1.MAHAKALESHWAR
2.ONKARESHWAR
3.AHAMDABAD
4.DWARKA
5.SOMNATH
6.NAGESHWAR
7.BHIMASHANKAR
8.GHRISHNESHWAR
9.TRIMBAKESHWAR
10.BAIJNATH DHAM
11.DEVGHAR
12.RAMESHWARAM
13.MALLIKARJUN
14.KEDARNATH
15.KASHI VISHWANATH
16.VARANASI
1. FROM :- 15-05-2025 TO 05-06-2025
2. FROM :- 20-05-2025 TO 10-06-2025
3. FROM :- 05-09-2025 TO 26-09-2025
4. FROM :- 15-09-2025 TO 06-10-2025
5. FROM :- 20-09-2025 TO 11-10-2025
Boarding Stations:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
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51500
AC2 Rate87500
AC3 Rate72500
Flight Rate125000
12 ज्योतिर्लिंग यात्रा 2025
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1.सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम और सबसे पवित्र माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में
अरब सागर के तट पर स्थित है। इसका धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है।
निम्नलिखित विस्तृत जानकारी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में है:
### 1. *पौराणिक उत्पत्ति और नामकरण*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम चंद्र देव (सोम) से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,
चंद्र देव ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी।
शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और इस ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहाँ विराजमान होने का वचन दिया।
इसलिए इसे "सोमनाथ" (सोम का स्वामी) कहा जाता है ।
### 2. *धार्मिक महत्व*
- यह ज्योतिर्लिंग स्कंद पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में वर्णित है।
- मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है ।
- स्कंद पुराण के अनुसार, प्रलय के बाद नई सृष्टि में इसका नाम "प्राणनाथ" होगा ।
### 3. *ऐतिहासिक संघर्ष और पुनर्निर्माण*
- सोमनाथ मंदिर को इतिहास में कई बार आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया।
- वर्तमान मंदिर का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल और महारानी अहिल्याबाई होल्कर के प्रयासों से हुआ ।
- मंदिर का शिखर 150 फीट ऊँचा है और इसका कलश 10 टन वजनी है ।
### 4. *स्थापत्य कला और मंदिर की विशेषताएँ*
- मंदिर चोल शैली में बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है।
- मंदिर में तीन प्रमुख भाग हैं: गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप।
- मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं ।
### 5. *अन्य महत्वपूर्ण तथ्य*
- यहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी अंतिम लीला की थी, जिसके कारण इस स्थान को "भालका तीर्थ" भी कहा जाता है ।
- मंदिर के पास ही गीता मंदिर है, जहाँ श्रीमद्भगवद गीता के श्लोक संगमरमर के स्तंभों पर अंकित हैं ।
- यहाँ का "अबाधित समुद्री मार्ग" दक्षिण ध्रुव की ओर जाता है, जो प्राचीन भारतीय ज्ञान का प्रतीक है ।
### *निष्कर्ष*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यहाँ का दर्शन भक्तों को आध्यात्मिक शांति और दिव्य अनुभूति प्रदान करता है।
2.केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के सबसे पवित्र और प्राचीन शिवलिंगों में से एक है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित है।
यह बारह ज्योतिर्लिंगों में पाँचवें स्थान पर आता है और चार धाम तथा पंच केदार में भी शामिल है । यहाँ कुछ प्रमुख जानकारियाँ दी गई हैं:
### 1. *धार्मिक महत्व*
- केदारनाथ को "मोक्ष का द्वार" माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवनमुक्ति की प्राप्ति होती है ।
- शिवपुराण के अनुसार, बद्रीनाथ की यात्रा तभी पूर्ण मानी जाती है जब केदारनाथ के दर्शन किए जाएँ ।
- यहाँ स्थित शिवलिंग "स्वयंभू" (स्वयं प्रकट) है और इसे बैल की पीठ के आकार में पूजा जाता है ।
### 2. *पौराणिक कथा*
- महाभारत के अनुसार, पांडवों ने यहाँ शिव की तपस्या कर अपने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाई थी। शिव ने बैल का रूप धारण किया था
, और भीम ने उनकी पूँछ पकड़कर दर्शन दिए ।
- एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने यहाँ तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया था ।
### 3. *मंदिर का इतिहास और वास्तुकला*
- मंदिर का निर्माण पांडवों के पौत्र जनमेजय ने कराया था, और आदि शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार करवाया ।
- मंदिर *कत्यूरी शैली* में बना है और 6 फीट ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह 85 फीट ऊँचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है ।
- गर्भगृह में शिवलिंग के साथ गणेश, पार्वती, पांडवों और नंदी की मूर्तियाँ हैं ।
### 4. *प्राकृतिक विशेषताएँ और यात्रा*
- मंदिर *3,583 मीटर* की ऊँचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है ।
- यह अप्रैल से नवंबर तक ही खुलता है। सर्दियों में शिवलिंग को ऊखीमठ ले जाया जाता है ।
- गौरीकुंड से 16 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है, जिसमें हेलिकॉप्टर या घोड़ों की सहायता भी ली जा सकती है ।
### 5. *2013 की आपदा और पुनर्निर्माण*
- 2013 की बाढ़ और भूस्खलन में मंदिर का प्रवेश द्वार और आसपास का क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो गया,
लेकिन मुख्य गुंबद सुरक्षित रहा ।
### 6. *अन्य रोचक तथ्य*
- मंदिर के पास *भैरवनाथ* का मंदिर है, जो केदारनाथ की रक्षा करते हैं ।
- यहाँ एक अखंड दीपक हज़ारों वर्षों से जल रहा है ।
केदारनाथ की यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ का वातावरण अद्भुत शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है ।
3.केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के सबसे पवित्र और प्राचीन शिवलिंगों में से एक है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित है।
यह बारह ज्योतिर्लिंगों में पाँचवें स्थान पर आता है और चार धाम तथा पंच केदार में भी शामिल है । यहाँ कुछ प्रमुख जानकारियाँ दी गई हैं:
### 1. *धार्मिक महत्व*
- केदारनाथ को "मोक्ष का द्वार" माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवनमुक्ति की प्राप्ति होती है ।
- शिवपुराण के अनुसार, बद्रीनाथ की यात्रा तभी पूर्ण मानी जाती है जब केदारनाथ के दर्शन किए जाएँ ।
- यहाँ स्थित शिवलिंग "स्वयंभू" (स्वयं प्रकट) है और इसे बैल की पीठ के आकार में पूजा जाता है ।
### 2. *पौराणिक कथा*
- महाभारत के अनुसार, पांडवों ने यहाँ शिव की तपस्या कर अपने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाई थी।
शिव ने बैल का रूप धारण किया था, और भीम ने उनकी पूँछ पकड़कर दर्शन दिए ।
- एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने यहाँ तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया था ।
### 3. *मंदिर का इतिहास और वास्तुकला*
- मंदिर का निर्माण पांडवों के पौत्र जनमेजय ने कराया था, और आदि शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार करवाया ।
- मंदिर *कत्यूरी शैली* में बना है और 6 फीट ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह 85 फीट ऊँचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है ।
- गर्भगृह में शिवलिंग के साथ गणेश, पार्वती, पांडवों और नंदी की मूर्तियाँ हैं ।
### 4. *प्राकृतिक विशेषताएँ और यात्रा*
- मंदिर *3,583 मीटर* की ऊँचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है ।
- यह अप्रैल से नवंबर तक ही खुलता है। सर्दियों में शिवलिंग को ऊखीमठ ले जाया जाता है ।
- गौरीकुंड से 16 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है, जिसमें हेलिकॉप्टर या घोड़ों की सहायता भी ली जा सकती है ।
### 5. *2013 की आपदा और पुनर्निर्माण*
- 2013 की बाढ़ और भूस्खलन में मंदिर का प्रवेश द्वार और आसपास का क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो गया, लेकिन मुख्य गुंबद सुरक्षित रहा ।
### 6. *अन्य रोचक तथ्य*
- मंदिर के पास *भैरवनाथ* का मंदिर है, जो केदारनाथ की रक्षा करते हैं ।
- यहाँ एक अखंड दीपक हज़ारों वर्षों से जल रहा है ।
केदारनाथ की यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ का वातावरण अद्भुत शांति और
आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है ।
3.काशी विश्वनाथ मंदिर
भारत के उत्तर प्रदेश में वाराणसी (काशी) में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है,
जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर बना है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, जो शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र है।
### महत्व:
- *आध्यात्मिक केंद्र*: काशी विश्वनाथ मंदिर को हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। कहा जाता है कि काशी में मृत्यु होने पर व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।
- *ज्योतिर्लिंग*: यह शिव के स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है।
- *सांस्कृतिक महत्व*: यह मंदिर भारतीय संस्कृति, कला और धर्म का प्रतीक है।
### इतिहास:
- मंदिर का मूल निर्माण बहुत प्राचीन माना जाता है, लेकिन इसे कई बार आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किया गया।
- वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 1780 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
- 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित करवाया, जिसके कारण इसे "स्वर्ण मंदिर" भी कहा जाता है।
### वास्तुकला:
- मंदिर की संरचना पारंपरिक हिंदू वास्तुकला को दर्शाती है, जिसमें सोने से मढ़ा हुआ शिखर और छोटे-छोटे गर्भगृह शामिल हैं।
- मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर भी हैं, जैसे अन्नपूर्णा मंदिर और विश्वनाथ गलियारा।
### काशी विश्वनाथ कॉरिडोर:
- हाल ही में 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया। यह परियोजना मंदिर को गंगा घाट से जोड़ती है और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं को बढ़ाती है।
- कॉरिडोर में म्यूजियम, विश्राम स्थल, और अन्य सुविधाएं शामिल हैं, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाती हैं।
### दर्शन और पूजा:
- मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। विशेष रूप से महाशिवरात्रि और सावन मास में यहां भीड़ उमड़ती है।
- मंगला आरती, भोग आरती और शयन आरती जैसे विशेष पूजन मंदिर की परंपराएं हैं।
### रोचक तथ्य:
- काशी को "शिव की नगरी" कहा जाता है, और ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं यहां निवास करते हैं।
- मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद भी है, जो ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से चर्चा में रहती है।
4.नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
यह गुजरात के द्वारका शहर के निकट दर्शन तीर्थ क्षेत्र में स्थित है। इसे "नागनाथ" या "नागेश्वर महादेव" के नाम से भी जाना जाता है।
महत्व:पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध दारुक नामक राक्षस और उनकी पत्नी दारुकी से है।
दारुक ने शिव भक्त सुप्रिय को कैद कर लिया था। सुप्रिय की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और दारुक का वध कर सुप्रिय को मुक्त किया।
तभी से यहाँ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।यह मंदिर नकारात्मक शक्तियों और विष (सर्पदंश) से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
यहाँ शिवलिंग का आकार विशेष है, जो अन्य ज्योतिर्लिंगों से भिन्न है।स्थान और विशेषताएँ:स्थान: मंदिर द्वारका से लगभग 17 किमी दूर गोमती
द्वारका के पास समुद्र तट पर स्थित है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण भक्तों को आकर्षित करता है।
मंदिर परिसर: मंदिर में एक विशाल शिव प्रतिमा (
लगभग 25 मीटर ऊँची) स्थापित है, जो पर्यटकों और भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।विशेष पूजा: यहाँ सावन मास,
महाशिवरात्रि और अन्य शिव-पर्वों पर विशेष पूजा-अर्चना होती है। रुद्राभिषेक और बिल्वपत्र अर्पण यहाँ की प्रमुख पूजा विधियाँ हैं।
दर्शन और यात्रा:समय: मंदिर सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। आरती का समय सुबह और शाम को होता है।
यात्रा: द्वारका रेलवे स्टेशन और पोरबंदर हवाई अड्डा निकटतम यातायात साधन हैं। यहाँ से बस, टैक्सी या ऑटो से मंदिर पहुँचा जा सकता है।
आसपास के दर्शन: द्वारका में भगवान कृष्ण का द्वारकाधीश मंदिर और गोमती घाट भी दर्शनीय हैं।
विश्वास:नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों को पापों से मुक्ति, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यहाँ सच्चे मन से माँगी गई मुराद पूरी होने की मान्यता है।
5.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उनकी ज्योतिर्लिंग रूप में पूजा की जाती है।
### महत्वपूर्ण जानकारी:
1. *स्थान*: भीमाशंकर मंदिर पुणे से लगभग 100 किमी दूर खेड़ तालुका में एक घने जंगल और पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। यह भीमा नदी के उद्गम स्थल के पास है।
2. *पौराणिक कथा*:
- पुराणों के अनुसार, इस स्थान पर भगवान शिव ने राक्षस भीमासुर (कुंभकर्ण के पुत्र) का वध किया था।
भीमासुर ने तपस्या करके शिव से वरदान प्राप्त किया था, लेकिन उसने इसका दुरुपयोग किया।
तब भक्तों की रक्षा के लिए शिव ने उसे मारकर यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास किया।
- इसे शिवपुराण और अन्य ग्रंथों में "मोटेश्वर महादेव" के नाम से भी जाना जाता है।
3. *मंदिर की विशेषताएँ*:
- मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है, जिसमें प्राचीन और मध्यकालीन स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है।
- मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जो भक्तों के लिए आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है।
- मंदिर परिसर में अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जैसे नंदी मंदिर और पार्वती मंदिर।
4. *प्राकृतिक सौंदर्य*:
- भीमाशंकर एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ जैव-विविधता का केंद्र भी है।
यहाँ भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य है, जहाँ दुर्लभ प्रजातियाँ जैसे शेकरू (भारतीय विशाल गिलहरी) पाई जाती हैं।
- मॉनसून के दौरान यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और झरने आकर्षण का केंद्र होते हैं।
5. *दर्शन और उत्सव*:
- महाशिवरात्रि यहाँ का प्रमुख त्योहार है, जब लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
- श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना और अभिषेक किए जाते हैं।
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक महत्व रखता है,
बल्कि प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग उत्साहियों के लिए भी एक आदर्श गंतव्य है।
6.मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: एक परिचय
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा है। यह आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले
(पूर्व में कुरनूल जिला) में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। इसे "दक्षिण का कैलाश" भी कहा जाता है।
इस मंदिर में भगवान शिव को *मल्लिकार्जुन स्वामी* और माता पार्वती को *भ्रामराम्बिका* (या भ्रामराम्बा) के रूप में पूजा जाता है।
यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जो ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों है, क्योंकि यहाँ मा
### पौराणिक कथा
शिवपुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा भगवान शिव, माता पार्वती
, और उनके पुत्रों गणेश और कार्तिकेय से जुड़ी है:
- *गणेश और कार्तिकेय के बीच विवाह की प्रतियोगिता*: शिव और पार्वती के सामने यह प्रश्न आया कि उनके दोनों पुत्रों—
गणेश और कार्तिकेय—में से किसका विवाह पहले हो। उन्होंने एक शर्त रखी कि जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, उसका विवाह पहले होगा।
- *गणेश की चतुरता: कार्तिकेय तुरंत पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन गणेश ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया।
उन्होंने माता-पिता को ही विश्व का प्रतीक मानकर उनकी सात परिक्रमाएँ कीं और पूजन किया।
इससे प्रसन्न होकर शिव-पार्वती ने गणेश का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों
**सिद्धि* और *रिद्धि* से कर दिया, जिनसे उन्हें *क्षेम* और *लाभ* नामक दो पुत्र प्राप्त हुए।
- *कार्तिकेय का क्रोध: जब कार्तिकेय परिक्रमा पूरी कर लौटे, तो उन्हें गणेश के विवाह और पुत्र प्राप्ति का समाचार मिला।
क्रोधित होकर वे माता-पिता से नाराज हो गए और **क्रौंच पर्वत* पर चले गए।
- *शिव-पार्वती का पुत्र स्नेह: कार्तिकेय को मनाने के लिए शिव और पार्वती ने कई प्रयास किए, लेकिन वे नहीं माने।
अंततः, पुत्र स्नेह में व्याकुल पार्वती और शिव क्रौंच पर्वत पर गए।
कार्तिकेय ने उन्हें देखकर स्थान छोड़ दिया। तब शिव ने वहाँ **ज्योतिर्लिंग* के रूप में और पार्वती ने उनके
साथ ज्योति रूप में प्रकट होकर स्थायी निवास किया। तभी से यह स्थान *मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग* के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[]
*मान्यता: ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक **अमावस्या* को भगवान शिव और *पूर्णिमा* को माता पार्वती कार्तिकेय से मिलने श्रीशैलम आते हैं।[]
### मंदिर का महत्व
- *आध्यात्मिक महत्व: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन से भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यहाँ पूजा करने से
**अश्वमेध यज्ञ* के समान पुण्य प्राप्त होता है। महाभारत के अनुसार, श्रीशैल पर्वत के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।[]
- *शक्तिपीठ*: यह मंदिर 18 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती की ग्रीवा गिरी थी। माता पार्वती यहाँ भ्रामराम्बिका के रूप में पूजित हैं।[]
- *वास्तुकला*: मंदिर द्रविड़ और विजयनगर शैली का उत्कृष्ट नमूना है, जिसमें ऊँचे गोपुरम, विशाल आंगन,
और जटिल नक्काशी देखी जा सकती है। सातवाहन राजवंश के शिलालेखों से पता चलता है कि मंदिर का अस्तित्व दूसरी शताब्दी से है।
- *आदि शंकराचार्य का योगदान: आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर के समीप रहकर
**शिवानंद लहरी* की रचना की, जिसमें मल्लिकार्जुन और भ्रामराम्बा की स्तुति है।[]
### दर्शन और आरती समय
- *दर्शन समय*: मंदिर सुबह 4:30 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला रहता है।
- *आरती समय*:
- सुबह: 4:30 बजे (मंगला आरती), 5:30 बजे (प्रभात आरती)
- शाम: 6:00 बजे (संध्या आरती)
- रात: 9:30 बजे (शयन आरती)
### आसपास के दर्शनीय स्थल
- *पाताल गंगा*: कृष्णा नदी का पवित्र स्थल, जहाँ भक्त स्नान करते हैं। यहाँ रोपवे या सीढ़ियों से पहुँचा जा सकता है।
- *साक्षी गणपति मंदिर*: यहाँ भगवान गणेश को मल्लिकार्जुन दर्शन करने वाले भक्तों का रिकॉर्ड रखने वाला माना जाता है।[]
कदलीवनम गुफाएँ*: अक्का महादेवी की तपस्थली, जो आध्यात्मिक और रोमांचक अनुभव प्रदान करती हैं।
### यात्रा का सर्वोत्तम समय
- *मौसम*: अक्टूबर से मार्च, जब मौसम सुहावना होता है।
- *त्योहार: **महाशिवरात्रि, **श्रावण मास, और **उगादी* के दौरान मंदिर में विशेष उत्सव और मेला लगता है,
जो यात्रा को और आध्यात्मिक बनाता है।[]
### ठहरने की व्यवस्था
श्रीशैलम में लो-बजट से लेकर हाई-बजट तक के होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित धर्मशालाएँ भी किफायती विकल्प हैं।[](
### मान्यताएँ और लाभ
- यहाँ दर्शन करने से सभी दुखों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- माना जाता है कि मल्लिकार्जुन की पूजा से भक्तों की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और
उनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
7.रामेश्वरम धाम
भारत के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है
और हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
रामेश्वरम धाम के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
1. धार्मिक महत्व:
यह भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ का प्रमुख मंदिर रामनाथस्वामी मंदिर है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और पूजा की थी।
यह धाम शिवभक्तों और वैष्णवों दोनों के लिए बहुत पवित्र है।
2. रामनाथस्वामी मंदिर:
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह मंदिर अपनी लंबी गलियारों (कॉरिडोर) और शानदार द्रविड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र कुण्ड (जलकुंड) हैं, जिनमें स्नान करना पापों को धोने वाला माना जाता है।
3. धार्मिक कथा:
जब भगवान राम ने रावण का वध किया, जो एक ब्राह्मण था, तब उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के LIYE
भगवान शिव की पूजा करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने गए, लेकिन देर हो जाने पर माता सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाया
जिसे रामेश्वरम लिंग कहा जाता है।
4. अन्य दर्शनीय स्थल:
धनुषकोडी: वह स्थान जहाँ से भगवान राम ने सेतु (रामसेतु) का निर्माण किया था।
राम झूला (Adam's Bridge): यह एक प्राकृतिक रेत की श्रृंखला है जो भारत को
श्रीलंका से जोड़ती है और इसे ही रामसेतु कहा जाता है।
8.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में उज्जैन शहर में स्थित भगवान शिव का एक प्रमुख मंदिर है।
यह हिंदुओं के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
महाकालेश्वर का अर्थ है "काल (समय) के स्वामी", जो भगवान शिव का एक रूप है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थान: मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। उज्जैन प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
ज्योतिर्लिंग: मान्यता है कि यहाँ स्वयंभू (स्वयं प्रकट) ज्योतिर्लिंग है, जो भगवान शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
महाकाल का महत्व: यहाँ भगवान शिव को समय और मृत्यु का नियंत्रक माना जाता है।
मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
भस्म आरती: महाकालेश्वर मंदिर की सबसे प्रसिद्ध परंपरा है भस्म आरती, जो प्रातःकाल में होती है।
इसमें शिवलिंग को चिता की भस्म से सजाया जाता है।
यह अनुष्ठान अद्वितीय है और इसे देखने के लिए विशेष अनुमति चाहिए।उज्जैन का महत्व: उज्जैन को
मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक माना जाता है।
यहाँ हर 12 वर्ष में कुंभ मेला (सिंहस्थ) भी आयोजित होता है।पौराणिक कथा:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में भगवान शिव ने
राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी। एक कथा में, राजा चंद्रसेन के अनुरोध पर शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। एक
अन्य कथा में, चार ब्राह्मण भाइयों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ स्थायी रूप से निवास किया।मंदिर की संरचना:मंदिर का मुख्य
शिवलिंग गर्भगृह में है, जो भूमिगत स्तर पर स्थित है।मंदिर परिसर में पार्वती, गणेश,
कार्तिकेय और नागेश्वर जैसे अन्य देवताओं के मंदिर भी हैं।मंदिर का शिखर और
वास्तुकला दक्षिण भारतीय और मराठा शैली का मिश्रण है।
धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति मिलती है।
सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशेष पूजा और उत्सव होते हैं।
मंदिर में सिद्धियों और तंत्र-मंत्र से संबंधित पूजा भी की जाती है।
दर्शन और व्यवस्था:मंदिर में दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग उपलब्ध है,
विशेषकर भस्म आरती के लिए।सामान्य दर्शन सुबह और
शाम के समय खुले रहते हैं।मंदिर प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था भी की जाती है
9.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश में खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे "ओंकारेश्वर" (ॐ के स्वरूप) के नाम से जाना जाता है।
इसकी विशेषता यह है कि यहाँ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना हुआ है, जिसे स्वयंभू माना जाता है।
महत्व और पौराणिक कथा:नाम का अर्थ: "ओंकारेश्वर" का अर्थ है "ॐ का स्वामी"। यहाँ का शिवलिंग ॐ के आकार का प्रतीत होता है,
जो हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।पौराणिक कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार,
एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध के दौरान, विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ प्रकट हुए। एक अन्य कथा में,
राजा मान्धाता ने यहाँ तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ निवास किया।ममलेश्वर: ओंकारेश्वर के साथ
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी जुड़ा है, जो नर्मदा के दूसरी ओर स्थित है। दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का हिस्सा माना जाता है।
मंदिर और स्थान:मंदिर नर्मदा नदी के बीच मंधाता द्वीप पर स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा है। द्वीप का आकार ॐ जैसा दिखता है।
यहाँ नर्मदा नदी को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और श्रद्धालु स्नान कर पूजा करते हैं।मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अलावा अन्य छोटे मंदिर भी हैं,
जैसे ममलेश्वर मंदिर।धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होता है, ऐसी मान्यता है।श्रावण मास, महाशिवरात्रि,
और कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।नर्मदा परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु यहाँ अवश्य रुकते हैं।
नर्मदा नदी का सुंदर घाट और नौका विहार।पास में सिद्धनाथ मंदिर, काजल रानी गुफा, और 24
अवतार मंदिर जैसे दर्शनीय स्थल।मंधाता पहाड़ी से नर्मदा और आसपास का मनोरम दृश्य।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ की शांति और पवित्रता भक्तों को आकर्षित करती
10.त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबक शहर में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित है और गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में बसा है।
प्रमुख विशेषताएं:पौराणिक महत्व:स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार, ऋषि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या की
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।इसका नाम "त्र्यंबक"
भगवान शिव के तीन नेत्रों (त्रि-अंबक) से प्रेरित है, जो सृष्टि,
पालन और संहार का प्रतीक हैं।यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के उद्गम से जुड़ा है, जिसे दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है।
मंदिर की संरचना:मंदिर पेशवा शैली में निर्मित है, जिसमें काले पत्थरों का उपयोग किया गया है।
ज्योतिर्लिंग की खासियत यह है कि इसमें तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक हैं।
मंदिर के गर्भगृह में एक गड्ढा है, जिसमें से निरंतर जल बहता रहता है, जो शिव की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक महत्व:यहाँ नारायण नागबली और कालसर्प दोष निवारण पूजा विशेष रूप से की जाती है, जो भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
सावन माह और महाशिवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।कुंभ मेला, जो हर 12 साल में नासिक में आयोजित होता है,
त्र्यंबकेश्वर को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य:मंदिर के आसपास ब्रह्मगिरी पर्वत और गोदावरी का उद्गम स्थल (कुशावर्त कुंड) इसे एक तीर्थ और पर्यटन स्थल बनाते हैं।
कुशावर्त कुंड में स्नान को बहुत पवित्र माना जाता है।दर्शन और समय:मंदिर सुबह 5:30 बजे से
रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।विशेष पूजा और अभिषेक के लिए अग्रिम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है।
ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण स्थल है
यहाँ दर्शन करने से मन को शांति और आत्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है
11.घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पास वेरुल (एलोरा) गांव में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसे घुश्मेश्वर या कुसुमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह ज्योतिर्लिंग एक भक्त महिला कुसुमा (या घुश्मा) की तपस्या और भक्ति के कारण प्रकट हुआ।
कुसुमा अपने पति की मृत्यु के बाद भी शिव भक्ति में लीन रही। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने
इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर उसकी इच्छा पूरी की। एक अन्य कथा में, यह स्थान सुदामा और घुश्मा के पुत्र की कहानी से भी जुड़ा है,
जहां शिव ने उनके पुत्र को पुनर्जनम दिया।मंदिर का महत्व:स्थापत्य कला: घृष्णेश्वर मंदिर की वास्तुकला दक्षिण
भारतीय शैली की है, जिसमें सुंदर नक्काशी और पत्थरों का कार्य देखा जा सकता है।
यह मंदिर एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं के निकट है।धार्मिक महत्व: यह ज्योतिर्लिंग
भक्तों के लिए मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
यहां दर्शन करने से पापों का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।तीर्थ यात्रा: यह मंदिर विशेष रूप से श्रावण मास और
महाशिवरात्रि के दौरान भक्तों से भरा रहता है।स्थान और पहुंच:स्थान: वेरुल,
औरंगाबाद, महाराष्ट्र (एलोरा गुफाओं से लगभग 2 किमी दूर)।
पहुंच: औरंगाबाद रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा निकटतम हैं।
सड़क मार्ग से भी मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
विशेषता:यह बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे छोटा माना जाता है, लेकिन इसकी महिमा अत्यंत विशाल है।
मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जिसे शिवालय तीर्थ कहा जाता है।घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल
धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
12.5.बाबा बैद्यनाथ धाम,
जिसे बैजनाथ धाम या बाबा धाम के नाम से भी जाना जाता है,
झारखंड के देवघर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है।
यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।
यह मंदिर न केवल ज्योतिर्लिंग के रूप में महत्वपूर्ण है,
बल्कि शक्तिपीठ भी है, क्योंकि मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था,
जिसके कारण इसे "हृदयपीठ" भी कहा जाता है।
प्रमुख विशेषताएं:ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ:यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है
जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं।
मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ (शिवलिंग) के साथ-साथ माता पार्वती का मंदिर भी है।
शिवलिंग को "कामना लिंग" कहा जाता है,
क्योंकि यह माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार,
लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी।
उसने अपने नौ सिर शिवलिंग पर चढ़ाए और दसवां सिर चढ़ाने वाला था,
तभी शिव प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने की इच्छा जताई।
शिव ने शर्त रखी कि यदि शिवलिंग को रास्ते में
जमीन पर रखा गया, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण ने शिवलिंग को एक ग्वाले (बैजू) को सौंपा,
जो भगवान विष्णु का रूप थे। बैजू ने शिवलिंग
को जमीन पर रखकर स्थापित कर दिया, जिसके कारण यह बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस वजह से मंदिर को रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से
भी जाना जाता है।श्रावणी मेला:सावन के महीने में यहां विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला लगता है,
जिसमें लाखों कांवड़िए बिहार के सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर
105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं।
कांवड़िए "बोल बम" का जयकारा लगाते हुए यात्रा करते हैं।
कुछ कांवड़िए 24 घंटे में यात्रा पूरी करते हैं, जिन्हें "डाक बम" कहा जाता है।
मंदिर परिसर:मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ के
मुख्य मंदिर के अलावा 21 अन्य मंदिर हैं, जिनमें पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं।
मंदिर की वास्तुकला कमल के आकार की है और इसे विश्वकर्मा द्वारा निर्मित माना जाता है।
मंदिर 72 फीट ऊंचा है और
इसमें प्राचीन व आधुनिक स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है।मंदिर के शिखर पर त्रिशूल के बजाय पंचशूल लगे हैं,
जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग बनाता है। महाशिवरात्रि से पहले इन पंचशूलों को उतारकर विशेष पूजा की जाती है।
गठबंधन की परंपरा:मंदिर में एक अनूठी परंपरा है,
जिसमें बाबा बैद्यनाथ और माता पार्वती के मंदिर के शिखर को लाल धागे
(लाल रज्जु) से बांधा जाता है, जिसे "गठबंधन" या "गठजोड़वा" कहा जाता है।
यह कार्य भंडारी समाज के लोग करते हैं।
मान्यता है कि यह अनुष्ठान करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और
राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
अन्य नाम:बैद्यनाथ धाम को हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन,
और हार्दपीठ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
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1.सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम और सबसे पवित्र माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में
अरब सागर के तट पर स्थित है। इसका धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है।
निम्नलिखित विस्तृत जानकारी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में है:
### 1. *पौराणिक उत्पत्ति और नामकरण*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम चंद्र देव (सोम) से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,
चंद्र देव ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी।
शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और इस ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहाँ विराजमान होने का वचन दिया।
इसलिए इसे "सोमनाथ" (सोम का स्वामी) कहा जाता है ।
### 2. *धार्मिक महत्व*
- यह ज्योतिर्लिंग स्कंद पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में वर्णित है।
- मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है ।
- स्कंद पुराण के अनुसार, प्रलय के बाद नई सृष्टि में इसका नाम "प्राणनाथ" होगा ।
### 3. *ऐतिहासिक संघर्ष और पुनर्निर्माण*
- सोमनाथ मंदिर को इतिहास में कई बार आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया।
- वर्तमान मंदिर का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल और महारानी अहिल्याबाई होल्कर के प्रयासों से हुआ ।
- मंदिर का शिखर 150 फीट ऊँचा है और इसका कलश 10 टन वजनी है ।
### 4. *स्थापत्य कला और मंदिर की विशेषताएँ*
- मंदिर चोल शैली में बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है।
- मंदिर में तीन प्रमुख भाग हैं: गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप।
- मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं ।
### 5. *अन्य महत्वपूर्ण तथ्य*
- यहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी अंतिम लीला की थी, जिसके कारण इस स्थान को "भालका तीर्थ" भी कहा जाता है ।
- मंदिर के पास ही गीता मंदिर है, जहाँ श्रीमद्भगवद गीता के श्लोक संगमरमर के स्तंभों पर अंकित हैं ।
- यहाँ का "अबाधित समुद्री मार्ग" दक्षिण ध्रुव की ओर जाता है, जो प्राचीन भारतीय ज्ञान का प्रतीक है ।
### *निष्कर्ष*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यहाँ का दर्शन भक्तों को आध्यात्मिक शांति और दिव्य अनुभूति प्रदान करता है।
2.केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के सबसे पवित्र और प्राचीन शिवलिंगों में से एक है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित है।
यह बारह ज्योतिर्लिंगों में पाँचवें स्थान पर आता है और चार धाम तथा पंच केदार में भी शामिल है । यहाँ कुछ प्रमुख जानकारियाँ दी गई हैं:
### 1. *धार्मिक महत्व*
- केदारनाथ को "मोक्ष का द्वार" माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवनमुक्ति की प्राप्ति होती है ।
- शिवपुराण के अनुसार, बद्रीनाथ की यात्रा तभी पूर्ण मानी जाती है जब केदारनाथ के दर्शन किए जाएँ ।
- यहाँ स्थित शिवलिंग "स्वयंभू" (स्वयं प्रकट) है और इसे बैल की पीठ के आकार में पूजा जाता है ।
### 2. *पौराणिक कथा*
- महाभारत के अनुसार, पांडवों ने यहाँ शिव की तपस्या कर अपने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाई थी। शिव ने बैल का रूप धारण किया था
, और भीम ने उनकी पूँछ पकड़कर दर्शन दिए ।
- एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने यहाँ तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया था ।
### 3. *मंदिर का इतिहास और वास्तुकला*
- मंदिर का निर्माण पांडवों के पौत्र जनमेजय ने कराया था, और आदि शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार करवाया ।
- मंदिर *कत्यूरी शैली* में बना है और 6 फीट ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह 85 फीट ऊँचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है ।
- गर्भगृह में शिवलिंग के साथ गणेश, पार्वती, पांडवों और नंदी की मूर्तियाँ हैं ।
### 4. *प्राकृतिक विशेषताएँ और यात्रा*
- मंदिर *3,583 मीटर* की ऊँचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है ।
- यह अप्रैल से नवंबर तक ही खुलता है। सर्दियों में शिवलिंग को ऊखीमठ ले जाया जाता है ।
- गौरीकुंड से 16 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है, जिसमें हेलिकॉप्टर या घोड़ों की सहायता भी ली जा सकती है ।
### 5. *2013 की आपदा और पुनर्निर्माण*
- 2013 की बाढ़ और भूस्खलन में मंदिर का प्रवेश द्वार और आसपास का क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो गया,
लेकिन मुख्य गुंबद सुरक्षित रहा ।
### 6. *अन्य रोचक तथ्य*
- मंदिर के पास *भैरवनाथ* का मंदिर है, जो केदारनाथ की रक्षा करते हैं ।
- यहाँ एक अखंड दीपक हज़ारों वर्षों से जल रहा है ।
केदारनाथ की यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ का वातावरण अद्भुत शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है ।
3.केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के सबसे पवित्र और प्राचीन शिवलिंगों में से एक है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित है।
यह बारह ज्योतिर्लिंगों में पाँचवें स्थान पर आता है और चार धाम तथा पंच केदार में भी शामिल है । यहाँ कुछ प्रमुख जानकारियाँ दी गई हैं:
### 1. *धार्मिक महत्व*
- केदारनाथ को "मोक्ष का द्वार" माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवनमुक्ति की प्राप्ति होती है ।
- शिवपुराण के अनुसार, बद्रीनाथ की यात्रा तभी पूर्ण मानी जाती है जब केदारनाथ के दर्शन किए जाएँ ।
- यहाँ स्थित शिवलिंग "स्वयंभू" (स्वयं प्रकट) है और इसे बैल की पीठ के आकार में पूजा जाता है ।
### 2. *पौराणिक कथा*
- महाभारत के अनुसार, पांडवों ने यहाँ शिव की तपस्या कर अपने गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति पाई थी।
शिव ने बैल का रूप धारण किया था, और भीम ने उनकी पूँछ पकड़कर दर्शन दिए ।
- एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने यहाँ तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया था ।
### 3. *मंदिर का इतिहास और वास्तुकला*
- मंदिर का निर्माण पांडवों के पौत्र जनमेजय ने कराया था, और आदि शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार करवाया ।
- मंदिर *कत्यूरी शैली* में बना है और 6 फीट ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह 85 फीट ऊँचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है ।
- गर्भगृह में शिवलिंग के साथ गणेश, पार्वती, पांडवों और नंदी की मूर्तियाँ हैं ।
### 4. *प्राकृतिक विशेषताएँ और यात्रा*
- मंदिर *3,583 मीटर* की ऊँचाई पर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है ।
- यह अप्रैल से नवंबर तक ही खुलता है। सर्दियों में शिवलिंग को ऊखीमठ ले जाया जाता है ।
- गौरीकुंड से 16 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है, जिसमें हेलिकॉप्टर या घोड़ों की सहायता भी ली जा सकती है ।
### 5. *2013 की आपदा और पुनर्निर्माण*
- 2013 की बाढ़ और भूस्खलन में मंदिर का प्रवेश द्वार और आसपास का क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो गया, लेकिन मुख्य गुंबद सुरक्षित रहा ।
### 6. *अन्य रोचक तथ्य*
- मंदिर के पास *भैरवनाथ* का मंदिर है, जो केदारनाथ की रक्षा करते हैं ।
- यहाँ एक अखंड दीपक हज़ारों वर्षों से जल रहा है ।
केदारनाथ की यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ का वातावरण अद्भुत शांति और
आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है ।
3.काशी विश्वनाथ मंदिर
भारत के उत्तर प्रदेश में वाराणसी (काशी) में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है,
जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर बना है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, जो शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र है।
### महत्व:
- *आध्यात्मिक केंद्र*: काशी विश्वनाथ मंदिर को हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। कहा जाता है कि काशी में मृत्यु होने पर व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।
- *ज्योतिर्लिंग*: यह शिव के स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है।
- *सांस्कृतिक महत्व*: यह मंदिर भारतीय संस्कृति, कला और धर्म का प्रतीक है।
### इतिहास:
- मंदिर का मूल निर्माण बहुत प्राचीन माना जाता है, लेकिन इसे कई बार आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किया गया।
- वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 1780 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
- 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित करवाया, जिसके कारण इसे "स्वर्ण मंदिर" भी कहा जाता है।
### वास्तुकला:
- मंदिर की संरचना पारंपरिक हिंदू वास्तुकला को दर्शाती है, जिसमें सोने से मढ़ा हुआ शिखर और छोटे-छोटे गर्भगृह शामिल हैं।
- मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर भी हैं, जैसे अन्नपूर्णा मंदिर और विश्वनाथ गलियारा।
### काशी विश्वनाथ कॉरिडोर:
- हाल ही में 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया। यह परियोजना मंदिर को गंगा घाट से जोड़ती है और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं को बढ़ाती है।
- कॉरिडोर में म्यूजियम, विश्राम स्थल, और अन्य सुविधाएं शामिल हैं, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाती हैं।
### दर्शन और पूजा:
- मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। विशेष रूप से महाशिवरात्रि और सावन मास में यहां भीड़ उमड़ती है।
- मंगला आरती, भोग आरती और शयन आरती जैसे विशेष पूजन मंदिर की परंपराएं हैं।
### रोचक तथ्य:
- काशी को "शिव की नगरी" कहा जाता है, और ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं यहां निवास करते हैं।
- मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद भी है, जो ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से चर्चा में रहती है।
4.नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
यह गुजरात के द्वारका शहर के निकट दर्शन तीर्थ क्षेत्र में स्थित है। इसे "नागनाथ" या "नागेश्वर महादेव" के नाम से भी जाना जाता है।
महत्व:पौराणिक कथा: पुराणों के अनुसार, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध दारुक नामक राक्षस और उनकी पत्नी दारुकी से है।
दारुक ने शिव भक्त सुप्रिय को कैद कर लिया था। सुप्रिय की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और दारुक का वध कर सुप्रिय को मुक्त किया।
तभी से यहाँ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।यह मंदिर नकारात्मक शक्तियों और विष (सर्पदंश) से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
यहाँ शिवलिंग का आकार विशेष है, जो अन्य ज्योतिर्लिंगों से भिन्न है।स्थान और विशेषताएँ:स्थान: मंदिर द्वारका से लगभग 17 किमी दूर गोमती
द्वारका के पास समुद्र तट पर स्थित है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण भक्तों को आकर्षित करता है।
मंदिर परिसर: मंदिर में एक विशाल शिव प्रतिमा (
लगभग 25 मीटर ऊँची) स्थापित है, जो पर्यटकों और भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।विशेष पूजा: यहाँ सावन मास,
महाशिवरात्रि और अन्य शिव-पर्वों पर विशेष पूजा-अर्चना होती है। रुद्राभिषेक और बिल्वपत्र अर्पण यहाँ की प्रमुख पूजा विधियाँ हैं।
दर्शन और यात्रा:समय: मंदिर सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। आरती का समय सुबह और शाम को होता है।
यात्रा: द्वारका रेलवे स्टेशन और पोरबंदर हवाई अड्डा निकटतम यातायात साधन हैं। यहाँ से बस, टैक्सी या ऑटो से मंदिर पहुँचा जा सकता है।
आसपास के दर्शन: द्वारका में भगवान कृष्ण का द्वारकाधीश मंदिर और गोमती घाट भी दर्शनीय हैं।
विश्वास:नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों को पापों से मुक्ति, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यहाँ सच्चे मन से माँगी गई मुराद पूरी होने की मान्यता है।
5.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उनकी ज्योतिर्लिंग रूप में पूजा की जाती है।
### महत्वपूर्ण जानकारी:
1. *स्थान*: भीमाशंकर मंदिर पुणे से लगभग 100 किमी दूर खेड़ तालुका में एक घने जंगल और पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। यह भीमा नदी के उद्गम स्थल के पास है।
2. *पौराणिक कथा*:
- पुराणों के अनुसार, इस स्थान पर भगवान शिव ने राक्षस भीमासुर (कुंभकर्ण के पुत्र) का वध किया था।
भीमासुर ने तपस्या करके शिव से वरदान प्राप्त किया था, लेकिन उसने इसका दुरुपयोग किया।
तब भक्तों की रक्षा के लिए शिव ने उसे मारकर यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास किया।
- इसे शिवपुराण और अन्य ग्रंथों में "मोटेश्वर महादेव" के नाम से भी जाना जाता है।
3. *मंदिर की विशेषताएँ*:
- मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है, जिसमें प्राचीन और मध्यकालीन स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है।
- मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जो भक्तों के लिए आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है।
- मंदिर परिसर में अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जैसे नंदी मंदिर और पार्वती मंदिर।
4. *प्राकृतिक सौंदर्य*:
- भीमाशंकर एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ जैव-विविधता का केंद्र भी है।
यहाँ भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य है, जहाँ दुर्लभ प्रजातियाँ जैसे शेकरू (भारतीय विशाल गिलहरी) पाई जाती हैं।
- मॉनसून के दौरान यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और झरने आकर्षण का केंद्र होते हैं।
5. *दर्शन और उत्सव*:
- महाशिवरात्रि यहाँ का प्रमुख त्योहार है, जब लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
- श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना और अभिषेक किए जाते हैं।
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक महत्व रखता है,
बल्कि प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग उत्साहियों के लिए भी एक आदर्श गंतव्य है।
6.मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: एक परिचय
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा है। यह आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले
(पूर्व में कुरनूल जिला) में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। इसे "दक्षिण का कैलाश" भी कहा जाता है।
इस मंदिर में भगवान शिव को *मल्लिकार्जुन स्वामी* और माता पार्वती को *भ्रामराम्बिका* (या भ्रामराम्बा) के रूप में पूजा जाता है।
यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जो ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों है, क्योंकि यहाँ मा
### पौराणिक कथा
शिवपुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा भगवान शिव, माता पार्वती
, और उनके पुत्रों गणेश और कार्तिकेय से जुड़ी है:
- *गणेश और कार्तिकेय के बीच विवाह की प्रतियोगिता*: शिव और पार्वती के सामने यह प्रश्न आया कि उनके दोनों पुत्रों—
गणेश और कार्तिकेय—में से किसका विवाह पहले हो। उन्होंने एक शर्त रखी कि जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, उसका विवाह पहले होगा।
- *गणेश की चतुरता: कार्तिकेय तुरंत पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन गणेश ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया।
उन्होंने माता-पिता को ही विश्व का प्रतीक मानकर उनकी सात परिक्रमाएँ कीं और पूजन किया।
इससे प्रसन्न होकर शिव-पार्वती ने गणेश का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों
**सिद्धि* और *रिद्धि* से कर दिया, जिनसे उन्हें *क्षेम* और *लाभ* नामक दो पुत्र प्राप्त हुए।
- *कार्तिकेय का क्रोध: जब कार्तिकेय परिक्रमा पूरी कर लौटे, तो उन्हें गणेश के विवाह और पुत्र प्राप्ति का समाचार मिला।
क्रोधित होकर वे माता-पिता से नाराज हो गए और **क्रौंच पर्वत* पर चले गए।
- *शिव-पार्वती का पुत्र स्नेह: कार्तिकेय को मनाने के लिए शिव और पार्वती ने कई प्रयास किए, लेकिन वे नहीं माने।
अंततः, पुत्र स्नेह में व्याकुल पार्वती और शिव क्रौंच पर्वत पर गए।
कार्तिकेय ने उन्हें देखकर स्थान छोड़ दिया। तब शिव ने वहाँ **ज्योतिर्लिंग* के रूप में और पार्वती ने उनके
साथ ज्योति रूप में प्रकट होकर स्थायी निवास किया। तभी से यह स्थान *मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग* के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[]
*मान्यता: ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक **अमावस्या* को भगवान शिव और *पूर्णिमा* को माता पार्वती कार्तिकेय से मिलने श्रीशैलम आते हैं।[]
### मंदिर का महत्व
- *आध्यात्मिक महत्व: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन से भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यहाँ पूजा करने से
**अश्वमेध यज्ञ* के समान पुण्य प्राप्त होता है। महाभारत के अनुसार, श्रीशैल पर्वत के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।[]
- *शक्तिपीठ*: यह मंदिर 18 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती की ग्रीवा गिरी थी। माता पार्वती यहाँ भ्रामराम्बिका के रूप में पूजित हैं।[]
- *वास्तुकला*: मंदिर द्रविड़ और विजयनगर शैली का उत्कृष्ट नमूना है, जिसमें ऊँचे गोपुरम, विशाल आंगन,
और जटिल नक्काशी देखी जा सकती है। सातवाहन राजवंश के शिलालेखों से पता चलता है कि मंदिर का अस्तित्व दूसरी शताब्दी से है।
- *आदि शंकराचार्य का योगदान: आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर के समीप रहकर
**शिवानंद लहरी* की रचना की, जिसमें मल्लिकार्जुन और भ्रामराम्बा की स्तुति है।[]
### दर्शन और आरती समय
- *दर्शन समय*: मंदिर सुबह 4:30 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक और शाम 4:30 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला रहता है।
- *आरती समय*:
- सुबह: 4:30 बजे (मंगला आरती), 5:30 बजे (प्रभात आरती)
- शाम: 6:00 बजे (संध्या आरती)
- रात: 9:30 बजे (शयन आरती)
### आसपास के दर्शनीय स्थल
- *पाताल गंगा*: कृष्णा नदी का पवित्र स्थल, जहाँ भक्त स्नान करते हैं। यहाँ रोपवे या सीढ़ियों से पहुँचा जा सकता है।
- *साक्षी गणपति मंदिर*: यहाँ भगवान गणेश को मल्लिकार्जुन दर्शन करने वाले भक्तों का रिकॉर्ड रखने वाला माना जाता है।[]
कदलीवनम गुफाएँ*: अक्का महादेवी की तपस्थली, जो आध्यात्मिक और रोमांचक अनुभव प्रदान करती हैं।
### यात्रा का सर्वोत्तम समय
- *मौसम*: अक्टूबर से मार्च, जब मौसम सुहावना होता है।
- *त्योहार: **महाशिवरात्रि, **श्रावण मास, और **उगादी* के दौरान मंदिर में विशेष उत्सव और मेला लगता है,
जो यात्रा को और आध्यात्मिक बनाता है।[]
### ठहरने की व्यवस्था
श्रीशैलम में लो-बजट से लेकर हाई-बजट तक के होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित धर्मशालाएँ भी किफायती विकल्प हैं।[](
### मान्यताएँ और लाभ
- यहाँ दर्शन करने से सभी दुखों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- माना जाता है कि मल्लिकार्जुन की पूजा से भक्तों की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और
उनकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
7.रामेश्वरम धाम
भारत के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है
और हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
रामेश्वरम धाम के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
1. धार्मिक महत्व:
यह भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ का प्रमुख मंदिर रामनाथस्वामी मंदिर है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और पूजा की थी।
यह धाम शिवभक्तों और वैष्णवों दोनों के लिए बहुत पवित्र है।
2. रामनाथस्वामी मंदिर:
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह मंदिर अपनी लंबी गलियारों (कॉरिडोर) और शानदार द्रविड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर परिसर में 22 पवित्र कुण्ड (जलकुंड) हैं, जिनमें स्नान करना पापों को धोने वाला माना जाता है।
3. धार्मिक कथा:
जब भगवान राम ने रावण का वध किया, जो एक ब्राह्मण था, तब उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के LIYE
भगवान शिव की पूजा करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने गए, लेकिन देर हो जाने पर माता सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाया
जिसे रामेश्वरम लिंग कहा जाता है।
4. अन्य दर्शनीय स्थल:
धनुषकोडी: वह स्थान जहाँ से भगवान राम ने सेतु (रामसेतु) का निर्माण किया था।
राम झूला (Adam's Bridge): यह एक प्राकृतिक रेत की श्रृंखला है जो भारत को
श्रीलंका से जोड़ती है और इसे ही रामसेतु कहा जाता है।
8.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में उज्जैन शहर में स्थित भगवान शिव का एक प्रमुख मंदिर है।
यह हिंदुओं के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
महाकालेश्वर का अर्थ है "काल (समय) के स्वामी", जो भगवान शिव का एक रूप है।
प्रमुख विशेषताएँ:स्थान: मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। उज्जैन प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
ज्योतिर्लिंग: मान्यता है कि यहाँ स्वयंभू (स्वयं प्रकट) ज्योतिर्लिंग है, जो भगवान शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
महाकाल का महत्व: यहाँ भगवान शिव को समय और मृत्यु का नियंत्रक माना जाता है।
मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
भस्म आरती: महाकालेश्वर मंदिर की सबसे प्रसिद्ध परंपरा है भस्म आरती, जो प्रातःकाल में होती है।
इसमें शिवलिंग को चिता की भस्म से सजाया जाता है।
यह अनुष्ठान अद्वितीय है और इसे देखने के लिए विशेष अनुमति चाहिए।उज्जैन का महत्व: उज्जैन को
मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक माना जाता है।
यहाँ हर 12 वर्ष में कुंभ मेला (सिंहस्थ) भी आयोजित होता है।पौराणिक कथा:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में भगवान शिव ने
राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी। एक कथा में, राजा चंद्रसेन के अनुरोध पर शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। एक
अन्य कथा में, चार ब्राह्मण भाइयों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ स्थायी रूप से निवास किया।मंदिर की संरचना:मंदिर का मुख्य
शिवलिंग गर्भगृह में है, जो भूमिगत स्तर पर स्थित है।मंदिर परिसर में पार्वती, गणेश,
कार्तिकेय और नागेश्वर जैसे अन्य देवताओं के मंदिर भी हैं।मंदिर का शिखर और
वास्तुकला दक्षिण भारतीय और मराठा शैली का मिश्रण है।
धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति मिलती है।
सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशेष पूजा और उत्सव होते हैं।
मंदिर में सिद्धियों और तंत्र-मंत्र से संबंधित पूजा भी की जाती है।
दर्शन और व्यवस्था:मंदिर में दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग उपलब्ध है,
विशेषकर भस्म आरती के लिए।सामान्य दर्शन सुबह और
शाम के समय खुले रहते हैं।मंदिर प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था भी की जाती है
9.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के मध्य प्रदेश में खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है।
यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे "ओंकारेश्वर" (ॐ के स्वरूप) के नाम से जाना जाता है।
इसकी विशेषता यह है कि यहाँ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बना हुआ है, जिसे स्वयंभू माना जाता है।
महत्व और पौराणिक कथा:नाम का अर्थ: "ओंकारेश्वर" का अर्थ है "ॐ का स्वामी"। यहाँ का शिवलिंग ॐ के आकार का प्रतीत होता है,
जो हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।पौराणिक कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार,
एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध के दौरान, विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ प्रकट हुए। एक अन्य कथा में,
राजा मान्धाता ने यहाँ तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने यहाँ निवास किया।ममलेश्वर: ओंकारेश्वर के साथ
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी जुड़ा है, जो नर्मदा के दूसरी ओर स्थित है। दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का हिस्सा माना जाता है।
मंदिर और स्थान:मंदिर नर्मदा नदी के बीच मंधाता द्वीप पर स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा है। द्वीप का आकार ॐ जैसा दिखता है।
यहाँ नर्मदा नदी को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और श्रद्धालु स्नान कर पूजा करते हैं।मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अलावा अन्य छोटे मंदिर भी हैं,
जैसे ममलेश्वर मंदिर।धार्मिक महत्व:यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होता है, ऐसी मान्यता है।श्रावण मास, महाशिवरात्रि,
और कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।नर्मदा परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु यहाँ अवश्य रुकते हैं।
नर्मदा नदी का सुंदर घाट और नौका विहार।पास में सिद्धनाथ मंदिर, काजल रानी गुफा, और 24
अवतार मंदिर जैसे दर्शनीय स्थल।मंधाता पहाड़ी से नर्मदा और आसपास का मनोरम दृश्य।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ की शांति और पवित्रता भक्तों को आकर्षित करती
10.त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबक शहर में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित है और गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में बसा है।
प्रमुख विशेषताएं:पौराणिक महत्व:स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार, ऋषि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या की
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।इसका नाम "त्र्यंबक"
भगवान शिव के तीन नेत्रों (त्रि-अंबक) से प्रेरित है, जो सृष्टि,
पालन और संहार का प्रतीक हैं।यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के उद्गम से जुड़ा है, जिसे दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है।
मंदिर की संरचना:मंदिर पेशवा शैली में निर्मित है, जिसमें काले पत्थरों का उपयोग किया गया है।
ज्योतिर्लिंग की खासियत यह है कि इसमें तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक हैं।
मंदिर के गर्भगृह में एक गड्ढा है, जिसमें से निरंतर जल बहता रहता है, जो शिव की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
धार्मिक महत्व:यहाँ नारायण नागबली और कालसर्प दोष निवारण पूजा विशेष रूप से की जाती है, जो भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
सावन माह और महाशिवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।कुंभ मेला, जो हर 12 साल में नासिक में आयोजित होता है,
त्र्यंबकेश्वर को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य:मंदिर के आसपास ब्रह्मगिरी पर्वत और गोदावरी का उद्गम स्थल (कुशावर्त कुंड) इसे एक तीर्थ और पर्यटन स्थल बनाते हैं।
कुशावर्त कुंड में स्नान को बहुत पवित्र माना जाता है।दर्शन और समय:मंदिर सुबह 5:30 बजे से
रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।विशेष पूजा और अभिषेक के लिए अग्रिम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है।
ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण स्थल है
यहाँ दर्शन करने से मन को शांति और आत्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है
11.घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पास वेरुल (एलोरा) गांव में स्थित है।
यह भगवान शिव को समर्पित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसे घुश्मेश्वर या कुसुमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह ज्योतिर्लिंग एक भक्त महिला कुसुमा (या घुश्मा) की तपस्या और भक्ति के कारण प्रकट हुआ।
कुसुमा अपने पति की मृत्यु के बाद भी शिव भक्ति में लीन रही। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने
इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर उसकी इच्छा पूरी की। एक अन्य कथा में, यह स्थान सुदामा और घुश्मा के पुत्र की कहानी से भी जुड़ा है,
जहां शिव ने उनके पुत्र को पुनर्जनम दिया।मंदिर का महत्व:स्थापत्य कला: घृष्णेश्वर मंदिर की वास्तुकला दक्षिण
भारतीय शैली की है, जिसमें सुंदर नक्काशी और पत्थरों का कार्य देखा जा सकता है।
यह मंदिर एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं के निकट है।धार्मिक महत्व: यह ज्योतिर्लिंग
भक्तों के लिए मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
यहां दर्शन करने से पापों का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।तीर्थ यात्रा: यह मंदिर विशेष रूप से श्रावण मास और
महाशिवरात्रि के दौरान भक्तों से भरा रहता है।स्थान और पहुंच:स्थान: वेरुल,
औरंगाबाद, महाराष्ट्र (एलोरा गुफाओं से लगभग 2 किमी दूर)।
पहुंच: औरंगाबाद रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा निकटतम हैं।
सड़क मार्ग से भी मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
विशेषता:यह बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे छोटा माना जाता है, लेकिन इसकी महिमा अत्यंत विशाल है।
मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जिसे शिवालय तीर्थ कहा जाता है।घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल
धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
12.5.बाबा बैद्यनाथ धाम,
जिसे बैजनाथ धाम या बाबा धाम के नाम से भी जाना जाता है,
झारखंड के देवघर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है।
यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है।
यह मंदिर न केवल ज्योतिर्लिंग के रूप में महत्वपूर्ण है,
बल्कि शक्तिपीठ भी है, क्योंकि मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था,
जिसके कारण इसे "हृदयपीठ" भी कहा जाता है।
प्रमुख विशेषताएं:ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ:यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है
जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं।
मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ (शिवलिंग) के साथ-साथ माता पार्वती का मंदिर भी है।
शिवलिंग को "कामना लिंग" कहा जाता है,
क्योंकि यह माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार,
लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी।
उसने अपने नौ सिर शिवलिंग पर चढ़ाए और दसवां सिर चढ़ाने वाला था,
तभी शिव प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने की इच्छा जताई।
शिव ने शर्त रखी कि यदि शिवलिंग को रास्ते में
जमीन पर रखा गया, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण ने शिवलिंग को एक ग्वाले (बैजू) को सौंपा,
जो भगवान विष्णु का रूप थे। बैजू ने शिवलिंग
को जमीन पर रखकर स्थापित कर दिया, जिसके कारण यह बैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस वजह से मंदिर को रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से
भी जाना जाता है।श्रावणी मेला:सावन के महीने में यहां विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला लगता है,
जिसमें लाखों कांवड़िए बिहार के सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर
105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं।
कांवड़िए "बोल बम" का जयकारा लगाते हुए यात्रा करते हैं।
कुछ कांवड़िए 24 घंटे में यात्रा पूरी करते हैं, जिन्हें "डाक बम" कहा जाता है।
मंदिर परिसर:मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ के
मुख्य मंदिर के अलावा 21 अन्य मंदिर हैं, जिनमें पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं।
मंदिर की वास्तुकला कमल के आकार की है और इसे विश्वकर्मा द्वारा निर्मित माना जाता है।
मंदिर 72 फीट ऊंचा है और
इसमें प्राचीन व आधुनिक स्थापत्य कला का मिश्रण देखने को मिलता है।मंदिर के शिखर पर त्रिशूल के बजाय पंचशूल लगे हैं,
जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग बनाता है। महाशिवरात्रि से पहले इन पंचशूलों को उतारकर विशेष पूजा की जाती है।
गठबंधन की परंपरा:मंदिर में एक अनूठी परंपरा है,
जिसमें बाबा बैद्यनाथ और माता पार्वती के मंदिर के शिखर को लाल धागे
(लाल रज्जु) से बांधा जाता है, जिसे "गठबंधन" या "गठजोड़वा" कहा जाता है।
यह कार्य भंडारी समाज के लोग करते हैं।
मान्यता है कि यह अनुष्ठान करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और
राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
अन्य नाम:बैद्यनाथ धाम को हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन,
और हार्दपीठ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
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🍁 नियम एवं शर्ते🍁:-
1. अपना यात्रा कन्फर्म करने हेतु 5000 रु.स्टैण्डर्ड / 10,000 ₹ डीलक्स या 25% सहयोग राशि जमा करवाना अनिवार्य है
और बाकी शेष राशि यात्रा से 30 दिन पूर्व श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति आपने जिस संस्था में बुकिंग करायी है उस कार्यालय
संस्था में पूर्ण राशि जमा करवाना अनिवार्य होगा अन्यथा आपकी यात्रा निरस्त कर दी जायेगी।
2. यात्रा दिनांक के 2 से 5 दिन पूर्व संपूर्ण जानकारी संस्था से ले लेंगे अन्यथा इसकी जवाबदारी संस्था की नहीं रहेगी।
3. मैं अपनी स्वयं की इच्छा से बिना किसी दबाव एवं अपने पूर्ण होशो हवास के साथ श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति
इंडियन कॉफी हाउस के बगल में, टी. पी. नगर,कोरबा, छत्तीसगढ़ पिन नंबर :- 495677
के साथ यात्रा कर रहा/ रही हूँ।
4.एक माह पूर्व यात्रा निरस्त करने पर यात्रा की पूर्ण राशि का निरस्तीकरण प्रभार 10% लगेगा, यात्रा दिनांक के
15% दिन पूर्व 50% एवं 7 दिन पूर्व 75% पूर्ण राशि में काटौती होगी व यात्रा दिनांक 2 दिन पूर्व राशि वापस नहीं हो पायेगी।
वह राशि अगली यात्रा में स्थानांतरित हो जायेगी।
5. यात्रा के दौरान भोजन की व्यवस्था ट्रेन में की गई हैं। ट्रेन से बाहर यात्रा के दौरान जब कभी आप दर्शनीय स्थल पर रहेंगे
आपकी भोजन की व्यवस्था स्वयं की रहेगी।
6. 1 या 2 माह पूर्व कोई भी यात्रा की बुकिंग कराते है और किसी कारण वश आप यात्रा में नहीं जा पा रहे है।
यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
7. यात्रा करते समय आपकी अपनी ऑरिजनल आई डी. कार्ड जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, व्होटर आई डी कार्ड आदि रखना अनिर्वाय है।
अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
उपरोक्त नियम व शर्तों से मैं पूर्णता सहमत हूँ।
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𝐕𝐈𝐒𝐈𝐓 𝐊𝐄𝐃𝐀𝐑𝐍𝐀𝐓𝐇 𝐀𝐓 𝐋𝐄𝐀𝐒𝐓 𝐎𝐍𝐂𝐄 𝐈𝐍 𝐘𝐎𝐔𝐑 𝐋𝐈𝐅𝐄𝐓𝐈𝐌𝐄.
𝗔𝗗𝗗𝗥𝗘𝗦𝗦 :-
𝗜𝗡𝗗𝗜𝗔𝗡 𝗖𝗢𝗙𝗙𝗘𝗘 𝗛𝗢𝗨𝗦𝗘 𝗕𝗘𝗦𝗜𝗗𝗘
𝗧. 𝗣. 𝗡𝗔𝗚𝗔𝗥 𝗞𝗢𝗥𝗕𝗔, 𝗖𝗛𝗛𝗔𝗧𝗧𝗜𝗦𝗚𝗔𝗥𝗛, 𝗜𝗡𝗗𝗜𝗔 🇮🇳
𝗣𝗜𝗡 𝗖𝗢𝗗𝗘 :-
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