.GANGA SAGAR
2.SWAMI NARAYAN TEMPLE
3.VELLURE MATH
4.BABA BAIJNATH DHAM
5.KAMAYAKHYA DEVI
6.BAGLA MUKHI DEVI TEMPLE
7.KOLKATA
8.KALIGHAT TEMPLE
9.DAKSHINESHWAR TEMPLE
10.UGRA TARA
11.UMA NAND BRAHMAPUTRA RIVER
12.SHREE JAGANNATH TEMPLE
13.BHUBNESHWAR
14.LINGRAJ TEMPLE
15.CHANDRA PRABHA
16.KAPIL MUNI TEMPLE
17.NANDAN KANAN JOO
18.SAKSHI GOPAL TEMPLE
19.DASH MAHAVIDHA
20.NAWGRAHA
21.BHIMA SHANKAR
1. FROM :- 04-09-2025 TO 13-09-2025
2. FROM :- 15-09-2025 TO 24-09-2025
3. FROM :- 10-05-2025 TO 19-06-2025
4. FROM :- 03-11-2025 TO 12-11-2025
5. FROM :- 15-11-2025 TO 24-11-2025
6. FROM :- 05-12-2025 TO 14-12-2025
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Sleeper Rate19500
AC2 Rate33500
AC3 Rate30000
Flight Rate44500
गंगासागर,कामाख्या,पुरी यात्रा 2025
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1.गंगासागर
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्थान कोलकाता (हावड़ा)
से लगभग 100-120 किलोमीटर दक्षिण में, सुंदरबन क्षेत्र के पास स्थित है, जहाँ गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
इसे 'सागर द्वीप' भी कहा जाता है।
गंगासागर का महत्व: धार्मिक दृष्टि से:
गंगासागर हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन
(14-15 जनवरी को), गंगा नदी में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रसिद्ध कथा: कहा जाता है कि राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए थे।
गंगासागर वही स्थान है जहाँ गंगा समुद्र से मिलती हैं और जहाँ राजा भागीरथ ने तपस्या की थी।
गंगासागर मेला:
हर वर्ष मकर संक्रांति पर यहाँ विशाल गंगासागर मेला लगता है।
लाखों श्रद्धालु यहाँ स्नान करने और कपिल मुनि के मंदिर में दर्शन करने आते हैं।
यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है (पहला कुंभ मेला है)।
कपिल मुनि मंदिर:यहाँ प्रसिद्ध कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर स्थित है। मान्यता है कि कपिल मुनि के श्राप से ही
राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे, और उनकी मुक्ति गंगा के पृथ्वी पर आगमन से हुई।
गंगासागर द्वीप सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है।
यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत सुंदर होता है।
2. कामाख्या देवी
भारत के प्रमुख और अत्यंत शक्तिशाली देवी शक्तिपीठों में से एक हैं।
कामाख्या देवी को आदिशक्ति, महामाया, भगवती के रूप में पूजा जाता है।
इन्हें माँ दुर्गा का सबसे रहस्यमय रूप माना जाता है।
इनका मुख्य मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर के पास नीलगिरि पर्वत (या कामगिरि) पर स्थित है।
कामाख्या शब्द का अर्थ है — "जिसकी इच्छा से सृष्टि चलती है"।
कामाख्या शक्तिपीठ क्यों प्रसिद्ध है?
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे,
तब भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़े काटे।
माता सती का योनिचक्र (प्रजनन अंग) इसी स्थान पर गिरा था।
इसलिए यहाँ स्त्रीत्व (feminine power) और सृजन शक्ति (creative energy) की पूजा होती है।
इस कारण यह स्थान बहुत पवित्र और रहस्यमय माना जाता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
यहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक योनि रूपी चट्टान है जिसे देवी का रूप माना जाता है।
हर वर्ष जून में यहाँ "अंबुवाची मेला" (Ambubachi Mela) मनाया जाता है। यह पर्व माँ की मासिक ऋतु
(menstruation) के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
उस समय मंदिर के द्वार तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं और चौथे दिन देवी के शुद्ध होने के बाद विशेष पूजा होती है।
आध्यात्मिक महत्त्व:
यह मंदिर तंत्र साधना (Tantric practices) के लिए भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
साधक कहते हैं कि यहाँ साधना करने से शक्तिशाली सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
भक्तजन यहाँ मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं, विशेषकर विवाह, संतान प्राप्ति और जीवन में सफलता के लिए।
कामाख्या देवी से जुड़ी कुछ खास बातें:
यह मंदिर नवरात्रि में विशेष रूप से भव्य रूप से सजाया जाता है।
यह शक्ति पीठ, 51 शक्ति पीठों में से सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
कामाख्या देवी को "काम" (इच्छा) की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।
यहाँ हर प्रकार के साधक — सामान्य भक्त से लेकर तांत्रिक साधक तक — अपनी साधनाओं के लिए आते हैं।
3.कालीघाट मंदिर
कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो माँ काली को समर्पित है।
यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यहाँ देवी सती के दाहिने पैर की उंगलियाँ गिरी थीं।
मंदिर आदि गंगा (हुगली नदी की एक शाखा) के तट पर स्थित है।प्रमुख विशेषताएँ:इतिहास: मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1809 में बनाया गया था,
लेकिन इसकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी से मानी जाती है। यह कोलकाता के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।मुख्य मूर्ति: माँ काली की मूर्ति यहाँ भयंकर
और शक्तिशाली रूप में स्थापित है।
उनकी चार भुजाएँ, लाल जीभ और खोपड़ियों की माला उनकी विशेषता है।
धार्मिक महत्व: यह मंदिर तांत्रिक पूजा और शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र है। यहाँ नवरात्रि,
काली पूजा और दीपावली के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला बंगाली शैली को दर्शाती है, जिसमें गुंबदनुमा छत और साधारण लेकिन आध्यात्मिक डिज़ाइन शामिल हैं।
आसपास का क्षेत्र: मंदिर के आसपास एक जीवंत बाज़ार है, जहाँ पूजा सामग्री, मूर्तियाँ और पारंपरिक बंगाली मिठाइयाँ मिलती हैं।
दर्शन और पूजा:मंदिर सुबह 5:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला रहता है (समय में बदलाव संभव है)।विशेष पूजा और हवन के लिए
पहले से व्यवस्था की जा सकती है।मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से भीड़ होती है।
4.दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता,
पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो मां काली को समर्पित है।
इसे 1855 में रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था। मंदिर का मुख्य आकर्षण मां भवतारिणी (काली) की मूर्ति है,
जिसे श्री रामकृष्ण परमहंस ने पूजा की थी।प्रमुख विशेषताएँ:वास्तुकला: मंदिर नौ-सिखर (नवरत्न) शैली में बना है,
जिसमें एक विशाल प्रांगण और 12 छोटे शिव मंदिर शामिल हैं। मंदिर का गर्भगृह चांदी के सहस्रदल कमल पर स्थित मां काली की मू
र्ति से सुशोभित है।
धार्मिक महत्व: यह मंदिर श्री रामकृष्ण परमहंस और उनकी शिष्या मां शारदा देवी से गहराई से जुड़ा है।
रामकृष्ण यहां पुजारी थे और यहीं उन्होंने
आध्यात्मिक साधना की।राधा-कृष्ण मंदिर: मुख्य मंदिर के पास राधा-कृष्ण को समर्पित एक छोटा मंदिर भी है।
नदी तट और शांति: हुगली नदी के
किनारे होने के कारण मंदिर का वातावरण शांत और आध्यात्मिक है।दर्शन और आयोजन:मंदिर सुबह
6:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और फिर शाम
3:00 बजे से रात 8:30 बजे तक खुला रहता है।काली पूजा और दुर्गा पूजा के दौरान भारी भीड़ होती है।
अमावस्या के दिन विशेष पूजा होती है, जो भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
5.बाबा बैद्यनाथ धाम,
जिसे बैजनाथ धाम या बाबा धाम के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड के देवघर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है।
यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।
यह मंदिर न केवल ज्योतिर्लिंग के रूप में महत्वपूर्ण है,
बल्कि शक्तिपीठ भी है, क्योंकि मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था, जिसके कारण इसे "हृदयपीठ" भी कहा जाता है।
प्रमुख विशेषताएं:ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ:यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं।
मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ (शिवलिंग) के साथ-साथ माता पार्वती का मंदिर भी है।
शिवलिंग को "कामना लिंग" कहा जाता है,
क्योंकि यह माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार,
लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी।
उसने अपने नौ सिर शिवलिंग पर चढ़ाए और दसवां सिर चढ़ाने वाला था,
तभी शिव प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने की इच्छा जताई।शिव ने शर्त रखी कि यदि शिवलिंग को रास्ते में
जमीन पर रखा गया, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण ने शिवलिंग को एक ग्वाले (बैजू) को सौंपा,
जो भगवान विष्णु का रूप थे। बैजू ने शिवलिंग
को जमीन पर रखकर स्थापित कर दिया, जिसके कारण यह बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस वजह से मंदिर को रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से
भी जाना जाता है।श्रावणी मेला:सावन के महीने में यहां विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला लगता है,
जिसमें लाखों कांवड़िए बिहार के सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर
105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं।कांवड़िए "बोल बम" का जयकारा लगाते हुए यात्रा करते हैं।
कुछ कांवड़िए 24 घंटे में यात्रा पूरी करते हैं, जिन्हें "डाक बम" कहा जाता है।मंदिर परिसर:मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ के
मुख्य मंदिर के अलावा 21 अन्य मंदिर हैं, जिनमें पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं।
मंदिर की वास्तुकला कमल के आकार की है और इसे विश्वकर्मा द्वारा निर्मित माना जाता है।
मंदिर 72 फीट ऊंचा है और
इसमें प्राचीन व आधुनिक स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है।मंदिर के शिखर पर त्रिशूल के बजाय पंचशूल लगे हैं,
जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग बनाता है। महाशिवरात्रि से पहले इन पंचशूलों को उतारकर विशेष पूजा की जाती है।
गठबंधन की परंपरा:मंदिर में एक अनूठी परंपरा है, जिसमें बाबा बैद्यनाथ और माता पार्वती के मंदिर के शिखर को लाल धागे
(लाल रज्जु) से बांधा जाता है, जिसे "गठबंधन" या "गठजोड़वा" कहा जाता है। यह कार्य भंडारी समाज के लोग करते हैं।
मान्यता है कि यह अनुष्ठान करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
अन्य नाम:बैद्यनाथ धाम को हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, और हार्दपीठ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
6.जगन्नाथ पुरी धाम,
भारत के उड़ीसा (ओडिशा) राज्य में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है, जो चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, और पुरी)
में से एक है। यह भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा को समर्पित है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर अपनी ऐतिहासिक,
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।प्रमुख विशेषताएं:जगन्नाथ मंदिर:12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा
अनंतवर्मन चोडगंग द्वारा निर्मित।
मंदिर की वास्तुकला कalinga शैली की है, जिसमें 65 मीटर ऊंचा शिखर (नीलचक्र) है।
मंदिर में तीन मुख्य देवताएं—जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा—लकड़ी की मूर्तियों के रूप में पूजी जाती हैं, जो हर 12-19 वर्ष में नवकलेवर
(नई मूर्ति निर्माण) के दौरान बदली जाती हैं।गैर-हिंदुओं और विदेशियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है,
लेकिन वे बाहर से दर्शन कर सकते हैं।रथ यात्रा:जगन्नाथ पुरी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास में
आयोजित होती है।तीन विशाल रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र,
और सुभद्रा को मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।लाखों भक्त इस उत्सव में शामिल होते हैं,
और इसे भगवान के दर्शन का विशेष अवसर माना जाता है।
धार्मिक महत्व:पुरी को "मोक्षदायिनी नगरी" माना जाता है,
जहां दर्शन और तीर्थ यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।यह वैष्णव, शैव, और शाक्त परंपराओं का संगम है।
आदि शंकराचार्य ने यहां गोवर्धन मठ की स्थापना की, जो चार मठों में से एक है।सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व:पुरी समुद्र तट
(स्वर्ण रेखा बीच) के किनारे बसा है, जो पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।यहां का प्रसाद, "महाप्रसाद," विशेष रूप से प्रसिद्ध है,
जिसे मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है।पुरी ओडिशा की सांस्कृतिक राजधानी भी है, जहां कला, नृत्य (ओडिसी), और शिल्प फलते-फूलते हैं।
अन्य आकर्षण:गुंडिचा मंदिर: रथ यात्रा के दौरान भगवान का अस्थायी निवास।शंकराचार्य मठ: आदि शंकराचार्य से संबंधित।सूर्य मंदिर, कोणार्क
पुरी से 35 किमी दूर, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।चिल्का झील: पास में स्थित, पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग।
रोचक तथ्य:जगन्नाथ मंदिर में झंडा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, जो एक रहस्यमय घटना है।
मंदिर का नीलचक्र (शिखर पर चक्र) हर दिन बदला जाता है और इसे पवित्र माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां अधूरी दिखती हैं, जिसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं।
7.कोणार्क सूर्य मंदिर
भारत के ओडिशा राज्य में पुरी जिले के कोणार्क में स्थित एक ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसका डिज़ाइन एक विशाल रथ के रूप में है, जो सूर्य भगवान के रथ का प्रतीक है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थापत्य शैली: मंदिर कलिंग स्थापत्य शैली का बेहतरीन नमूना है। यह एक रथ के आकार में बना है,
जिसमें 12 जोड़ी विशाल पहिए और सात घोड़े (अब केवल कुछ ही शेष हैं) हैं, जो सूर्य के रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं।
नक्काशी और मूर्तिकला: मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी और मूर्तियाँ हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं,
नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार और कामुक दृश्यों को दर्शाती हैं। ये नक्काशियाँ भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि को प्रदर्शित करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरणें मंदिर के गर्भगृह को रोशन करती हैं।
पहिए सूर्य घड़ी के रूप में भी कार्य करते हैं, जो समय का सटीक मापन करते हैं।वर्तमान स्थिति: मंदिर का मुख्य गर्भगृह आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त है,
और यह अब पूजा स्थल के रूप में उपयोग नहीं होता। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसका संरक्षण किया जा रहा है।
सांस्कृतिक महत्व: कोणार्क मंदिर भारतीय संस्कृति और धर्म में सूर्य पूजा के महत्व को दर्शाता है।
यह पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
8.लिंगराज मंदिर
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित एक प्राचीन और प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
यह मंदिर 11वीं शताब्दी में सोमवंशी राजवंश के राजा जजति केशरी द्वारा बनवाया गया था।
यह भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक है।प्रमुख विशेषताएँ:वास्तुकला: मंदिर कलिंग वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
इसका मुख्य गर्भगृह 180 फीट ऊँचा है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है, जिसे "लिंगराज" (शिव और विष्णु का संयुक्त रूप) माना जाता है।
मंदिर परिसर में लगभग 150 छोटे-बड़े मंदिर हैं।धार्मिक महत्व: यह मंदिर हिंदुओं, विशेषकर शैव और वैष्णव संप्रदायों के लिए अत्यंत पवित्र है।
यहाँ भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा होती है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।
महाशिवरात्रि: यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव महाशिवरात्रि है, जब हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।परिसर
मंदिर परिसर में भगवती मंदिर (पार्वती को समर्पित), नट मंदिर, और एक बड़ा जलाशय (बिंदु सागर) शामिल है।
प्रवेश: गैर-हिंदुओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है, लेकिन वे परिसर के बाहर से दर्शन कर सकते हैं
।स्थान:लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर के पुराने शहर में स्थित है। यह रेल, सड़क और हवाई मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
9.साक्षी गोपाल मंदिर
उड़ीसा (ओडिशा) के पुरी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है,
जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर पुरी से लगभग 15 किमी और भुवनेश्वर से करीब 50 किमी दूर सत्यवादीपुर में है,
जिसे अब साक्षी गोपाल के नाम से जाना जाता है। मंदिर का नाम "साक्षी गोपाल" पड़ा क्योंकि भगवान गोपाल ने
यहाँ अपने भक्त की गवाही (साक्षी) दी थी। यहाँ भगवान गोपाल और राधा जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:पौराणिक कथा:कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण युवक ने वृद्ध धनवान ब्राह्मण की तीर्थयात्रा में उनकी सेवा की।
प्रसन्न होकर वृद्ध ने वृंदावन के गोपाल मंदिर में अपनी पुत्री का विवाह उस युवक से करने का वचन दिया। बाद में, वृद्ध के परिवार ने वचन तोड़ दिया।
युवक ने पंचायत में गोपाल जी को साक्षी बताया। भगवान गोपाल युवक के विश्वास से प्रसन्न होकर वृंदावन से पैदल उड़ीसा के पुलअलसा तक आए।
गोपाल जी ने कहा कि वह नूपुरों की ध्वनि के साथ पीछे चलेंगे, लेकिन युवक को पीछे नहीं देखना था।
पुलअलसा में रेतीले रास्ते पर नूपुरों की आवाज बंद हुई,
और युवक ने पीछे देख लिया, जिससे गोपाल जी की मूर्ति वहीं स्थिर हो गई। बाद में, पंचायत के सामने गोपाल जी ने गवाही दी,
और युवक का विवाह संपन्न हुआ।इसके बाद कटक के राजा ने इस विग्रह को पुरी लाकर साक्षी गोपाल मंदिर में स्थापित किया।
मंदिर का महत्व:ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ पुरी की यात्रा तब तक अधूरी है, जब तक श्रद्धालु साक्षी गोपाल मंदिर में दर्शन नहीं करते।
मंदिर के पास चंदन तालाब, राधाकुंड, और श्यामकुंड जैसे सरोवर हैं, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं।मंदिर की संरचना
:मुख्य मंदिर में भगवान गोपाल की मूर्ति है,
और पास ही श्री राधिका जी का मंदिर है।मंदिर की इमारत सुंदर और मनोरम है, जो भक्तों को आकर्षित करती है।
राधा जी की मूर्ति की कथा:एक कथा के अनुसार, गोपाल जी को पुरी से 16 किमी दूर स्थापित करने
पर राधा जी उनसे दूर हो गईं।
राधा जी ने पुजारी की पुत्री लक्ष्मी के रूप में जन्म लिया। बाद में, राधा की मूर्ति स्थापित हुई,
जिसमें लक्ष्मी की आत्मा समा गई, और मूर्ति का चेहरा लक्ष्मी जैसा हो गया।
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भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्थान कोलकाता (हावड़ा)
से लगभग 100-120 किलोमीटर दक्षिण में, सुंदरबन क्षेत्र के पास स्थित है, जहाँ गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
इसे 'सागर द्वीप' भी कहा जाता है।
गंगासागर का महत्व: धार्मिक दृष्टि से:
गंगासागर हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन
(14-15 जनवरी को), गंगा नदी में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रसिद्ध कथा: कहा जाता है कि राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए थे।
गंगासागर वही स्थान है जहाँ गंगा समुद्र से मिलती हैं और जहाँ राजा भागीरथ ने तपस्या की थी।
गंगासागर मेला:
हर वर्ष मकर संक्रांति पर यहाँ विशाल गंगासागर मेला लगता है।
लाखों श्रद्धालु यहाँ स्नान करने और कपिल मुनि के मंदिर में दर्शन करने आते हैं।
यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है (पहला कुंभ मेला है)।
कपिल मुनि मंदिर:यहाँ प्रसिद्ध कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर स्थित है। मान्यता है कि कपिल मुनि के श्राप से ही
राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे, और उनकी मुक्ति गंगा के पृथ्वी पर आगमन से हुई।
गंगासागर द्वीप सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है।
यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत सुंदर होता है।
2. कामाख्या देवी
भारत के प्रमुख और अत्यंत शक्तिशाली देवी शक्तिपीठों में से एक हैं।
कामाख्या देवी को आदिशक्ति, महामाया, भगवती के रूप में पूजा जाता है।
इन्हें माँ दुर्गा का सबसे रहस्यमय रूप माना जाता है।
इनका मुख्य मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर के पास नीलगिरि पर्वत (या कामगिरि) पर स्थित है।
कामाख्या शब्द का अर्थ है — "जिसकी इच्छा से सृष्टि चलती है"।
कामाख्या शक्तिपीठ क्यों प्रसिद्ध है?
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे,
तब भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़े काटे।
माता सती का योनिचक्र (प्रजनन अंग) इसी स्थान पर गिरा था।
इसलिए यहाँ स्त्रीत्व (feminine power) और सृजन शक्ति (creative energy) की पूजा होती है।
इस कारण यह स्थान बहुत पवित्र और रहस्यमय माना जाता है।
प्रमुख विशेषताएँ:
यहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक योनि रूपी चट्टान है जिसे देवी का रूप माना जाता है।
हर वर्ष जून में यहाँ "अंबुवाची मेला" (Ambubachi Mela) मनाया जाता है। यह पर्व माँ की मासिक ऋतु
(menstruation) के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
उस समय मंदिर के द्वार तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं और चौथे दिन देवी के शुद्ध होने के बाद विशेष पूजा होती है।
आध्यात्मिक महत्त्व:
यह मंदिर तंत्र साधना (Tantric practices) के लिए भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
साधक कहते हैं कि यहाँ साधना करने से शक्तिशाली सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
भक्तजन यहाँ मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं, विशेषकर विवाह, संतान प्राप्ति और जीवन में सफलता के लिए।
कामाख्या देवी से जुड़ी कुछ खास बातें:
यह मंदिर नवरात्रि में विशेष रूप से भव्य रूप से सजाया जाता है।
यह शक्ति पीठ, 51 शक्ति पीठों में से सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
कामाख्या देवी को "काम" (इच्छा) की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।
यहाँ हर प्रकार के साधक — सामान्य भक्त से लेकर तांत्रिक साधक तक — अपनी साधनाओं के लिए आते हैं।
3.कालीघाट मंदिर
कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो माँ काली को समर्पित है।
यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यहाँ देवी सती के दाहिने पैर की उंगलियाँ गिरी थीं।
मंदिर आदि गंगा (हुगली नदी की एक शाखा) के तट पर स्थित है।प्रमुख विशेषताएँ:इतिहास: मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1809 में बनाया गया था,
लेकिन इसकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी से मानी जाती है। यह कोलकाता के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।मुख्य मूर्ति: माँ काली की मूर्ति यहाँ भयंकर
और शक्तिशाली रूप में स्थापित है।
उनकी चार भुजाएँ, लाल जीभ और खोपड़ियों की माला उनकी विशेषता है।
धार्मिक महत्व: यह मंदिर तांत्रिक पूजा और शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र है। यहाँ नवरात्रि,
काली पूजा और दीपावली के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
वास्तुकला: मंदिर की वास्तुकला बंगाली शैली को दर्शाती है, जिसमें गुंबदनुमा छत और साधारण लेकिन आध्यात्मिक डिज़ाइन शामिल हैं।
आसपास का क्षेत्र: मंदिर के आसपास एक जीवंत बाज़ार है, जहाँ पूजा सामग्री, मूर्तियाँ और पारंपरिक बंगाली मिठाइयाँ मिलती हैं।
दर्शन और पूजा:मंदिर सुबह 5:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला रहता है (समय में बदलाव संभव है)।विशेष पूजा और हवन के लिए
पहले से व्यवस्था की जा सकती है।मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से भीड़ होती है।
4.दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता,
पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो मां काली को समर्पित है।
इसे 1855 में रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था। मंदिर का मुख्य आकर्षण मां भवतारिणी (काली) की मूर्ति है,
जिसे श्री रामकृष्ण परमहंस ने पूजा की थी।प्रमुख विशेषताएँ:वास्तुकला: मंदिर नौ-सिखर (नवरत्न) शैली में बना है,
जिसमें एक विशाल प्रांगण और 12 छोटे शिव मंदिर शामिल हैं। मंदिर का गर्भगृह चांदी के सहस्रदल कमल पर स्थित मां काली की मू
र्ति से सुशोभित है।
धार्मिक महत्व: यह मंदिर श्री रामकृष्ण परमहंस और उनकी शिष्या मां शारदा देवी से गहराई से जुड़ा है।
रामकृष्ण यहां पुजारी थे और यहीं उन्होंने
आध्यात्मिक साधना की।राधा-कृष्ण मंदिर: मुख्य मंदिर के पास राधा-कृष्ण को समर्पित एक छोटा मंदिर भी है।
नदी तट और शांति: हुगली नदी के
किनारे होने के कारण मंदिर का वातावरण शांत और आध्यात्मिक है।दर्शन और आयोजन:मंदिर सुबह
6:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और फिर शाम
3:00 बजे से रात 8:30 बजे तक खुला रहता है।काली पूजा और दुर्गा पूजा के दौरान भारी भीड़ होती है।
अमावस्या के दिन विशेष पूजा होती है, जो भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
5.बाबा बैद्यनाथ धाम,
जिसे बैजनाथ धाम या बाबा धाम के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड के देवघर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है।
यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।
यह मंदिर न केवल ज्योतिर्लिंग के रूप में महत्वपूर्ण है,
बल्कि शक्तिपीठ भी है, क्योंकि मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था, जिसके कारण इसे "हृदयपीठ" भी कहा जाता है।
प्रमुख विशेषताएं:ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ:यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं।
मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ (शिवलिंग) के साथ-साथ माता पार्वती का मंदिर भी है।
शिवलिंग को "कामना लिंग" कहा जाता है,
क्योंकि यह माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार,
लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी।
उसने अपने नौ सिर शिवलिंग पर चढ़ाए और दसवां सिर चढ़ाने वाला था,
तभी शिव प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने की इच्छा जताई।शिव ने शर्त रखी कि यदि शिवलिंग को रास्ते में
जमीन पर रखा गया, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण ने शिवलिंग को एक ग्वाले (बैजू) को सौंपा,
जो भगवान विष्णु का रूप थे। बैजू ने शिवलिंग
को जमीन पर रखकर स्थापित कर दिया, जिसके कारण यह बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस वजह से मंदिर को रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से
भी जाना जाता है।श्रावणी मेला:सावन के महीने में यहां विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला लगता है,
जिसमें लाखों कांवड़िए बिहार के सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर
105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं।कांवड़िए "बोल बम" का जयकारा लगाते हुए यात्रा करते हैं।
कुछ कांवड़िए 24 घंटे में यात्रा पूरी करते हैं, जिन्हें "डाक बम" कहा जाता है।मंदिर परिसर:मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ के
मुख्य मंदिर के अलावा 21 अन्य मंदिर हैं, जिनमें पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं।
मंदिर की वास्तुकला कमल के आकार की है और इसे विश्वकर्मा द्वारा निर्मित माना जाता है।
मंदिर 72 फीट ऊंचा है और
इसमें प्राचीन व आधुनिक स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है।मंदिर के शिखर पर त्रिशूल के बजाय पंचशूल लगे हैं,
जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग बनाता है। महाशिवरात्रि से पहले इन पंचशूलों को उतारकर विशेष पूजा की जाती है।
गठबंधन की परंपरा:मंदिर में एक अनूठी परंपरा है, जिसमें बाबा बैद्यनाथ और माता पार्वती के मंदिर के शिखर को लाल धागे
(लाल रज्जु) से बांधा जाता है, जिसे "गठबंधन" या "गठजोड़वा" कहा जाता है। यह कार्य भंडारी समाज के लोग करते हैं।
मान्यता है कि यह अनुष्ठान करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
अन्य नाम:बैद्यनाथ धाम को हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, और हार्दपीठ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
6.जगन्नाथ पुरी धाम,
भारत के उड़ीसा (ओडिशा) राज्य में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है, जो चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, और पुरी)
में से एक है। यह भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा को समर्पित है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर अपनी ऐतिहासिक,
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।प्रमुख विशेषताएं:जगन्नाथ मंदिर:12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा
अनंतवर्मन चोडगंग द्वारा निर्मित।
मंदिर की वास्तुकला कalinga शैली की है, जिसमें 65 मीटर ऊंचा शिखर (नीलचक्र) है।
मंदिर में तीन मुख्य देवताएं—जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा—लकड़ी की मूर्तियों के रूप में पूजी जाती हैं, जो हर 12-19 वर्ष में नवकलेवर
(नई मूर्ति निर्माण) के दौरान बदली जाती हैं।गैर-हिंदुओं और विदेशियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है,
लेकिन वे बाहर से दर्शन कर सकते हैं।रथ यात्रा:जगन्नाथ पुरी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास में
आयोजित होती है।तीन विशाल रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र,
और सुभद्रा को मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।लाखों भक्त इस उत्सव में शामिल होते हैं,
और इसे भगवान के दर्शन का विशेष अवसर माना जाता है।
धार्मिक महत्व:पुरी को "मोक्षदायिनी नगरी" माना जाता है,
जहां दर्शन और तीर्थ यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।यह वैष्णव, शैव, और शाक्त परंपराओं का संगम है।
आदि शंकराचार्य ने यहां गोवर्धन मठ की स्थापना की, जो चार मठों में से एक है।सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व:पुरी समुद्र तट
(स्वर्ण रेखा बीच) के किनारे बसा है, जो पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है।यहां का प्रसाद, "महाप्रसाद," विशेष रूप से प्रसिद्ध है,
जिसे मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है।पुरी ओडिशा की सांस्कृतिक राजधानी भी है, जहां कला, नृत्य (ओडिसी), और शिल्प फलते-फूलते हैं।
अन्य आकर्षण:गुंडिचा मंदिर: रथ यात्रा के दौरान भगवान का अस्थायी निवास।शंकराचार्य मठ: आदि शंकराचार्य से संबंधित।सूर्य मंदिर, कोणार्क
पुरी से 35 किमी दूर, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।चिल्का झील: पास में स्थित, पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग।
रोचक तथ्य:जगन्नाथ मंदिर में झंडा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, जो एक रहस्यमय घटना है।
मंदिर का नीलचक्र (शिखर पर चक्र) हर दिन बदला जाता है और इसे पवित्र माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां अधूरी दिखती हैं, जिसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं।
7.कोणार्क सूर्य मंदिर
भारत के ओडिशा राज्य में पुरी जिले के कोणार्क में स्थित एक ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसका डिज़ाइन एक विशाल रथ के रूप में है, जो सूर्य भगवान के रथ का प्रतीक है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थापत्य शैली: मंदिर कलिंग स्थापत्य शैली का बेहतरीन नमूना है। यह एक रथ के आकार में बना है,
जिसमें 12 जोड़ी विशाल पहिए और सात घोड़े (अब केवल कुछ ही शेष हैं) हैं, जो सूर्य के रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं।
नक्काशी और मूर्तिकला: मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी और मूर्तियाँ हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं,
नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार और कामुक दृश्यों को दर्शाती हैं। ये नक्काशियाँ भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि को प्रदर्शित करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरणें मंदिर के गर्भगृह को रोशन करती हैं।
पहिए सूर्य घड़ी के रूप में भी कार्य करते हैं, जो समय का सटीक मापन करते हैं।वर्तमान स्थिति: मंदिर का मुख्य गर्भगृह आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त है,
और यह अब पूजा स्थल के रूप में उपयोग नहीं होता। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसका संरक्षण किया जा रहा है।
सांस्कृतिक महत्व: कोणार्क मंदिर भारतीय संस्कृति और धर्म में सूर्य पूजा के महत्व को दर्शाता है।
यह पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
8.लिंगराज मंदिर
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित एक प्राचीन और प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
यह मंदिर 11वीं शताब्दी में सोमवंशी राजवंश के राजा जजति केशरी द्वारा बनवाया गया था।
यह भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक है।प्रमुख विशेषताएँ:वास्तुकला: मंदिर कलिंग वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
इसका मुख्य गर्भगृह 180 फीट ऊँचा है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है, जिसे "लिंगराज" (शिव और विष्णु का संयुक्त रूप) माना जाता है।
मंदिर परिसर में लगभग 150 छोटे-बड़े मंदिर हैं।धार्मिक महत्व: यह मंदिर हिंदुओं, विशेषकर शैव और वैष्णव संप्रदायों के लिए अत्यंत पवित्र है।
यहाँ भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा होती है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।
महाशिवरात्रि: यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव महाशिवरात्रि है, जब हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।परिसर
मंदिर परिसर में भगवती मंदिर (पार्वती को समर्पित), नट मंदिर, और एक बड़ा जलाशय (बिंदु सागर) शामिल है।
प्रवेश: गैर-हिंदुओं को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है, लेकिन वे परिसर के बाहर से दर्शन कर सकते हैं
।स्थान:लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर के पुराने शहर में स्थित है। यह रेल, सड़क और हवाई मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
9.साक्षी गोपाल मंदिर
उड़ीसा (ओडिशा) के पुरी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है,
जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर पुरी से लगभग 15 किमी और भुवनेश्वर से करीब 50 किमी दूर सत्यवादीपुर में है,
जिसे अब साक्षी गोपाल के नाम से जाना जाता है। मंदिर का नाम "साक्षी गोपाल" पड़ा क्योंकि भगवान गोपाल ने
यहाँ अपने भक्त की गवाही (साक्षी) दी थी। यहाँ भगवान गोपाल और राधा जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:पौराणिक कथा:कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण युवक ने वृद्ध धनवान ब्राह्मण की तीर्थयात्रा में उनकी सेवा की।
प्रसन्न होकर वृद्ध ने वृंदावन के गोपाल मंदिर में अपनी पुत्री का विवाह उस युवक से करने का वचन दिया। बाद में, वृद्ध के परिवार ने वचन तोड़ दिया।
युवक ने पंचायत में गोपाल जी को साक्षी बताया। भगवान गोपाल युवक के विश्वास से प्रसन्न होकर वृंदावन से पैदल उड़ीसा के पुलअलसा तक आए।
गोपाल जी ने कहा कि वह नूपुरों की ध्वनि के साथ पीछे चलेंगे, लेकिन युवक को पीछे नहीं देखना था।
पुलअलसा में रेतीले रास्ते पर नूपुरों की आवाज बंद हुई,
और युवक ने पीछे देख लिया, जिससे गोपाल जी की मूर्ति वहीं स्थिर हो गई। बाद में, पंचायत के सामने गोपाल जी ने गवाही दी,
और युवक का विवाह संपन्न हुआ।इसके बाद कटक के राजा ने इस विग्रह को पुरी लाकर साक्षी गोपाल मंदिर में स्थापित किया।
मंदिर का महत्व:ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ पुरी की यात्रा तब तक अधूरी है, जब तक श्रद्धालु साक्षी गोपाल मंदिर में दर्शन नहीं करते।
मंदिर के पास चंदन तालाब, राधाकुंड, और श्यामकुंड जैसे सरोवर हैं, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं।मंदिर की संरचना
:मुख्य मंदिर में भगवान गोपाल की मूर्ति है,
और पास ही श्री राधिका जी का मंदिर है।मंदिर की इमारत सुंदर और मनोरम है, जो भक्तों को आकर्षित करती है।
राधा जी की मूर्ति की कथा:एक कथा के अनुसार, गोपाल जी को पुरी से 16 किमी दूर स्थापित करने
पर राधा जी उनसे दूर हो गईं।
राधा जी ने पुजारी की पुत्री लक्ष्मी के रूप में जन्म लिया। बाद में, राधा की मूर्ति स्थापित हुई,
जिसमें लक्ष्मी की आत्मा समा गई, और मूर्ति का चेहरा लक्ष्मी जैसा हो गया।
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6. 1 या 2 माह पूर्व कोई भी यात्रा की बुकिंग कराते है और किसी कारण वश आप यात्रा में नहीं जा पा रहे है।
यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
7. यात्रा करते समय आपकी अपनी ऑरिजनल आई डी. कार्ड जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, व्होटर आई डी कार्ड आदि रखना अनिर्वाय है।
अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
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