1.SHREE MAHAKALESHWAR JYOTIRLING
2.SHREE ONKARESHWAR JYOTIRLING
3.UJJAIN
4.SHREE SOMNATH JYOTIRLING
5.SHREE DWARIKADHISH
6.SHREE DWARIKABHENT
7.RUKHMANI TEMPLE
8.GOPI TALAB
9.SHREE NAGESHWAR JYOTIRLING
10.SHREE SHEERDI SAI BABA
11.SHREE SHANI SINGNAPUR
12.SHREE BHIMA SHANKAR JYOTIRLING
13.SHREE TRAMBIKESHWAR JYOTIRLING
14.SHREE GHRISHNESHWAR JYOTIRLING
15.NASIK
1. FROM :- 09-05-2025 TO 19-05-2025
2. FROM :- 13-09-2025 TO 23-09-2025
3. FROM :- 05-10-2025 TO 15-10-2025
4. FROM :- 18-10-2025 TO 28-10-2025
5. FROM :- 09-12-2025 TO 19-11-2025
:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
TRAIN NO. 18234 NARMADA EXPRESS
BILASPUR (11.45), USLAPUR (11.58), PENDRA ROAD (13.40) ANUPPUR JN (14.27)
SHAHDOL (15.22) UMARIA ( 16.34) KATNI SOUTH ( 18.40) JABALPUR ( 20.40)
Deboarding Stations:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
TRAIN NO.12809 HOWRAH MAIL
NAGPUR (11.55) DONGARGARH (14.19) DURG (15.25) RAIPUR JN (16.05) BILASPUR ( 16.10)
CHAMPA (19.13) SAKTI (19.35) RAIGARH (20.25
Departure Train:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
TRAIN NO. 18234 NARMADA EXPRESS
Drop Train:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
TRAIN NO.12809 HOWRAH MAIL
TRAIN NO.12151 LTT SHM SF EXPRESS
Sleeper Rate19500
AC2 Rate33500
AC3 Rate28500
Flight Rate43500
7 ज्योतिर्लिंग यात्रा 2025
🌞🌺🔱🌏🔱🌺🌞
केदार तीर्थ यात्रा आपको 7 ज्योतिर्लिंग यात्रा के लिए विश्वसनीय,
सुव्यवस्थित और आध्यात्मिक सेवाएं प्रदान करता है।
1.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में उज्जैन शहर में स्थित भगवान शिव का एक प्रमुख मंदिर है।
यह हिंदुओं के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
महाकालेश्वर का अर्थ है "काल (समय) के स्वामी", जो भगवान शिव का एक रूप है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थान: मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। उज्जैन प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
ज्योतिर्लिंग: मान्यता है कि यहाँ स्वयंभू (स्वयं प्रकट) ज्योतिर्लिंग है, जो भगवान शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
महाकाल का महत्व: यहाँ भगवान शिव को समय और मृत्यु का नियंत्रक माना जाता है। मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
भस्म आरती: महाकालेश्वर मंदिर की सबसे प्रसिद्ध परंपरा है भस्म आरती, जो प्रातःकाल में होती है। इसमें शिवलिंग को चिता की भस्म से सजाया जाता है।
यह अनुष्ठान अद्वितीय है और इसे देखने के लिए विशेष अनुमति चाहिए।उज्जैन का महत्व: उज्जैन को मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक माना जाता है।
यहाँ हर 12 वर्ष में कुंभ मेला (सिंहस्थ) भी आयोजित होता है।पौराणिक कथा:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में भगवान शिव ने
राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी। एक कथा में, राजा चंद्रसेन के अनुरोध पर शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। एक
अन्य कथा में, चार ब्राह्मण भाइयों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ स्थायी रूप से निवास किया।मंदिर की संरचना:मंदिर का मुख्य
शिवलिंग गर्भगृह में है, जो भूमिगत स्तर पर स्थित है।मंदिर परिसर में पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नागेश्वर जैसे अन्य देवताओं के मंदिर भी हैं।मंदिर का शिखर और वास्तुकला दक्षिण भारतीय और मराठा शैली का मिश्रण है।धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति मिलती है।
सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशेष पूजा और उत्सव होते हैं।मंदिर में सिद्धियों और तंत्र-मंत्र से संबंधित पूजा भी की जाती है।
दर्शन और व्यवस्था:मंदिर में दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग उपलब्ध है, विशेषकर भस्म आरती के लिए।सामान्य दर्शन सुबह और
शाम के समय खुले रहते हैं।मंदिर प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था भी की जाती है
2.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश में खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे "ओंकारेश्वर" (ॐ के स्वरूप) के नाम से जाना जाता है।
इसकी विशेषता यह है कि यहाँ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना हुआ है, जिसे स्वयंभू माना जाता है।
महत्व और पौराणिक कथा:नाम का अर्थ: "ओंकारेश्वर" का अर्थ है "ॐ का स्वामी"। यहाँ का शिवलिंग ॐ के आकार का प्रतीत होता है,
जो हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।पौराणिक कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार,
एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध के दौरान, विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ प्रकट हुए। एक अन्य कथा में,
राजा मान्धाता ने यहाँ तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ निवास किया।ममलेश्वर: ओंकारेश्वर के साथ
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी जुड़ा है, जो नर्मदा के दूसरी ओर स्थित है। दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का हिस्सा माना जाता है।
मंदिर और स्थान:मंदिर नर्मदा नदी के बीच मंधाता द्वीप पर स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा है। द्वीप का आकार ॐ जैसा दिखता है।
यहाँ नर्मदा नदी को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और श्रद्धालु स्नान कर पूजा करते हैं।मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अलावा अन्य छोटे मंदिर भी हैं,
जैसे ममलेश्वर मंदिर।धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होता है, ऐसी मान्यता है।श्रावण मास, महाशिवरात्रि,
और कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।नर्मदा परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु यहाँ अवश्य रुकते हैं।
नर्मदा नदी का सुंदर घाट और नौका विहार।पास में सिद्धनाथ मंदिर, काजल रानी गुफा, और 24
अवतार मंदिर जैसे दर्शनीय स्थल।मंधाता पहाड़ी से नर्मदा और आसपास का मनोरम दृश्य।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ की शांति और पवित्रता भक्तों को आकर्षित करती
3.सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के गुजरात राज्य में प्रभास पाटन, सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम और सबसे प्रमुख माना जाता है।
इसका उल्लेख ऋग्वेद, स्कंद पुराण और श्रीमद्भागवत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।महत्व:पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार, चंद्रमा (सोम) ने
भगवान शिव की तपस्या कर श्राप से मुक्ति पाई थी। उनकी कृतज्ञता में यह ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ, जिसे "सोमनाथ" (चंद्रमा का स्वामी) कहा गया।
आध्यात्मिक महत्व: यह शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है, जो मोक्ष और आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है।इतिहास:सोमनाथ मंदिर का
निर्माण प्राचीन काल में हुआ था, जिसे कई बार विदेशी आक्रमणकारियों (जैसे महमूद गजनवी, 1026 ई.) ने नष्ट किया।
वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 1951 में सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से हुआ, जो चालुक्य शैली में बना है।मंदिर का शिखर 50 मीटर ऊंचा है,
और यह समुद्र तट पर स्थित है, जो इसे और भी भव्य बनाता है।विशेषताएं:स्थापत्य कला: मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से हुआ है,
जिसमें जटिल नक्काशी और भव्य गर्भगृह शामिल हैं।प्रकाश और ध्वनि शो: रोजाना शाम को मंदिर परिसर में एक शो आयोजित होता है,
जो मंदिर के इतिहास को दर्शाता है।तीर्थ यात्रा: श्रावण मास, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
दर्शन और पूजा:मंदिर में तीन बार आरती होती है: प्रातः, मध्याह्न और संध्या।ज्योतिर्लिंग के दर्शन और अभिषेक के लिए विशेष व्यवस्था है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
यह भारतीय सनातन धर्म की अमरता और पुनर्जनन का प्रतीक है।
4.द्वारकाधीश
द्वारकाधीश
द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम है, जिसका अर्थ है "द्वारिका का राजा"।
वे द्वारिका नगरी के संस्थापक और शासक थे।गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यह मंदिर चार धामों में से एक (पश्चिम दिशा का धाम) माना जाता है।मंदिर का मुख्य आकर्षण है द्वारकाधीश की मूर्ति,
जो काले पत्थर से बनी है और भगवान कृष्ण को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाती है, जिसमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं।
यह मंदिर भक्ति, भव्यता और प्राचीन वास्तुकला का प्रतीक है।
यहाँ साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
5.द्वारिका भेंट
द्वारिका भेंट का तात्पर्य आमतौर पर द्वारिका नगरी और द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से है।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका श्रीकृष्ण द्वारा समुद्र तट पर बसाई गई थी।
महाभारत में वर्णित इस नगरी को कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद स्थापित किया था,
ताकि यदुवंशियों को जरासंध के आक्रमणों से बचाया जा सके।द्वारिका को "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता था,
क्योंकि यह समृद्धि और वैभव का केंद्र थी।
आज यह स्थान पुरातात्विक और धार्मिक महत्व का है, क्योंकि यह माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी।
द्वारिका भेंट में भक्त न केवल द्वारकाधीश मंदिर जाते हैं, बल्कि नजदीकी पवित्र स्थलों जैसे बेट द्वारिका
(एक द्वीप, जहाँ कृष्ण का प्राचीन निवास था),
गोमती नदी का तट, और रुक्मिणी मंदिर के दर्शन भी करते हैं।द्वारिका भेंट का महत्वयह यात्रा भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और
भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।यहाँ की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,
क्योंकि द्वारिका चार धामों में शामिल है।
द्वारिका की प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तट और पौराणिक महत्व इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं।
6.रुक्मिणी मंदिर
गुजरात के द्वारका शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है।
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
रुक्मिणी को भगवान कृष्ण ने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में उनकी इच्छा के विरुद्ध हरण कर विवाह किया था।
एक कथा के अनुसार, रुक्मिणी ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा के दौरान जल लेने के लिए एक ब्राह्मण को बुलाया, जिससे भगवान कृष्ण नाराज हो गए।
इससे रुक्मिणी को अलग मंदिर में रहना पड़ा, जो आज रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है।स्थापत्य और विशेषताएं:मंदिर की वास्तुकला नागर शैली में है,
जिसमें सुंदर नक्काशी और एक ऊंचा शिखर (गोपुरम) शामिल है।मंदिर में देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित है,
जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं।मंदिर परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।
धार्मिक महत्व:यह मंदिर भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक है।यहाँ विशेष रूप से विवाह और दांपत्य जीवन की
सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।एकादशी, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
अन्य रोचक तथ्य:मंदिर के पास एक कुआँ है, जिसके जल को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं,
लेकिन यह खारा है, जो एक पौराणिक श्राप से जोड़ा जाता है।
7.गोपी तालाब
गुजरात के द्वारका शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटा, प्राचीन, और पौराणिक जलाशय है,
जो हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह तालाब भगवान श्री कृष्ण और गोपियों की कथाओं से गहराई से जुड़ा है,
जिसके कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।इतिहास और
पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण वृंदावन से द्वारका आए, तो गोपियाँ,
जो उनकी भक्त और प्रेमी थीं, उनसे मिलने के लिए इस स्थान पर आई थीं। कृष्ण से बिछड़ने का दुख सहन न कर पाने के कारण,
वे भावनाओं में अभिभूत होकर इस तालाब के पास धरती में समा गईं और कृष्ण में विलीन हो गईं। इस घटना के बाद इस स्थान को "
गोपी तालाब" के नाम से जाना गया। तालाब के किनारे की पीली मिट्टी को "गोपी चंदन" कहा जाता है, जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और
तिलक के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि गोपियाँ प्रत्येक पूर्णिमा को इस तालाब के किनारे
कृष्ण के साथ रासलीला करती थीं।विशेषताएँआकार और संरचना: गोपी तालाब एक छोटा लेकिन गहरा जलाशय है, जिसके चारों ओर
पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। तालाब का पानी स्वच्छ है, और इसके किनारे छोटे मंदिर और पूजा स्थल मौजूद हैं।वातावरण: तालाब के आसपास
हरियाली और पेड़ों की छाया इसे शांत और आध्यात्मिक बनाती है। प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार इसकी भव्यता को बढ़ाता है।
गोपी चंदन: तालाब के किनारे की पीली, नरम मिट्टी को गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है। भक्त इसे पवित्र स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं
और इसे तिलक लगाने या पूजा में उपयोग करते हैं।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वगोपी तालाब भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और
भक्ति का प्रतीक है। यहाँ हर साल धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार आयोजित होते हैं, जिनमें कृष्ण से जुड़े भजन और कथाएँ गाई जाती हैं।
विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। तालाब का पानी पवित्र माना जाता है, और भक्त इसे अपने घरों में ले
जाकर पूजा में उपयोग करते हैं।ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्वइतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, गोपी तालाब प्राचीन काल में
बनाया गया था और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया गया है। विभिन्न राजाओं और शासकों ने इसके रखरखाव में योगदान दिया।
द्वारका के पुरातात्विक अभियानों में तालाब के पास प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख भी मिले हैं,
जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।पर्यटनगोपी तालाब द्वारका के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है,
जो शहर से लगभग 20 किमी उत्तर में स्थित है। हाल के वर्षों में,
गुजरात सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए हैं,
जिससे यहाँ की सुविधाएँ और सौंदर्य बढ़ा है। तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ शांति, आध्यात्मिक अनुभव और
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ने के लिए आते हैं।गोपी तालाब (सूरत) से भिन्नताध्यान दें कि गुजरात के सूरत में भी एक "गोपी तालाब" है,
जो लगभग 600 वर्ष पुराना है और हाल ही में इसका सौंदर्यीकरण किया गया है। यह तालाब ऐतिहासिक है,
लेकिन द्वारका के गोपी तालाब की तरह पौराणिक या धार्मिक महत्व नहीं रखता।निष्कर्षगोपी तालाब न केवल एक जलाशय है,
बल्कि भगवान कृष्ण और गोपियों की प्रेम-भक्ति की अमर कथा का जीवंत प्रतीक है।
यह स्थान द्वारका की तीर्थ यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का अनुभव कराता है।
यदि आप द्वारका की यात्रा कर रहे हैं, तो गोपी तालाब का दर्शन अवश्य करें।
8.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रमुख जानकारी:स्थान: भीमाशंकर मंदिर पुणे से लगभग 100 किमी दूर, भीमाशंकर शहर में स्थित है।
यह भीमा नदी के उद्गम स्थल के पास है, जो प्रकृति की गोद में बसा है।पौराणिक कथा:पौराणिक मान्यता के अनुसार,
यह ज्योतिर्लिंग राक्षस भीमासुर से संबंधित है। भीमासुर, कुंभकर्ण और रावण की बहन कर्कटी का पुत्र था।
उसने भगवान शिव की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया। बाद में वह अहंकारी हो गया और उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया।
अंत में, भगवान शिव ने उसका वध किया और भक्तों की रक्षा के लिए इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए।मंदिर की विशेषताएं:
मंदिर का स्थापत्य नागर शैली में है, जिसमें प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का मिश्रण दिखता है।
मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर भी हैं, जो अन्य देवताओं को समर्पित हैं।यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता
, जंगलों और वन्यजीव अभयारण्य के लिए भी प्रसिद्ध है।धार्मिक महत्व:श्रावण मास और महाशिवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
यह माना जाता है कि यहाँ दर्शन करने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।प्राकृतिक आकर्षण:
भीमाशंकर एक लोकप्रिय ट्रेकिंग स्थल भी है, जहाँ पर्यटक और तीर्थयात्री प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।
पास में हनुमान झील और भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
9.त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबक शहर में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित है और गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में बसा है।
प्रमुख विशेषताएं:पौराणिक महत्व:स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार, ऋषि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या की
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।इसका नाम "त्र्यंबक" भगवान शिव के तीन नेत्रों (त्रि-अंबक) से प्रेरित है, जो सृष्टि,
पालन और संहार का प्रतीक हैं।यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के उद्गम से जुड़ा है, जिसे दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है।
मंदिर की संरचना:मंदिर पेशवा शैली में निर्मित है, जिसमें काले पत्थरों का उपयोग किया गया है।
ज्योतिर्लिंग की खासियत यह है कि इसमें तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक हैं।
मंदिर के गर्भगृह में एक गड्ढा है, जिसमें से निरंतर जल बहता रहता है, जो शिव की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक महत्व:यहाँ नारायण नागबली और कालसर्प दोष निवारण पूजा विशेष रूप से की जाती है, जो भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
सावन माह और महाशिवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।कुंभ मेला, जो हर 12 साल में नासिक में आयोजित होता है,
त्र्यंबकेश्वर को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य:मंदिर के आसपास ब्रह्मगिरी पर्वत और गोदावरी का उद्गम स्थल (कुशावर्त कुंड) इसे एक तीर्थ और पर्यटन स्थल बनाते हैं।
कुशावर्त कुंड में स्नान को बहुत पवित्र माना जाता है।दर्शन और समय:मंदिर सुबह 5:30 बजे से
रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।विशेष पूजा और अभिषेक के लिए अग्रिम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है।
ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण स्थल है
यहाँ दर्शन करने से मन को शांति और आत्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है
10.शनि शिंगणापुर,
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है,
जो शनि देव के मंदिर के लिए जाना जाता है।
यहाँ की सबसे खास बात यह है कि शनि देव की मूर्ति खुले में एक चबूतरे पर स्थापित है,
बिना किसी मंदिर के ढांचे के। यह विश्व में अपनी तरह का अनूठा मंदिर है।प्रमुख विशेषताएँ:शनि देव की मूर्ति
यहाँ शनि देव की स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई) काले पत्थर की मूर्ति है, जिसे लोग "शनीश्वर" के रूप में पूजते हैं।
बिना दीवारों का मंदिर: मूर्ति चारों तरफ से खुली है, और यहाँ कोई छत या दीवार नहीं है। भक्त खुले आसमान के नीचे
दर्शन और पूजा करते हैं।गाँव की अनोखी परंपरा: शनि शिंगणापुर में अधिकांश घरों में दरवाजे और ताले नहीं होते।
स्थानीय लोग मानते हैं कि शनि देव उनकी रक्षा करते हैं, इसलिए चोरी का डर नहीं है।
तेल चढ़ाने की प्रथा भक्त शनि देव को तेल (विशेष रूप से तिल का तेल) चढ़ाते हैं,
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे शनि की कृपा प्राप्त होती है
और शनि दोष दूर होता है।शनि जयंती और अमावस्या: शनिवार, शनि जयंती और शनि अमावस्या के दिन यहाँ विशेष पूजा
और भीड़ होती है।मान्यताएँ:ऐसा माना जाता है कि शनि शिंगणापुर में शनि देव की विशेष कृपा रहती है।
यहाँ दर्शन करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या अन्य ज्योतिषीय दोषों का प्रभाव कम होता है।
गाँव में कोई भी गलत काम करने से शनि देव के प्रकोप का भय रहता है,
जिसके कारण यहाँ अपराध दर बहुत कम है।
11.घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पास वेरुल (एलोरा) गांव में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसे घुश्मेश्वर या कुसुमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह ज्योतिर्लिंग एक भक्त महिला कुसुमा (या घुश्मा) की तपस्या और भक्ति के कारण प्रकट हुआ।
कुसुमा अपने पति की मृत्यु के बाद भी शिव भक्ति में लीन रही। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने
इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर उसकी इच्छा पूरी की। एक अन्य कथा में, यह स्थान सुदामा और घुश्मा के पुत्र की कहानी से भी जुड़ा है,
जहां शिव ने उनके पुत्र को पुनर्जनम दिया।मंदिर का महत्व:स्थापत्य कला: घृष्णेश्वर मंदिर की वास्तुकला दक्षिण
भारतीय शैली की है, जिसमें सुंदर नक्काशी और पत्थरों का कार्य देखा जा सकता है।
यह मंदिर एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं के निकट है।धार्मिक महत्व: यह ज्योतिर्लिंग भक्तों के लिए मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
यहां दर्शन करने से पापों का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।तीर्थ यात्रा: यह मंदिर विशेष रूप से श्रावण मास और
महाशिवरात्रि के दौरान भक्तों से भरा रहता है।स्थान और पहुंच:स्थान: वेरुल, औरंगाबाद, महाराष्ट्र (एलोरा गुफाओं से लगभग 2 किमी दूर)।
पहुंच: औरंगाबाद रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा निकटतम हैं। सड़क मार्ग से भी मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
विशेषता:यह बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे छोटा माना जाता है, लेकिन इसकी महिमा अत्यंत विशाल है।
मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जिसे शिवालय तीर्थ कहा जाता है।घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल
धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
यह स्थान भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।
12.शिरडी के साईं बाबा,
जिन्हें साईं बाबा के नाम से जाना जाता है, भारत के एक महान संत, फकीर और आध्यात्मिक गुरु थे।
उनका जन्म और प्रारंभिक जीवन रहस्यमय है, लेकिन माना जाता है कि वे 19वीं सदी के मध्य में पैदा हुए थे।
साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को एकजुट करने का कार्य किया और
उनके उपदेश सभी धर्मों के प्रति समानता और प्रेम पर आधारित थे।जीवन और शिक्षाएँ:शिरडी में आगमन: साईं बाबा 1850 के दशक में
महाराष्ट्र के शिरडी गाँव में आए और वहाँ एक खंडहर मस्जिद (द्वारकामाई) में रहने लगे।
उन्होंने सादा जीवन जिया और लोगों की सेवा की।चमत्कार: साईं बाबा को कई चमत्कारों के लिए जाना जाता है,
जैसे बीमारियों का इलाज, भक्तों की समस्याओं का समाधान और असंभव कार्यों को संभव करना।
हालांकि, वे हमेशा कहते थे कि ये चमत्कार उनकी शक्ति नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा हैं।उपदेश: उनकी मुख्य शिक्षाएँ थीं -
"श्रद्धा और सबूरी" (विश्वास और धैर्य), सभी धर्मों का सम्मान, परोपकार,
और ईश्वर के प्रति समर्पण। वे कहते थे,
"सबका मालिक एक", अर्थात् सभी का ईश्वर एक है।
धर्मनिरपेक्षता: साईं बाबा ने हिंदू और मुस्लिम दोनों परंपराओं का समन्वय किया।
वे राम, कृष्ण, और अल्लाह का नाम लेते थे और दोनों समुदायों के त्योहारों में भाग लेते थे।
शिरडी का महत्व:शिरडी अब एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहाँ साईं बाबा मंदिर स्थित है।
लाखों भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। साईं बाबा का समाधि मंदिर, द्वारकामाई, और चावड़ी उनके जीवन से जुड़े प्रमुख स्थान हैं।
निधन:साईं बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी में समाधि ली। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके भक्तों का विश्वास है कि वे
आज भी अपने भक्तों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं।सांस्कृतिक प्रभाव:साईं बाबा के जीवन पर आधारित कई किताबें, जैसे "श्री साईं सत्चरित्र",
उनके भक्तों के लिए पवित्र ग्रंथ है।उनके भक्त भारत और विदेशों में फैले हुए हैं, और कई साईं मंदिर विश्व भर में स्थापित हैं
।साईं बाबा के उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं, विशेष रूप से संकट के समय में धैर्य और विश्वास रखने के लिए।
प्रमुख संदेश:सेवा: जरूरतमंदों की मदद करना।एकता: सभी धर्मों और जातियों के बीच भाईचारा।आध्यात्मिकता:
जीवन को सादगी और ईश्वर-भक्ति के साथ जीना।यदि आप साईं बाबा के किसी विशिष्ट पहलू, जैसे उनके
चमत्कार, मंदिर, या उपदेशों के बारे में और जानना चाहते हैं, तो बताएँ!
13.नासिक:
नासिक, महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर,
धार्मिक, सांस्कृतिक और औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
इसे "भारत की वाइन कैपिटल" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ अंगूर की खेती और वाइन उद्योग विकसित है।
धार्मिक महत्व: नासिक गोदावरी नदी के तट पर बसा है और कुंभ मेला हर 12 साल में यहाँ आयोजित होता है।
त्र्यंबकेश्वर (ज्योतिर्लिंग मंदिर) और रामकुंड प्रमुख तीर्थस्थल हैं।पर्यटन: पंचवटी (रामायण से जुड़ा), सुला वाइनयार्ड्स, और दूधसागर झरना आकर्षण के केंद्र हैं।अर्थव्यवस्था: कृषि (अंगूर, प्याज), वाइनरी, और ऑटोमोबाइल उद्योग (महिंद्रा, बॉश) महत्वपूर्ण हैं।जलवायु: मध्यम, सर्दियों में ठंड और गर्मियों में गर्म।पुणे:
पुणे, महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर, "महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी" और "ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट" के रूप में प्रसिद्ध है,
क्योंकि यहाँ कई शैक्षणिक संस्थान हैं।शिक्षा: पुणे विश्वविद्यालय, सिम्बायोसिस, और फर्ग्यूसन कॉलेज जैसे संस्थान इसे शिक्षा हब बनाते हैं।
पर्यटन: शनिवार वाडा, आगा खान पैलेस, सिंहगढ़ किला, और राजीव गांधी जूलॉजिकल पार्क प्रमुख आकर्षण हैं।
अर्थव्यवस्था: आईटी हब (हिंजवडी IT पार्क), ऑटोमोबाइल (टाटा, बजाज), और स्टार्टअप्स का केंद्र।ज
लवायु: सुखद, मानसून में भारी बारिश।तुलना:नासिक धार्मिक और कृषि-आधारित है, जबकि पुणे शिक्षा,
आईटी, और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र।पुणे अधिक शहरी और विकसित है,
जबकि नासिक शांत और प्रकृति के करीब।दोनों शहर मुंबई से अच्छी तरह जुड़े हैं,
#आईये 7 JYOTIRLING YATRA 2025 श्री केदार तीर्थ यात्रा के साथ करें
✅ विशेषज्ञ मार्गदर्शन – धार्मिक व ऐतिहासिक जानकारी के साथ।
✅ सुरक्षित व सुविधाजनक यात्रा – बेहतर ठहरने, भोजन व परिवहन की व्यवस्था।
✅ समर्पित सेवा – 24/7 सहायता, स्वास्थ्य सुरक्षा व यात्रा प्रबंधन।
✅ किफायती पैकेज – हर बजट के अनुकूल योजनाएँ।
आपकी संतुष्टि ही हमारी उपलब्धि है
"हमारा अनुभव और आपका विश्वास हमें बनाता है भारत की सर्वश्रेष्ठ तीर्थ यात्रा सेवा समिति !"
📞 *अभी बुक करें: - http://www.kedartirthyatra.com
*संपर्क: 6265445023, 9753566154
7 ज्योतिर्लिंग यात्रा 2025
🌞🌺🔱🌏🔱🌺🌞
केदार तीर्थ यात्रा आपको 7 ज्योतिर्लिंग यात्रा के लिए विश्वसनीय,
सुव्यवस्थित और आध्यात्मिक सेवाएं प्रदान करता है।
1.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में उज्जैन शहर में स्थित भगवान शिव का एक प्रमुख मंदिर है।
यह हिंदुओं के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
महाकालेश्वर का अर्थ है "काल (समय) के स्वामी", जो भगवान शिव का एक रूप है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थान: मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। उज्जैन प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
ज्योतिर्लिंग: मान्यता है कि यहाँ स्वयंभू (स्वयं प्रकट) ज्योतिर्लिंग है, जो भगवान शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
महाकाल का महत्व: यहाँ भगवान शिव को समय और मृत्यु का नियंत्रक माना जाता है। मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
भस्म आरती: महाकालेश्वर मंदिर की सबसे प्रसिद्ध परंपरा है भस्म आरती, जो प्रातःकाल में होती है। इसमें शिवलिंग को चिता की भस्म से सजाया जाता है।
यह अनुष्ठान अद्वितीय है और इसे देखने के लिए विशेष अनुमति चाहिए।उज्जैन का महत्व: उज्जैन को मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक माना जाता है।
यहाँ हर 12 वर्ष में कुंभ मेला (सिंहस्थ) भी आयोजित होता है।पौराणिक कथा:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में भगवान शिव ने
राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी। एक कथा में, राजा चंद्रसेन के अनुरोध पर शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। एक
अन्य कथा में, चार ब्राह्मण भाइयों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ स्थायी रूप से निवास किया।मंदिर की संरचना:मंदिर का मुख्य
शिवलिंग गर्भगृह में है, जो भूमिगत स्तर पर स्थित है।मंदिर परिसर में पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नागेश्वर जैसे अन्य देवताओं के मंदिर भी हैं।मंदिर का शिखर और वास्तुकला दक्षिण भारतीय और मराठा शैली का मिश्रण है।धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति मिलती है।
सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशेष पूजा और उत्सव होते हैं।मंदिर में सिद्धियों और तंत्र-मंत्र से संबंधित पूजा भी की जाती है।
दर्शन और व्यवस्था:मंदिर में दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग उपलब्ध है, विशेषकर भस्म आरती के लिए।सामान्य दर्शन सुबह और
शाम के समय खुले रहते हैं।मंदिर प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था भी की जाती है
2.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश में खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे "ओंकारेश्वर" (ॐ के स्वरूप) के नाम से जाना जाता है।
इसकी विशेषता यह है कि यहाँ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना हुआ है, जिसे स्वयंभू माना जाता है।
महत्व और पौराणिक कथा:नाम का अर्थ: "ओंकारेश्वर" का अर्थ है "ॐ का स्वामी"। यहाँ का शिवलिंग ॐ के आकार का प्रतीत होता है,
जो हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।पौराणिक कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार,
एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध के दौरान, विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ प्रकट हुए। एक अन्य कथा में,
राजा मान्धाता ने यहाँ तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ निवास किया।ममलेश्वर: ओंकारेश्वर के साथ
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी जुड़ा है, जो नर्मदा के दूसरी ओर स्थित है। दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का हिस्सा माना जाता है।
मंदिर और स्थान:मंदिर नर्मदा नदी के बीच मंधाता द्वीप पर स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा है। द्वीप का आकार ॐ जैसा दिखता है।
यहाँ नर्मदा नदी को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और श्रद्धालु स्नान कर पूजा करते हैं।मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अलावा अन्य छोटे मंदिर भी हैं,
जैसे ममलेश्वर मंदिर।धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होता है, ऐसी मान्यता है।श्रावण मास, महाशिवरात्रि,
और कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।नर्मदा परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु यहाँ अवश्य रुकते हैं।
नर्मदा नदी का सुंदर घाट और नौका विहार।पास में सिद्धनाथ मंदिर, काजल रानी गुफा, और 24
अवतार मंदिर जैसे दर्शनीय स्थल।मंधाता पहाड़ी से नर्मदा और आसपास का मनोरम दृश्य।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ की शांति और पवित्रता भक्तों को आकर्षित करती
3.सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के गुजरात राज्य में प्रभास पाटन, सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम और सबसे प्रमुख माना जाता है।
इसका उल्लेख ऋग्वेद, स्कंद पुराण और श्रीमद्भागवत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।महत्व:पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार, चंद्रमा (सोम) ने
भगवान शिव की तपस्या कर श्राप से मुक्ति पाई थी। उनकी कृतज्ञता में यह ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ, जिसे "सोमनाथ" (चंद्रमा का स्वामी) कहा गया।
आध्यात्मिक महत्व: यह शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है, जो मोक्ष और आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है।इतिहास:सोमनाथ मंदिर का
निर्माण प्राचीन काल में हुआ था, जिसे कई बार विदेशी आक्रमणकारियों (जैसे महमूद गजनवी, 1026 ई.) ने नष्ट किया।
वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 1951 में सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से हुआ, जो चालुक्य शैली में बना है।मंदिर का शिखर 50 मीटर ऊंचा है,
और यह समुद्र तट पर स्थित है, जो इसे और भी भव्य बनाता है।विशेषताएं:स्थापत्य कला: मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से हुआ है,
जिसमें जटिल नक्काशी और भव्य गर्भगृह शामिल हैं।प्रकाश और ध्वनि शो: रोजाना शाम को मंदिर परिसर में एक शो आयोजित होता है,
जो मंदिर के इतिहास को दर्शाता है।तीर्थ यात्रा: श्रावण मास, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
दर्शन और पूजा:मंदिर में तीन बार आरती होती है: प्रातः, मध्याह्न और संध्या।ज्योतिर्लिंग के दर्शन और अभिषेक के लिए विशेष व्यवस्था है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
यह भारतीय सनातन धर्म की अमरता और पुनर्जनन का प्रतीक है।
4.द्वारकाधीश
द्वारकाधीश
द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम है, जिसका अर्थ है "द्वारिका का राजा"।
वे द्वारिका नगरी के संस्थापक और शासक थे।गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यह मंदिर चार धामों में से एक (पश्चिम दिशा का धाम) माना जाता है।मंदिर का मुख्य आकर्षण है द्वारकाधीश की मूर्ति,
जो काले पत्थर से बनी है और भगवान कृष्ण को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाती है, जिसमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं।
यह मंदिर भक्ति, भव्यता और प्राचीन वास्तुकला का प्रतीक है।
यहाँ साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
5.द्वारिका भेंट
द्वारिका भेंट का तात्पर्य आमतौर पर द्वारिका नगरी और द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से है।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका श्रीकृष्ण द्वारा समुद्र तट पर बसाई गई थी।
महाभारत में वर्णित इस नगरी को कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद स्थापित किया था,
ताकि यदुवंशियों को जरासंध के आक्रमणों से बचाया जा सके।द्वारिका को "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता था,
क्योंकि यह समृद्धि और वैभव का केंद्र थी।
आज यह स्थान पुरातात्विक और धार्मिक महत्व का है, क्योंकि यह माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी।
द्वारिका भेंट में भक्त न केवल द्वारकाधीश मंदिर जाते हैं, बल्कि नजदीकी पवित्र स्थलों जैसे बेट द्वारिका
(एक द्वीप, जहाँ कृष्ण का प्राचीन निवास था),
गोमती नदी का तट, और रुक्मिणी मंदिर के दर्शन भी करते हैं।द्वारिका भेंट का महत्वयह यात्रा भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और
भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।यहाँ की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,
क्योंकि द्वारिका चार धामों में शामिल है।
द्वारिका की प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तट और पौराणिक महत्व इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं।
6.रुक्मिणी मंदिर
गुजरात के द्वारका शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है।
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
रुक्मिणी को भगवान कृष्ण ने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में उनकी इच्छा के विरुद्ध हरण कर विवाह किया था।
एक कथा के अनुसार, रुक्मिणी ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा के दौरान जल लेने के लिए एक ब्राह्मण को बुलाया, जिससे भगवान कृष्ण नाराज हो गए।
इससे रुक्मिणी को अलग मंदिर में रहना पड़ा, जो आज रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है।स्थापत्य और विशेषताएं:मंदिर की वास्तुकला नागर शैली में है,
जिसमें सुंदर नक्काशी और एक ऊंचा शिखर (गोपुरम) शामिल है।मंदिर में देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित है,
जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं।मंदिर परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।
धार्मिक महत्व:यह मंदिर भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक है।यहाँ विशेष रूप से विवाह और दांपत्य जीवन की
सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।एकादशी, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
अन्य रोचक तथ्य:मंदिर के पास एक कुआँ है, जिसके जल को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं,
लेकिन यह खारा है, जो एक पौराणिक श्राप से जोड़ा जाता है।
7.गोपी तालाब
गुजरात के द्वारका शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटा, प्राचीन, और पौराणिक जलाशय है,
जो हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह तालाब भगवान श्री कृष्ण और गोपियों की कथाओं से गहराई से जुड़ा है,
जिसके कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।इतिहास और
पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण वृंदावन से द्वारका आए, तो गोपियाँ,
जो उनकी भक्त और प्रेमी थीं, उनसे मिलने के लिए इस स्थान पर आई थीं। कृष्ण से बिछड़ने का दुख सहन न कर पाने के कारण,
वे भावनाओं में अभिभूत होकर इस तालाब के पास धरती में समा गईं और कृष्ण में विलीन हो गईं। इस घटना के बाद इस स्थान को "
गोपी तालाब" के नाम से जाना गया। तालाब के किनारे की पीली मिट्टी को "गोपी चंदन" कहा जाता है, जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और
तिलक के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि गोपियाँ प्रत्येक पूर्णिमा को इस तालाब के किनारे
कृष्ण के साथ रासलीला करती थीं।विशेषताएँआकार और संरचना: गोपी तालाब एक छोटा लेकिन गहरा जलाशय है, जिसके चारों ओर
पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। तालाब का पानी स्वच्छ है, और इसके किनारे छोटे मंदिर और पूजा स्थल मौजूद हैं।वातावरण: तालाब के आसपास
हरियाली और पेड़ों की छाया इसे शांत और आध्यात्मिक बनाती है। प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार इसकी भव्यता को बढ़ाता है।
गोपी चंदन: तालाब के किनारे की पीली, नरम मिट्टी को गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है। भक्त इसे पवित्र स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं
और इसे तिलक लगाने या पूजा में उपयोग करते हैं।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वगोपी तालाब भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और
भक्ति का प्रतीक है। यहाँ हर साल धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार आयोजित होते हैं, जिनमें कृष्ण से जुड़े भजन और कथाएँ गाई जाती हैं।
विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। तालाब का पानी पवित्र माना जाता है, और भक्त इसे अपने घरों में ले
जाकर पूजा में उपयोग करते हैं।ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्वइतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, गोपी तालाब प्राचीन काल में
बनाया गया था और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया गया है। विभिन्न राजाओं और शासकों ने इसके रखरखाव में योगदान दिया।
द्वारका के पुरातात्विक अभियानों में तालाब के पास प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख भी मिले हैं,
जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।पर्यटनगोपी तालाब द्वारका के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है,
जो शहर से लगभग 20 किमी उत्तर में स्थित है। हाल के वर्षों में,
गुजरात सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए हैं,
जिससे यहाँ की सुविधाएँ और सौंदर्य बढ़ा है। तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ शांति, आध्यात्मिक अनुभव और
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ने के लिए आते हैं।गोपी तालाब (सूरत) से भिन्नताध्यान दें कि गुजरात के सूरत में भी एक "गोपी तालाब" है,
जो लगभग 600 वर्ष पुराना है और हाल ही में इसका सौंदर्यीकरण किया गया है। यह तालाब ऐतिहासिक है,
लेकिन द्वारका के गोपी तालाब की तरह पौराणिक या धार्मिक महत्व नहीं रखता।निष्कर्षगोपी तालाब न केवल एक जलाशय है,
बल्कि भगवान कृष्ण और गोपियों की प्रेम-भक्ति की अमर कथा का जीवंत प्रतीक है।
यह स्थान द्वारका की तीर्थ यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का अनुभव कराता है।
यदि आप द्वारका की यात्रा कर रहे हैं, तो गोपी तालाब का दर्शन अवश्य करें।
8.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रमुख जानकारी:स्थान: भीमाशंकर मंदिर पुणे से लगभग 100 किमी दूर, भीमाशंकर शहर में स्थित है।
यह भीमा नदी के उद्गम स्थल के पास है, जो प्रकृति की गोद में बसा है।पौराणिक कथा:पौराणिक मान्यता के अनुसार,
यह ज्योतिर्लिंग राक्षस भीमासुर से संबंधित है। भीमासुर, कुंभकर्ण और रावण की बहन कर्कटी का पुत्र था।
उसने भगवान शिव की तपस्या की और वरदान प्राप्त किया। बाद में वह अहंकारी हो गया और उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया।
अंत में, भगवान शिव ने उसका वध किया और भक्तों की रक्षा के लिए इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए।मंदिर की विशेषताएं:
मंदिर का स्थापत्य नागर शैली में है, जिसमें प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का मिश्रण दिखता है।
मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर भी हैं, जो अन्य देवताओं को समर्पित हैं।यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता
, जंगलों और वन्यजीव अभयारण्य के लिए भी प्रसिद्ध है।धार्मिक महत्व:श्रावण मास और महाशिवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
यह माना जाता है कि यहाँ दर्शन करने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।प्राकृतिक आकर्षण:
भीमाशंकर एक लोकप्रिय ट्रेकिंग स्थल भी है, जहाँ पर्यटक और तीर्थयात्री प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।
पास में हनुमान झील और भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
9.त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबक शहर में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित है और गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में बसा है।
प्रमुख विशेषताएं:पौराणिक महत्व:स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार, ऋषि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या की
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।इसका नाम "त्र्यंबक" भगवान शिव के तीन नेत्रों (त्रि-अंबक) से प्रेरित है, जो सृष्टि,
पालन और संहार का प्रतीक हैं।यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के उद्गम से जुड़ा है, जिसे दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है।
मंदिर की संरचना:मंदिर पेशवा शैली में निर्मित है, जिसमें काले पत्थरों का उपयोग किया गया है।
ज्योतिर्लिंग की खासियत यह है कि इसमें तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक हैं।
मंदिर के गर्भगृह में एक गड्ढा है, जिसमें से निरंतर जल बहता रहता है, जो शिव की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक महत्व:यहाँ नारायण नागबली और कालसर्प दोष निवारण पूजा विशेष रूप से की जाती है, जो भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
सावन माह और महाशिवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।कुंभ मेला, जो हर 12 साल में नासिक में आयोजित होता है,
त्र्यंबकेश्वर को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य:मंदिर के आसपास ब्रह्मगिरी पर्वत और गोदावरी का उद्गम स्थल (कुशावर्त कुंड) इसे एक तीर्थ और पर्यटन स्थल बनाते हैं।
कुशावर्त कुंड में स्नान को बहुत पवित्र माना जाता है।दर्शन और समय:मंदिर सुबह 5:30 बजे से
रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।विशेष पूजा और अभिषेक के लिए अग्रिम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है।
ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण स्थल है
यहाँ दर्शन करने से मन को शांति और आत्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है
10.शनि शिंगणापुर,
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है,
जो शनि देव के मंदिर के लिए जाना जाता है।
यहाँ की सबसे खास बात यह है कि शनि देव की मूर्ति खुले में एक चबूतरे पर स्थापित है,
बिना किसी मंदिर के ढांचे के। यह विश्व में अपनी तरह का अनूठा मंदिर है।प्रमुख विशेषताएँ:शनि देव की मूर्ति
यहाँ शनि देव की स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई) काले पत्थर की मूर्ति है, जिसे लोग "शनीश्वर" के रूप में पूजते हैं।
बिना दीवारों का मंदिर: मूर्ति चारों तरफ से खुली है, और यहाँ कोई छत या दीवार नहीं है। भक्त खुले आसमान के नीचे
दर्शन और पूजा करते हैं।गाँव की अनोखी परंपरा: शनि शिंगणापुर में अधिकांश घरों में दरवाजे और ताले नहीं होते।
स्थानीय लोग मानते हैं कि शनि देव उनकी रक्षा करते हैं, इसलिए चोरी का डर नहीं है।
तेल चढ़ाने की प्रथा भक्त शनि देव को तेल (विशेष रूप से तिल का तेल) चढ़ाते हैं,
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे शनि की कृपा प्राप्त होती है
और शनि दोष दूर होता है।शनि जयंती और अमावस्या: शनिवार, शनि जयंती और शनि अमावस्या के दिन यहाँ विशेष पूजा
और भीड़ होती है।मान्यताएँ:ऐसा माना जाता है कि शनि शिंगणापुर में शनि देव की विशेष कृपा रहती है।
यहाँ दर्शन करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या अन्य ज्योतिषीय दोषों का प्रभाव कम होता है।
गाँव में कोई भी गलत काम करने से शनि देव के प्रकोप का भय रहता है,
जिसके कारण यहाँ अपराध दर बहुत कम है।
11.घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पास वेरुल (एलोरा) गांव में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसे घुश्मेश्वर या कुसुमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह ज्योतिर्लिंग एक भक्त महिला कुसुमा (या घुश्मा) की तपस्या और भक्ति के कारण प्रकट हुआ।
कुसुमा अपने पति की मृत्यु के बाद भी शिव भक्ति में लीन रही। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने
इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर उसकी इच्छा पूरी की। एक अन्य कथा में, यह स्थान सुदामा और घुश्मा के पुत्र की कहानी से भी जुड़ा है,
जहां शिव ने उनके पुत्र को पुनर्जनम दिया।मंदिर का महत्व:स्थापत्य कला: घृष्णेश्वर मंदिर की वास्तुकला दक्षिण
भारतीय शैली की है, जिसमें सुंदर नक्काशी और पत्थरों का कार्य देखा जा सकता है।
यह मंदिर एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं के निकट है।धार्मिक महत्व: यह ज्योतिर्लिंग भक्तों के लिए मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
यहां दर्शन करने से पापों का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।तीर्थ यात्रा: यह मंदिर विशेष रूप से श्रावण मास और
महाशिवरात्रि के दौरान भक्तों से भरा रहता है।स्थान और पहुंच:स्थान: वेरुल, औरंगाबाद, महाराष्ट्र (एलोरा गुफाओं से लगभग 2 किमी दूर)।
पहुंच: औरंगाबाद रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा निकटतम हैं। सड़क मार्ग से भी मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
विशेषता:यह बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे छोटा माना जाता है, लेकिन इसकी महिमा अत्यंत विशाल है।
मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जिसे शिवालय तीर्थ कहा जाता है।घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल
धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
यह स्थान भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।
12.शिरडी के साईं बाबा,
जिन्हें साईं बाबा के नाम से जाना जाता है, भारत के एक महान संत, फकीर और आध्यात्मिक गुरु थे।
उनका जन्म और प्रारंभिक जीवन रहस्यमय है, लेकिन माना जाता है कि वे 19वीं सदी के मध्य में पैदा हुए थे।
साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को एकजुट करने का कार्य किया और
उनके उपदेश सभी धर्मों के प्रति समानता और प्रेम पर आधारित थे।जीवन और शिक्षाएँ:शिरडी में आगमन: साईं बाबा 1850 के दशक में
महाराष्ट्र के शिरडी गाँव में आए और वहाँ एक खंडहर मस्जिद (द्वारकामाई) में रहने लगे।
उन्होंने सादा जीवन जिया और लोगों की सेवा की।चमत्कार: साईं बाबा को कई चमत्कारों के लिए जाना जाता है,
जैसे बीमारियों का इलाज, भक्तों की समस्याओं का समाधान और असंभव कार्यों को संभव करना।
हालांकि, वे हमेशा कहते थे कि ये चमत्कार उनकी शक्ति नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा हैं।उपदेश: उनकी मुख्य शिक्षाएँ थीं -
"श्रद्धा और सबूरी" (विश्वास और धैर्य), सभी धर्मों का सम्मान, परोपकार,
और ईश्वर के प्रति समर्पण। वे कहते थे,
"सबका मालिक एक", अर्थात् सभी का ईश्वर एक है।
धर्मनिरपेक्षता: साईं बाबा ने हिंदू और मुस्लिम दोनों परंपराओं का समन्वय किया।
वे राम, कृष्ण, और अल्लाह का नाम लेते थे और दोनों समुदायों के त्योहारों में भाग लेते थे।
शिरडी का महत्व:शिरडी अब एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहाँ साईं बाबा मंदिर स्थित है।
लाखों भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। साईं बाबा का समाधि मंदिर, द्वारकामाई, और चावड़ी उनके जीवन से जुड़े प्रमुख स्थान हैं।
निधन:साईं बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी में समाधि ली। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनके भक्तों का विश्वास है कि वे
आज भी अपने भक्तों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं।सांस्कृतिक प्रभाव:साईं बाबा के जीवन पर आधारित कई किताबें, जैसे "श्री साईं सत्चरित्र",
उनके भक्तों के लिए पवित्र ग्रंथ है।उनके भक्त भारत और विदेशों में फैले हुए हैं, और कई साईं मंदिर विश्व भर में स्थापित हैं
।साईं बाबा के उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं, विशेष रूप से संकट के समय में धैर्य और विश्वास रखने के लिए।
प्रमुख संदेश:सेवा: जरूरतमंदों की मदद करना।एकता: सभी धर्मों और जातियों के बीच भाईचारा।आध्यात्मिकता:
जीवन को सादगी और ईश्वर-भक्ति के साथ जीना।यदि आप साईं बाबा के किसी विशिष्ट पहलू, जैसे उनके
चमत्कार, मंदिर, या उपदेशों के बारे में और जानना चाहते हैं, तो बताएँ!
13.नासिक:
नासिक, महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर,
धार्मिक, सांस्कृतिक और औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
इसे "भारत की वाइन कैपिटल" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ अंगूर की खेती और वाइन उद्योग विकसित है।
धार्मिक महत्व: नासिक गोदावरी नदी के तट पर बसा है और कुंभ मेला हर 12 साल में यहाँ आयोजित होता है।
त्र्यंबकेश्वर (ज्योतिर्लिंग मंदिर) और रामकुंड प्रमुख तीर्थस्थल हैं।पर्यटन: पंचवटी (रामायण से जुड़ा), सुला वाइनयार्ड्स, और दूधसागर झरना आकर्षण के केंद्र हैं।अर्थव्यवस्था: कृषि (अंगूर, प्याज), वाइनरी, और ऑटोमोबाइल उद्योग (महिंद्रा, बॉश) महत्वपूर्ण हैं।जलवायु: मध्यम, सर्दियों में ठंड और गर्मियों में गर्म।पुणे:
पुणे, महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर, "महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी" और "ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट" के रूप में प्रसिद्ध है,
क्योंकि यहाँ कई शैक्षणिक संस्थान हैं।शिक्षा: पुणे विश्वविद्यालय, सिम्बायोसिस, और फर्ग्यूसन कॉलेज जैसे संस्थान इसे शिक्षा हब बनाते हैं।
पर्यटन: शनिवार वाडा, आगा खान पैलेस, सिंहगढ़ किला, और राजीव गांधी जूलॉजिकल पार्क प्रमुख आकर्षण हैं।
अर्थव्यवस्था: आईटी हब (हिंजवडी IT पार्क), ऑटोमोबाइल (टाटा, बजाज), और स्टार्टअप्स का केंद्र।ज
लवायु: सुखद, मानसून में भारी बारिश।तुलना:नासिक धार्मिक और कृषि-आधारित है, जबकि पुणे शिक्षा,
आईटी, और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र।पुणे अधिक शहरी और विकसित है,
जबकि नासिक शांत और प्रकृति के करीब।दोनों शहर मुंबई से अच्छी तरह जुड़े हैं,
#आईये 7 JYOTIRLING YATRA 2025 श्री केदार तीर्थ यात्रा के साथ करें
✅ विशेषज्ञ मार्गदर्शन – धार्मिक व ऐतिहासिक जानकारी के साथ।
✅ सुरक्षित व सुविधाजनक यात्रा – बेहतर ठहरने, भोजन व परिवहन की व्यवस्था।
✅ समर्पित सेवा – 24/7 सहायता, स्वास्थ्य सुरक्षा व यात्रा प्रबंधन।
✅ किफायती पैकेज – हर बजट के अनुकूल योजनाएँ।
आपकी संतुष्टि ही हमारी उपलब्धि है
"हमारा अनुभव और आपका विश्वास हमें बनाता है भारत की सर्वश्रेष्ठ तीर्थ यात्रा सेवा समिति !"
📞 *अभी बुक करें: - http://www.kedartirthyatra.com
*संपर्क: 6265445023, 9753566154
WELCOME TO,
www.kedartirthyatra.com
🍁 नियम एवं शर्ते🍁:-
1. अपना यात्रा कन्फर्म करने हेतु 5000 रु.स्टैण्डर्ड / 10,000 ₹ डीलक्स या 25% सहयोग राशि जमा करवाना अनिवार्य है
और बाकी शेष राशि यात्रा से 30 दिन पूर्व श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति आपने जिस संस्था में बुकिंग करायी है उस कार्यालय
संस्था में पूर्ण राशि जमा करवाना अनिवार्य होगा अन्यथा आपकी यात्रा निरस्त कर दी जायेगी।
2. यात्रा दिनांक के 2 से 5 दिन पूर्व संपूर्ण जानकारी संस्था से ले लेंगे अन्यथा इसकी जवाबदारी संस्था की नहीं रहेगी।
3. मैं अपनी स्वयं की इच्छा से बिना किसी दबाव एवं अपने पूर्ण होशो हवास के साथ श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति
इंडियन कॉफी हाउस के बगल में, टी. पी. नगर,कोरबा, छत्तीसगढ़ पिन नंबर :- 495677
के साथ यात्रा कर रहा/ रही हूँ।
4.एक माह पूर्व यात्रा निरस्त करने पर यात्रा की पूर्ण राशि का निरस्तीकरण प्रभार 10% लगेगा, यात्रा दिनांक के
15% दिन पूर्व 50% एवं 7 दिन पूर्व 75% पूर्ण राशि में काटौती होगी व यात्रा दिनांक 2 दिन पूर्व राशि वापस नहीं हो पायेगी।
वह राशि अगली यात्रा में स्थानांतरित हो जायेगी।
5. यात्रा के दौरान भोजन की व्यवस्था ट्रेन में की गई हैं। ट्रेन से बाहर यात्रा के दौरान जब कभी आप दर्शनीय स्थल पर रहेंगे
आपकी भोजन की व्यवस्था स्वयं की रहेगी।
6. 1 या 2 माह पूर्व कोई भी यात्रा की बुकिंग कराते है और किसी कारण वश आप यात्रा में नहीं जा पा रहे है।
यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
7. यात्रा करते समय आपकी अपनी ऑरिजनल आई डी. कार्ड जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, व्होटर आई डी कार्ड आदि रखना अनिर्वाय है।
अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
उपरोक्त नियम व शर्तों से मैं पूर्णता सहमत हूँ।
𝗘𝗫𝗣𝗟𝗢𝗥𝗘 𝗢𝗨𝗥 𝗦𝗘𝗥𝗩𝗜𝗖𝗘𝗦– 𝗚𝗘𝗧 𝗜𝗡 𝗧𝗢𝗨𝗖𝗛 𝗡𝗢𝗪 :-
🌎 👉𝘄𝘄𝘄. 𝗸𝗲𝗱𝗮𝗿𝘁𝗶𝗿𝘁𝗵𝘆𝗮𝘁𝗿𝗮. 𝗰𝗼𝗺
𝐂𝐀𝐋𝐋 𝐔𝐒 👉 :-
📞 𝟲𝟮𝟲𝟱𝟰𝟰𝟱𝟬𝟮𝟯, 𝟵𝟳𝟱𝟯𝟱𝟲𝟲𝟭𝟱𝟰
𝐊𝐄𝐃𝐀𝐑𝐍𝐀𝐓𝐇 𝐈𝐒 𝐓𝐑𝐔𝐋𝐄𝐘 𝐇𝐄𝐀𝐕𝐄𝐍.
𝐕𝐈𝐒𝐈𝐓 𝐊𝐄𝐃𝐀𝐑𝐍𝐀𝐓𝐇 𝐀𝐓 𝐋𝐄𝐀𝐒𝐓 𝐎𝐍𝐂𝐄 𝐈𝐍 𝐘𝐎𝐔𝐑 𝐋𝐈𝐅𝐄𝐓𝐈𝐌𝐄.
𝗔𝗗𝗗𝗥𝗘𝗦𝗦 :-
𝗜𝗡𝗗𝗜𝗔𝗡 𝗖𝗢𝗙𝗙𝗘𝗘 𝗛𝗢𝗨𝗦𝗘 𝗕𝗘𝗦𝗜𝗗𝗘
𝗧. 𝗣. 𝗡𝗔𝗚𝗔𝗥 𝗞𝗢𝗥𝗕𝗔, 𝗖𝗛𝗛𝗔𝗧𝗧𝗜𝗦𝗚𝗔𝗥𝗛, 𝗜𝗡𝗗𝗜𝗔 🇮🇳
𝗣𝗜𝗡 𝗖𝗢𝗗𝗘 :-
495677
© 2025 Kedar Tirth Yatra. All Rights Reserved | Design by W3layouts
© 2025 Kedar Tirth Yatra. All Rights Reserved https://kedartirthyatra.com/
Duis venenatis, turpis eu bibendum porttitor, sapien quam ultricies tellus, ac rhoncus risus odio eget nunc. Pellentesque ac fermentum diam. Integer eu facilisis nunc, a iaculis felis. Pellentesque pellentesque tempor enim, in dapibus turpis porttitor quis.