलयुग की शुरुआत में देवगुरु बृहस्पति और वायु देव को भगवान श्रीकृष्ण की एक मूर्ति मिली, जो द्वारका की बाढ़ में बहकर आई थी। भगवान शिव के निर्देश पर उन्होंने इस मूर्ति को गुरुवायूर में स्थापित किया। मंदिर का नाम गुरु (बृहस्पति) और वायु के संयोजन से पड़ा।पुनर्निर्माण: मंदिर का कुछ हिस्सा 1638 में पुनर्निर्मित किया गया था।
मंदिर की विशेषताएँमुख्य देवता: मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की बाल गोपाल रूप में पूजा की जाती है, जिन्हें उन्नीकृष्णन भी कहा जाता है। मूर्ति के चार हाथ हैं, जिनमें शंख, सुदर्शन चक्र, कमल और गदा धारण किए गए हैं। यह मूर्ति मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना है।वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक केरल शैली में है। यह अपनी सादगी और भव्यता के लिए जाना जाता है।
प्रवेश नियम: मंदिर में केवल हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति है, और पुरुषों को पारंपरिक मुंडू (लुंगी) और महिलाओं को साड़ी या सलवार सूट पहनना अनिवार्य है।महत्व और मान्यताएँधार्मिक महत्व: मंदिर को भूलोक वैकुंठ (पृथ्वी पर विष्णु का पवित्र निवास) माना जाता है। यह वैष्णव संप्रदाय के 108 अभिमान क्षेत्रों में से एक है।दान की प्रथा: यहाँ भक्त अपने वजन के बराबर वस्तुएँ (जैसे चावल, चीनी, या सोना) दान करते हैं, जो एक विशेष परंपरा है।मम्मियूर शिव मंदिर: मान्यता है कि गुरुवायूर मंदिर में पूजा के बाद पास के मम्मियूर शिव मंदिर में पूजा करने से तीर्थ पूर्ण होता है।उत्सव और पूजाजन्माष्टमी: जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।एकादशी: शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है, और इस दिन भव्य उत्सव आयोजित होते हैं।कृष्णनट्टम: यह मंदिर कृष्णनट्टम (एक शास्त्रीय नृत्य-नाट्य कला) के लिए भी प्रसिद्ध है, जो मंदिर प्रशासन द्वारा संचालित संस्थान में सिखाई जाती है।विशेष पूजाएँ: मंदिर में कई विशेष पूजाएँ होती हैं, जिनके लिए शुल्क निर्धारित है। पूजा की विधि आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित तांत्रिक पद्धति पर आधारित है।अन्य विशेषताएँसुविधाएँ: मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त आते हैं, और उनके लिए निःशुल्क भोजन (प्रसाद) की व्यवस्था की जाती है।विवाह: मंदिर में नियमित रूप से विवाह समारोह आयोजित होते हैं, जिसके लिए पहले से पंजीकरण आवश्यक है।साहित्यिक महत्व: मंदिर नारायणीयम (मेल्पत्तूर नारायण भट्टतिरि) और ज्ञानाप्पना (पून्थानम) जैसे साहित्यिक ग्रंथों के लिए भी प्रसिद्ध है, जो गुरुवायूरप्पन के भक्तों द्वारा रचित हैं।
👉12.श्री वराह लक्ष्मी नरसिंह मंदिर,
जिसे सिंहाचलम मंदिर भी कहा जाता है, भारत के आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में सिंहाचलम पहाड़ी पर स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 300 मीटर की ऊंचाई पर है और भगवान विष्णु के वराह नरसिंह अवतार को समर्पित है। यह आंध्र प्रदेश के 32 नरसिंह मंदिरों में से एक है और तिरुपति बालाजी मंदिर के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।मंदिर का इतिहास और पौराणिक
कथापौराणिक कथा: मंदिर की कथा भक्त प्रह्लाद और उनके पिता, दानव राजा हिरण्यकशिपु से जुड़ी है। हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति के कारण मारने का प्रयास किया। भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार (आधा शेर, आधा मानव) में प्रकट होकर प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्यकशिपु का वध किया। प्रह्लाद ने ही इस मंदिर की स्थापना सत्य युग में की थी, ऐसा माना जाता है।ऐतिहासिक महत्व: मंदिर का वर्तमान स्वरूप 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा राजवंश के राजा नरसिंहदेव
प्रथम द्वारा बनवाया गया और उनके पुत्र भानुदेव प्रथम द्वारा 1268 ईस्वी में इसका अभिषेक किया गया। मंदिर में 11वीं शताब्दी के चोल राजा कुलोत्तुंग प्रथम के समय के शिलालेख भी मिलते हैं।वास्तुकलामंदिर की वास्तुकला कलिंग, चालुक्य, और चोल शैलियों का मिश्रण है। यह बाहर से किले जैसा दिखता है, जिसमें तीन प्राकार (बाहरी प्रांगण) और पांच द्वार हैं।मंदिर में एक पांच मंजिला राजगोपुरम, 96 स्तंभों वाला कल्याण मंडप, और 16 स्तंभों वाला मुखमंडपम है। नृत्यमंडपम में 96 काले पत्थर के स्तंभ हैं, जिनमें से कोई भी एक-दूसरे से समान नहीं है।
मंदिर में एक कप्पस्तंभम (इच्छा पूर्ति स्तंभ) है, जिसके बारे में मान्यता है कि इससे शुद्ध मन से मांगी गई मनोकामना पूरी होती है।मंदिर के पास गंगाधर नामक प्राकृतिक जल स्रोत और वराह पुष्करिणी तालाब है, जिन्हें पवित्र माना जाता है।मूर्ति और विशेषताएंमंदिर की मुख्य मूर्ति वराह नरसिंह की है, जो त्रिभंग मुद्रा में है। यह मूर्ति साल भर चंदन लेप से ढकी रहती है, जिससे यह शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। केवल अक्षय तृतीया के दिन (वैशाख मास) चंदन हटाया जाता है, और भक्त मूर्ति के मूल स्वरूप के दर्शन कर सकते हैं। यह दर्शन 12 घंटे (सुबह 4 बजे से शाम 4 बजे तक) के लिए उपलब्ध होता है।मूर्ति के दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां हैं, जो कमल लिए हुए हैं।मंदिर में चार मुख्य आभूषणों का उपयोग होता है: हीरे और माणिक का तिलक, पन्ना की माला, 100 तोला सोने का कंगन, और स्वर्ण मुकुट।उत्सव और अनुष्ठानचंदनोत्सवम: अक्षय तृतीया पर होने
वाला यह प्रमुख उत्सव है, जिसमें मूर्ति से चंदन हटाया जाता है और भव्य पूजा होती है।कल्याणोत्सव: यह भगवान वराह नरसिंह और उनकी पत्नी लक्ष्मी के विवाह का उत्सव है, जिसमें भक्तोत्सव और लक्ष्मी नारायण संवादम जैसे आयोजन होते हैं।मंदिर में रोजाना सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक और शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन होते हैं।नित्य अन्नदानम योजना के तहत प्रतिदिन लगभग 5000 भक्तों को मुफ्त भोजन (अन्न प्रसादम) वितरित किया जाता है।कैसे पहुंचेंहवाई मार्ग: विशाखापट्टनम हवाई अड्डा मंदिर से 15 किमी दूर है और देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है।रेल मार्ग: विशाखापट्टनम रेलवे स्टेशन 20 किमी दूर है, जहां से बस या टैक्सी उपलब्ध हैं।सड़क मार्ग: मंदिर तक नियमित बसें (6A, 28, 40, 55) उपलब्ध हैं। द्वारका बस स्टैंड और गजुवाका से भी बसें चलती हैं। निजी वाहनों के लिए शुल्क लागू है (जैसे, कार के लिए 20 रुपये)।मंदिर तक पहुंचने के लिए 40-50 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी आसान हैं।अन्य जानकारीदर्शन शुल्क: मंदिर में मुफ्त दर्शन के साथ-साथ 100 रुपये और 300 रुपये के विशेष दर्शन टिकट उपलब्ध हैं। 300 रुपये का टिकट मुख्य मूर्ति के करीब दर्शन की सुविधा देता है।प्रतिबंध: मोबाइल फोन, कैमरा, और जूते मंदिर के अंदर ले जाना निषिद्ध है। इनके लिए लॉकर सुविधा उपलब्ध है।आसपास के दर्शनीय स्थल: विशाखापट्टनम में कैलासगिरी हिलटॉप पार्क, आरके बीच, इंदिरा गांधी जूलॉजिकल पार्क, और कंबालकोंडा वन्यजीव अभयारण्य जैसे स्थान देखे जा सकते हैं।
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27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
उपरोक्त नियम व शर्तों से मैं पूर्णता सहमत हूँ।
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🍁 नियम एवं शर्ते🍁:-
1. अपना यात्रा कन्फर्म करने हेतु 5000 रु.स्टैण्डर्ड / 10,000 ₹ डीलक्स या 25% सहयोग राशि जमा करवाना अनिवार्य है
और बाकी शेष राशि यात्रा से 30 दिन पूर्व श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति आपने जिस संस्था में बुकिंग करायी है उस कार्यालय
संस्था में पूर्ण राशि जमा करवाना अनिवार्य होगा अन्यथा आपकी यात्रा निरस्त कर दी जायेगी।
2. यात्रा दिनांक के 2 से 5 दिन पूर्व संपूर्ण जानकारी संस्था से ले लेंगे अन्यथा इसकी जवाबदारी संस्था की नहीं रहेगी।
3. मैं अपनी स्वयं की इच्छा से बिना किसी दबाव एवं अपने पूर्ण होशो हवास के साथ श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति
इंडियन कॉफी हाउस के बगल में, टी. पी. नगर,कोरबा, छत्तीसगढ़ पिन नंबर :- 495677
के साथ यात्रा कर रहा/ रही हूँ।
4.एक माह पूर्व यात्रा निरस्त करने पर यात्रा की पूर्ण राशि का निरस्तीकरण प्रभार 10% लगेगा, यात्रा दिनांक के
15% दिन पूर्व 50% एवं 7 दिन पूर्व 75% पूर्ण राशि में काटौती होगी व यात्रा दिनांक 2 दिन पूर्व राशि वापस नहीं हो पायेगी।
वह राशि अगली यात्रा में स्थानांतरित हो जायेगी।
5. यात्रा के दौरान भोजन की व्यवस्था ट्रेन में की गई हैं। ट्रेन से बाहर यात्रा के दौरान जब कभी आप दर्शनीय स्थल पर रहेंगे
आपकी भोजन की व्यवस्था स्वयं की रहेगी।
6. 1 या 2 माह पूर्व कोई भी यात्रा की बुकिंग कराते है और किसी कारण वश आप यात्रा में नहीं जा पा रहे है।
यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
7. यात्रा करते समय आपकी अपनी ऑरिजनल आई डी. कार्ड जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, व्होटर आई डी कार्ड आदि रखना अनिर्वाय है।
अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
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