1.JAGANNATH PURI
2.KORNAK TEMPLE
3.AHAMDABAD
4.DWARKA
5.DWARIKADHISH
6.DWARIKABHENT
7.SHREE NAGESHWAR JYOTIRLING
8.GOMTI GHAT
9.RUKHMANI TEMPLE
10.SHREE RAMESHWARAM JYOTIRLIMG
11.RAM SETU
12.DHANUSH KODI
13.SHREE BADRINATH
14.MANA VILLAGE
15.VASHUDHARA JHARNA
16.DHARI DEVI
17.DEV PRAYAG
18.RISHIKESH
19.HARIDWAR
20.HARKIPOUDI
1. FROM :- 04-05-2025 TO 23-05-2025
2. FROM :- 15-05-2025 TO 04-06-2025
3. FROM :- 05-06-2025 TO 24-06-2025
4. FROM :- 07-09-2025 TO 26-09-2025
5. FROM :- 15-09-2025 TO 04-10-2025
:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Deboarding Stations:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Departure Train:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Drop Train:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Sleeper Rate75000
AC2 Rate95000
AC3 Rate85000
Flight Rate115000
भारत के चार धाम यात्रा
जगन्नाथ पुरी द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ 2025
🌞🌺🔱🌏🔱🌺🌞
केदार तीर्थ यात्रा आपको
भारत के चार धाम यात्रा जगन्नाथ पुरी द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ
यात्रा के लिए विश्वसनीय,
सुव्यवस्थित और आध्यात्मिक सेवाएं प्रदान करता है।
1.जगन्नाथ पुरी धाम,
भारत के उड़ीसा (ओडिशा) राज्य में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है, जो चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, और पुरी)
में से एक है। यह भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा को समर्पित है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर अपनी ऐतिहासिक,
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।प्रमुख विशेषताएं:जगन्नाथ मंदिर:12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा
अनंतवर्मन चोडगंग द्वारा निर्मित।
मंदिर की वास्तुकला कalinga शैली की है, जिसमें 65 मीटर ऊंचा शिखर (नीलचक्र) है।
मंदिर में तीन मुख्य देवताएं—जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा—लकड़ी की मूर्तियों के रूप में पूजी जाती हैं, जो हर 12-19 वर्ष में नवकलेवर
(नई मूर्ति निर्माण) के दौरान बदली जाती हैं।गैर-हिंदुओं और विदेशियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है,
लेकिन वे बाहर से दर्शन कर सकते हैं।रथ यात्रा:जगन्नाथ पुरी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास में
आयोजित होती है।तीन विशाल रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र,
और सुभद्रा को मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।लाखों भक्त इस उत्सव में शामिल होते हैं,
और इसे भगवान के दर्शन का विशेष अवसर माना जाता है।
धार्मिक महत्व:पुरी को "मोक्षदायिनी नगरी" माना जाता है,
जहां दर्शन और तीर्थ यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।यह वैष्णव, शैव, और शाक्त परंपराओं का संगम है।
आदि शंकराचार्य ने यहां गोवर्धन मठ की स्थापना की, जो चार मठों में से एक है।सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व:पुरी समुद्र तट
(स्वर्ण रेखा बीच) के किनारे बसा है, जो पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।यहां का प्रसाद, "महाप्रसाद," विशेष रूप से प्रसिद्ध है,
जिसे मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है।पुरी ओडिशा की सांस्कृतिक राजधानी भी है, जहां कला, नृत्य (ओडिसी), और शिल्प फलते-फूलते हैं।
अन्य आकर्षण:गुंडिचा मंदिर: रथ यात्रा के दौरान भगवान का अस्थायी निवास।शंकराचार्य मठ: आदि शंकराचार्य से संबंधित।सूर्य मंदिर, कोणार्क
पुरी से 35 किमी दूर, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।चिल्का झील: पास में स्थित, पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग।
रोचक तथ्य:जगन्नाथ मंदिर में झंडा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, जो एक रहस्यमय घटना है।
मंदिर का नीलचक्र (शिखर पर चक्र) हर दिन बदला जाता है और इसे पवित्र माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां अधूरी दिखती हैं, जिसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं।
7.कोणार्क सूर्य मंदिर
भारत के ओडिशा राज्य में पुरी जिले के कोणार्क में स्थित एक ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसका डिज़ाइन एक विशाल रथ के रूप में है, जो सूर्य भगवान के रथ का प्रतीक है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थापत्य शैली: मंदिर कलिंग स्थापत्य शैली का बेहतरीन नमूना है। यह एक रथ के आकार में बना है,
जिसमें 12 जोड़ी विशाल पहिए और सात घोड़े (अब केवल कुछ ही शेष हैं) हैं, जो सूर्य के रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं।
नक्काशी और मूर्तिकला: मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी और मूर्तियाँ हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं,
नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार और कामुक दृश्यों को दर्शाती हैं। ये नक्काशियाँ भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि को प्रदर्शित करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरणें मंदिर के गर्भगृह को रोशन करती हैं।
पहिए सूर्य घड़ी के रूप में भी कार्य करते हैं, जो समय का सटीक मापन करते हैं।वर्तमान स्थिति: मंदिर का मुख्य गर्भगृह आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त है,
और यह अब पूजा स्थल के रूप में उपयोग नहीं होता। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसका संरक्षण किया जा रहा है।
सांस्कृतिक महत्व: कोणार्क मंदिर भारतीय संस्कृति और धर्म में सूर्य पूजा के महत्व को दर्शाता है।
यह पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
2.द्वारकाधीश
द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम है, जिसका अर्थ है "द्वारिका का राजा"।
वे द्वारिका नगरी के संस्थापक और शासक थे।गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यह मंदिर चार धामों में से एक (पश्चिम दिशा का धाम) माना जाता है।मंदिर का मुख्य आकर्षण है द्वारकाधीश की मूर्ति,
जो काले पत्थर से बनी है और भगवान कृष्ण को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाती है, जिसमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं।
यह मंदिर भक्ति, भव्यता और प्राचीन वास्तुकला का प्रतीक है।
यहाँ साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
1.द्वारिका भेंट
द्वारिका भेंट का तात्पर्य आमतौर पर द्वारिका नगरी और द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से है।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका श्रीकृष्ण द्वारा समुद्र तट पर बसाई गई थी।
महाभारत में वर्णित इस नगरी को कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद स्थापित किया था,
ताकि यदुवंशियों को जरासंध के आक्रमणों से बचाया जा सके।द्वारिका को "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता था,
क्योंकि यह समृद्धि और वैभव का केंद्र थी।
आज यह स्थान पुरातात्विक और धार्मिक महत्व का है, क्योंकि यह माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी।
द्वारिका भेंट में भक्त न केवल द्वारकाधीश मंदिर जाते हैं, बल्कि नजदीकी पवित्र स्थलों जैसे बेट द्वारिका
(एक द्वीप, जहाँ कृष्ण का प्राचीन निवास था),
गोमती नदी का तट, और रुक्मिणी मंदिर के दर्शन भी करते हैं।द्वारिका भेंट का महत्वयह यात्रा भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और
भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।यहाँ की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,
क्योंकि द्वारिका चार धामों में शामिल है।
द्वारिका की प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तट और पौराणिक महत्व इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं।
2.रुक्मिणी मंदिर
गुजरात के द्वारका शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है।
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
रुक्मिणी को भगवान कृष्ण ने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में उनकी इच्छा के विरुद्ध हरण कर विवाह किया था।
एक कथा के अनुसार, रुक्मिणी ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा के दौरान जल लेने के लिए एक ब्राह्मण को बुलाया, जिससे भगवान कृष्ण नाराज हो गए।
इससे रुक्मिणी को अलग मंदिर में रहना पड़ा, जो आज रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है।स्थापत्य और विशेषताएं:मंदिर की वास्तुकला नागर शैली में है,
जिसमें सुंदर नक्काशी और एक ऊंचा शिखर (गोपुरम) शामिल है।मंदिर में देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित है,
जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं।मंदिर परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।
धार्मिक महत्व:यह मंदिर भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक है।यहाँ विशेष रूप से विवाह और दांपत्य जीवन की
सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।एकादशी, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
अन्य रोचक तथ्य:मंदिर के पास एक कुआँ है, जिसके जल को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं,
लेकिन यह खारा है, जो एक पौराणिक श्राप से जोड़ा जाता है।
3.गोपी तालाब
गुजरात के द्वारका शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटा, प्राचीन, और पौराणिक जलाशय है,
जो हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह तालाब भगवान श्री कृष्ण और गोपियों की कथाओं से गहराई से जुड़ा है,
जिसके कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।इतिहास और
पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण वृंदावन से द्वारका आए, तो गोपियाँ,
जो उनकी भक्त और प्रेमी थीं, उनसे मिलने के लिए इस स्थान पर आई थीं। कृष्ण से बिछड़ने का दुख सहन न कर पाने के कारण,
वे भावनाओं में अभिभूत होकर इस तालाब के पास धरती में समा गईं और कृष्ण में विलीन हो गईं। इस घटना के बाद इस स्थान को "
गोपी तालाब" के नाम से जाना गया। तालाब के किनारे की पीली मिट्टी को "गोपी चंदन" कहा जाता है, जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और
तिलक के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि गोपियाँ प्रत्येक पूर्णिमा को इस तालाब के किनारे
कृष्ण के साथ रासलीला करती थीं।विशेषताएँआकार और संरचना: गोपी तालाब एक छोटा लेकिन गहरा जलाशय है, जिसके चारों ओर
पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। तालाब का पानी स्वच्छ है, और इसके किनारे छोटे मंदिर और पूजा स्थल मौजूद हैं।वातावरण: तालाब के आसपास
हरियाली और पेड़ों की छाया इसे शांत और आध्यात्मिक बनाती है। प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार इसकी भव्यता को बढ़ाता है।
गोपी चंदन: तालाब के किनारे की पीली, नरम मिट्टी को गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है। भक्त इसे पवित्र स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं
और इसे तिलक लगाने या पूजा में उपयोग करते हैं।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वगोपी तालाब भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और
भक्ति का प्रतीक है। यहाँ हर साल धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार आयोजित होते हैं, जिनमें कृष्ण से जुड़े भजन और कथाएँ गाई जाती हैं।
विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। तालाब का पानी पवित्र माना जाता है, और भक्त इसे अपने घरों में ले
जाकर पूजा में उपयोग करते हैं।ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्वइतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, गोपी तालाब प्राचीन काल में
बनाया गया था और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया गया है। विभिन्न राजाओं और शासकों ने इसके रखरखाव में योगदान दिया।
द्वारका के पुरातात्विक अभियानों में तालाब के पास प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख भी मिले हैं,
जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।पर्यटनगोपी तालाब द्वारका के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है,
जो शहर से लगभग 20 किमी उत्तर में स्थित है। हाल के वर्षों में,
गुजरात सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए हैं,
जिससे यहाँ की सुविधाएँ और सौंदर्य बढ़ा है। तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ शांति, आध्यात्मिक अनुभव और
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ने के लिए आते हैं।गोपी तालाब (सूरत) से भिन्नताध्यान दें कि गुजरात के सूरत में भी एक "गोपी तालाब" है,
जो लगभग 600 वर्ष पुराना है और हाल ही में इसका सौंदर्यीकरण किया गया है। यह तालाब ऐतिहासिक है,
लेकिन द्वारका के गोपी तालाब की तरह पौराणिक या धार्मिक महत्व नहीं रखता।निष्कर्षगोपी तालाब न केवल एक जलाशय है,
बल्कि भगवान कृष्ण और गोपियों की प्रेम-भक्ति की अमर कथा का जीवंत प्रतीक है।
यह स्थान द्वारका की तीर्थ यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का अनुभव कराता है।
यदि आप द्वारका की यात्रा कर रहे हैं, तो गोपी तालाब का दर्शन अवश्य करें।
3.रामेश्वरम धाम
भारत के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है
और हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
रामेश्वरम धाम के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
1. धार्मिक महत्व:
यह भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ का प्रमुख मंदिर रामनाथस्वामी मंदिर है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और पूजा की थी।
यह धाम शिवभक्तों और वैष्णवों दोनों के लिए बहुत पवित्र है।
2. रामनाथस्वामी मंदिर:
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह मंदिर अपनी लंबी गलियारों (कॉरिडोर) और शानदार द्रविड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र कुण्ड (जलकुंड) हैं, जिनमें स्नान करना पापों को धोने वाला माना जाता है।
3. धार्मिक कथा:
जब भगवान राम ने रावण का वध किया, जो एक ब्राह्मण था, तब उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के LIYE
भगवान शिव की पूजा करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने गए, लेकिन देर हो जाने पर माता सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाया
जिसे रामेश्वरम लिंग कहा जाता है।
4. अन्य दर्शनीय स्थल:
धनुषकोडी: वह स्थान जहाँ से भगवान राम ने सेतु (रामसेतु) का निर्माण किया था।
राम झूला (Adam's Bridge): यह एक प्राकृतिक रेत की श्रृंखला है जो
भारत को श्रीलंका से जोड़ती है और इसे ही रामसेतु कहा जाता है।
3.बद्रीनाथ धाम,
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
यह चार धामों (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) में से एक है और भगवान विष्णु को समर्पित है।
बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर, हिमालय की गोद में 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
प्रमुख विशेषताएँ:धार्मिक महत्व: मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम मूर्ति "बद्रीनारायण" के रूप में पूजी जाती है।
इसे आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह पंच बद्री (पांच प्रमुख विष्णु मंदिरों) में से एक है।
स्थान और प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर नर और नारायण पर्वतों के बीच बसा है, और पास में तप्तकुंड नामक गर्म पानी का झरना है,
जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं।दर्शन का समय: मंदिर अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर तक खुला रहता है।
शीतकाल में मंदिर बंद रहता है, और मूर्ति को जोशीमठ में रखा जाता है।नजदीकी आकर्षण:माणा गाँव:
भारत का अंतिम गाँव, जो बद्रीनाथ से 3 किमी दूर है।व्यास गुफा: जहाँ महर्षि व्यास ने महाभारत लिखी थी।
गणेश गुफा: गणेश जी से संबंधित पौराणिक स्थल।नीलकंठ पर्वत: मंदिर के पीछे स्थित,
जो शिव का प्रतीक माना जाता है।पौराणिक कथा: मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या की थी,
और लक्ष्मी जी ने उन्हें बद्री (जंगली बेर) के पेड़ों की छाया प्रदान की थी, इसलिए इसे बद्रीनाथ कहा गया।
जगन्नाथ पुरी द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ 2025
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केदार तीर्थ यात्रा आपको
भारत के चार धाम यात्रा जगन्नाथ पुरी द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ
यात्रा के लिए विश्वसनीय,
सुव्यवस्थित और आध्यात्मिक सेवाएं प्रदान करता है।
1.जगन्नाथ पुरी धाम,
भारत के उड़ीसा (ओडिशा) राज्य में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है, जो चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, और पुरी)
में से एक है। यह भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा को समर्पित है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर अपनी ऐतिहासिक,
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।प्रमुख विशेषताएं:जगन्नाथ मंदिर:12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा
अनंतवर्मन चोडगंग द्वारा निर्मित।
मंदिर की वास्तुकला कalinga शैली की है, जिसमें 65 मीटर ऊंचा शिखर (नीलचक्र) है।
मंदिर में तीन मुख्य देवताएं—जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा—लकड़ी की मूर्तियों के रूप में पूजी जाती हैं, जो हर 12-19 वर्ष में नवकलेवर
(नई मूर्ति निर्माण) के दौरान बदली जाती हैं।गैर-हिंदुओं और विदेशियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है,
लेकिन वे बाहर से दर्शन कर सकते हैं।रथ यात्रा:जगन्नाथ पुरी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास में
आयोजित होती है।तीन विशाल रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र,
और सुभद्रा को मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।लाखों भक्त इस उत्सव में शामिल होते हैं,
और इसे भगवान के दर्शन का विशेष अवसर माना जाता है।
धार्मिक महत्व:पुरी को "मोक्षदायिनी नगरी" माना जाता है,
जहां दर्शन और तीर्थ यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।यह वैष्णव, शैव, और शाक्त परंपराओं का संगम है।
आदि शंकराचार्य ने यहां गोवर्धन मठ की स्थापना की, जो चार मठों में से एक है।सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व:पुरी समुद्र तट
(स्वर्ण रेखा बीच) के किनारे बसा है, जो पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।यहां का प्रसाद, "महाप्रसाद," विशेष रूप से प्रसिद्ध है,
जिसे मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है।पुरी ओडिशा की सांस्कृतिक राजधानी भी है, जहां कला, नृत्य (ओडिसी), और शिल्प फलते-फूलते हैं।
अन्य आकर्षण:गुंडिचा मंदिर: रथ यात्रा के दौरान भगवान का अस्थायी निवास।शंकराचार्य मठ: आदि शंकराचार्य से संबंधित।सूर्य मंदिर, कोणार्क
पुरी से 35 किमी दूर, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।चिल्का झील: पास में स्थित, पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग।
रोचक तथ्य:जगन्नाथ मंदिर में झंडा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, जो एक रहस्यमय घटना है।
मंदिर का नीलचक्र (शिखर पर चक्र) हर दिन बदला जाता है और इसे पवित्र माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां अधूरी दिखती हैं, जिसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं।
7.कोणार्क सूर्य मंदिर
भारत के ओडिशा राज्य में पुरी जिले के कोणार्क में स्थित एक ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसका डिज़ाइन एक विशाल रथ के रूप में है, जो सूर्य भगवान के रथ का प्रतीक है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थापत्य शैली: मंदिर कलिंग स्थापत्य शैली का बेहतरीन नमूना है। यह एक रथ के आकार में बना है,
जिसमें 12 जोड़ी विशाल पहिए और सात घोड़े (अब केवल कुछ ही शेष हैं) हैं, जो सूर्य के रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं।
नक्काशी और मूर्तिकला: मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी और मूर्तियाँ हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं,
नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार और कामुक दृश्यों को दर्शाती हैं। ये नक्काशियाँ भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि को प्रदर्शित करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरणें मंदिर के गर्भगृह को रोशन करती हैं।
पहिए सूर्य घड़ी के रूप में भी कार्य करते हैं, जो समय का सटीक मापन करते हैं।वर्तमान स्थिति: मंदिर का मुख्य गर्भगृह आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त है,
और यह अब पूजा स्थल के रूप में उपयोग नहीं होता। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसका संरक्षण किया जा रहा है।
सांस्कृतिक महत्व: कोणार्क मंदिर भारतीय संस्कृति और धर्म में सूर्य पूजा के महत्व को दर्शाता है।
यह पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
2.द्वारकाधीश
द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम है, जिसका अर्थ है "द्वारिका का राजा"।
वे द्वारिका नगरी के संस्थापक और शासक थे।गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यह मंदिर चार धामों में से एक (पश्चिम दिशा का धाम) माना जाता है।मंदिर का मुख्य आकर्षण है द्वारकाधीश की मूर्ति,
जो काले पत्थर से बनी है और भगवान कृष्ण को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाती है, जिसमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं।
यह मंदिर भक्ति, भव्यता और प्राचीन वास्तुकला का प्रतीक है।
यहाँ साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
1.द्वारिका भेंट
द्वारिका भेंट का तात्पर्य आमतौर पर द्वारिका नगरी और द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से है।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका श्रीकृष्ण द्वारा समुद्र तट पर बसाई गई थी।
महाभारत में वर्णित इस नगरी को कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद स्थापित किया था,
ताकि यदुवंशियों को जरासंध के आक्रमणों से बचाया जा सके।द्वारिका को "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता था,
क्योंकि यह समृद्धि और वैभव का केंद्र थी।
आज यह स्थान पुरातात्विक और धार्मिक महत्व का है, क्योंकि यह माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी।
द्वारिका भेंट में भक्त न केवल द्वारकाधीश मंदिर जाते हैं, बल्कि नजदीकी पवित्र स्थलों जैसे बेट द्वारिका
(एक द्वीप, जहाँ कृष्ण का प्राचीन निवास था),
गोमती नदी का तट, और रुक्मिणी मंदिर के दर्शन भी करते हैं।द्वारिका भेंट का महत्वयह यात्रा भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और
भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।यहाँ की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,
क्योंकि द्वारिका चार धामों में शामिल है।
द्वारिका की प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तट और पौराणिक महत्व इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं।
2.रुक्मिणी मंदिर
गुजरात के द्वारका शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है।
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
रुक्मिणी को भगवान कृष्ण ने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में उनकी इच्छा के विरुद्ध हरण कर विवाह किया था।
एक कथा के अनुसार, रुक्मिणी ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा के दौरान जल लेने के लिए एक ब्राह्मण को बुलाया, जिससे भगवान कृष्ण नाराज हो गए।
इससे रुक्मिणी को अलग मंदिर में रहना पड़ा, जो आज रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है।स्थापत्य और विशेषताएं:मंदिर की वास्तुकला नागर शैली में है,
जिसमें सुंदर नक्काशी और एक ऊंचा शिखर (गोपुरम) शामिल है।मंदिर में देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित है,
जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं।मंदिर परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।
धार्मिक महत्व:यह मंदिर भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक है।यहाँ विशेष रूप से विवाह और दांपत्य जीवन की
सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।एकादशी, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
अन्य रोचक तथ्य:मंदिर के पास एक कुआँ है, जिसके जल को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं,
लेकिन यह खारा है, जो एक पौराणिक श्राप से जोड़ा जाता है।
3.गोपी तालाब
गुजरात के द्वारका शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटा, प्राचीन, और पौराणिक जलाशय है,
जो हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह तालाब भगवान श्री कृष्ण और गोपियों की कथाओं से गहराई से जुड़ा है,
जिसके कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।इतिहास और
पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण वृंदावन से द्वारका आए, तो गोपियाँ,
जो उनकी भक्त और प्रेमी थीं, उनसे मिलने के लिए इस स्थान पर आई थीं। कृष्ण से बिछड़ने का दुख सहन न कर पाने के कारण,
वे भावनाओं में अभिभूत होकर इस तालाब के पास धरती में समा गईं और कृष्ण में विलीन हो गईं। इस घटना के बाद इस स्थान को "
गोपी तालाब" के नाम से जाना गया। तालाब के किनारे की पीली मिट्टी को "गोपी चंदन" कहा जाता है, जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और
तिलक के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि गोपियाँ प्रत्येक पूर्णिमा को इस तालाब के किनारे
कृष्ण के साथ रासलीला करती थीं।विशेषताएँआकार और संरचना: गोपी तालाब एक छोटा लेकिन गहरा जलाशय है, जिसके चारों ओर
पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। तालाब का पानी स्वच्छ है, और इसके किनारे छोटे मंदिर और पूजा स्थल मौजूद हैं।वातावरण: तालाब के आसपास
हरियाली और पेड़ों की छाया इसे शांत और आध्यात्मिक बनाती है। प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार इसकी भव्यता को बढ़ाता है।
गोपी चंदन: तालाब के किनारे की पीली, नरम मिट्टी को गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है। भक्त इसे पवित्र स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं
और इसे तिलक लगाने या पूजा में उपयोग करते हैं।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वगोपी तालाब भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और
भक्ति का प्रतीक है। यहाँ हर साल धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार आयोजित होते हैं, जिनमें कृष्ण से जुड़े भजन और कथाएँ गाई जाती हैं।
विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। तालाब का पानी पवित्र माना जाता है, और भक्त इसे अपने घरों में ले
जाकर पूजा में उपयोग करते हैं।ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्वइतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, गोपी तालाब प्राचीन काल में
बनाया गया था और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया गया है। विभिन्न राजाओं और शासकों ने इसके रखरखाव में योगदान दिया।
द्वारका के पुरातात्विक अभियानों में तालाब के पास प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख भी मिले हैं,
जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।पर्यटनगोपी तालाब द्वारका के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है,
जो शहर से लगभग 20 किमी उत्तर में स्थित है। हाल के वर्षों में,
गुजरात सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए हैं,
जिससे यहाँ की सुविधाएँ और सौंदर्य बढ़ा है। तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ शांति, आध्यात्मिक अनुभव और
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ने के लिए आते हैं।गोपी तालाब (सूरत) से भिन्नताध्यान दें कि गुजरात के सूरत में भी एक "गोपी तालाब" है,
जो लगभग 600 वर्ष पुराना है और हाल ही में इसका सौंदर्यीकरण किया गया है। यह तालाब ऐतिहासिक है,
लेकिन द्वारका के गोपी तालाब की तरह पौराणिक या धार्मिक महत्व नहीं रखता।निष्कर्षगोपी तालाब न केवल एक जलाशय है,
बल्कि भगवान कृष्ण और गोपियों की प्रेम-भक्ति की अमर कथा का जीवंत प्रतीक है।
यह स्थान द्वारका की तीर्थ यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का अनुभव कराता है।
यदि आप द्वारका की यात्रा कर रहे हैं, तो गोपी तालाब का दर्शन अवश्य करें।
3.रामेश्वरम धाम
भारत के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है
और हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
रामेश्वरम धाम के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
1. धार्मिक महत्व:
यह भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ का प्रमुख मंदिर रामनाथस्वामी मंदिर है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और पूजा की थी।
यह धाम शिवभक्तों और वैष्णवों दोनों के लिए बहुत पवित्र है।
2. रामनाथस्वामी मंदिर:
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह मंदिर अपनी लंबी गलियारों (कॉरिडोर) और शानदार द्रविड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र कुण्ड (जलकुंड) हैं, जिनमें स्नान करना पापों को धोने वाला माना जाता है।
3. धार्मिक कथा:
जब भगवान राम ने रावण का वध किया, जो एक ब्राह्मण था, तब उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के LIYE
भगवान शिव की पूजा करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने गए, लेकिन देर हो जाने पर माता सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाया
जिसे रामेश्वरम लिंग कहा जाता है।
4. अन्य दर्शनीय स्थल:
धनुषकोडी: वह स्थान जहाँ से भगवान राम ने सेतु (रामसेतु) का निर्माण किया था।
राम झूला (Adam's Bridge): यह एक प्राकृतिक रेत की श्रृंखला है जो
भारत को श्रीलंका से जोड़ती है और इसे ही रामसेतु कहा जाता है।
3.बद्रीनाथ धाम,
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
यह चार धामों (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) में से एक है और भगवान विष्णु को समर्पित है।
बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर, हिमालय की गोद में 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
प्रमुख विशेषताएँ:धार्मिक महत्व: मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम मूर्ति "बद्रीनारायण" के रूप में पूजी जाती है।
इसे आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह पंच बद्री (पांच प्रमुख विष्णु मंदिरों) में से एक है।
स्थान और प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर नर और नारायण पर्वतों के बीच बसा है, और पास में तप्तकुंड नामक गर्म पानी का झरना है,
जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं।दर्शन का समय: मंदिर अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर तक खुला रहता है।
शीतकाल में मंदिर बंद रहता है, और मूर्ति को जोशीमठ में रखा जाता है।नजदीकी आकर्षण:माणा गाँव:
भारत का अंतिम गाँव, जो बद्रीनाथ से 3 किमी दूर है।व्यास गुफा: जहाँ महर्षि व्यास ने महाभारत लिखी थी।
गणेश गुफा: गणेश जी से संबंधित पौराणिक स्थल।नीलकंठ पर्वत: मंदिर के पीछे स्थित,
जो शिव का प्रतीक माना जाता है।पौराणिक कथा: मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या की थी,
और लक्ष्मी जी ने उन्हें बद्री (जंगली बेर) के पेड़ों की छाया प्रदान की थी, इसलिए इसे बद्रीनाथ कहा गया।
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1. अपना यात्रा कन्फर्म करने हेतु 5000 रु.स्टैण्डर्ड / 10,000 ₹ डीलक्स या 25% सहयोग राशि जमा करवाना अनिवार्य है
और बाकी शेष राशि यात्रा से 30 दिन पूर्व श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति आपने जिस संस्था में बुकिंग करायी है उस कार्यालय
संस्था में पूर्ण राशि जमा करवाना अनिवार्य होगा अन्यथा आपकी यात्रा निरस्त कर दी जायेगी।
2. यात्रा दिनांक के 2 से 5 दिन पूर्व संपूर्ण जानकारी संस्था से ले लेंगे अन्यथा इसकी जवाबदारी संस्था की नहीं रहेगी।
3. मैं अपनी स्वयं की इच्छा से बिना किसी दबाव एवं अपने पूर्ण होशो हवास के साथ श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति
इंडियन कॉफी हाउस के बगल में, टी. पी. नगर,कोरबा, छत्तीसगढ़ पिन नंबर :- 495677
के साथ यात्रा कर रहा/ रही हूँ।
4.एक माह पूर्व यात्रा निरस्त करने पर यात्रा की पूर्ण राशि का निरस्तीकरण प्रभार 10% लगेगा, यात्रा दिनांक के
15% दिन पूर्व 50% एवं 7 दिन पूर्व 75% पूर्ण राशि में काटौती होगी व यात्रा दिनांक 2 दिन पूर्व राशि वापस नहीं हो पायेगी।
वह राशि अगली यात्रा में स्थानांतरित हो जायेगी।
5. यात्रा के दौरान भोजन की व्यवस्था ट्रेन में की गई हैं। ट्रेन से बाहर यात्रा के दौरान जब कभी आप दर्शनीय स्थल पर रहेंगे
आपकी भोजन की व्यवस्था स्वयं की रहेगी।
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यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
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अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
उपरोक्त नियम व शर्तों से मैं पूर्णता सहमत हूँ।
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