1.SHREE SOMNATH JYOTIRLING
2.TRIMURTI TEMPLE
3.AHAMDABAD ( STATUE OF UNITY- SARDAR VALLABH BHAI PATEL ) )
4.DWARKA
5.DWARIKADHISH
6.DWARIKABHENT
7.SHREE NAGESHWAR JYOTIRLING
8.GOMTI GHAT
9.RUKHMANI TEMPLE
10.PUSHKAR
11.MOUNT AABU
12.AJMER
13.JAIPUR
1. FROM :- 24-05-2025 TO 02-06-2025
2. FROM :- 10-06-2025 TO 19-06-2025
3. FROM :- 20-06-2025 TO 29-06-2025
4. FROM :- 10-09-2025 TO 19-09-2025
5. FROM :- 15-10-2025 TO 24-10-2025
:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Deboarding Stations:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Departure Train:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Drop Train:- YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
Sleeper Rate19500
AC2 Rate32500
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Flight Rate45500
द्वारिकाधीश यात्रा 2025
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1.सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम और सबसे पवित्र माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में
अरब सागर के तट पर स्थित है। इसका धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है।
निम्नलिखित विस्तृत जानकारी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में है:
### 1. *पौराणिक उत्पत्ति और नामकरण*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम चंद्र देव (सोम) से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,
चंद्र देव ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी।
शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और इस ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहाँ विराजमान होने का वचन दिया।
इसलिए इसे "सोमनाथ" (सोम का स्वामी) कहा जाता है ।
### 2. *धार्मिक महत्व*
- यह ज्योतिर्लिंग स्कंद पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में वर्णित है।
- मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है ।
- स्कंद पुराण के अनुसार, प्रलय के बाद नई सृष्टि में इसका नाम "प्राणनाथ" होगा ।
### 3. *ऐतिहासिक संघर्ष और पुनर्निर्माण*
- सोमनाथ मंदिर को इतिहास में कई बार आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया।
- वर्तमान मंदिर का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल और महारानी अहिल्याबाई होल्कर के प्रयासों से हुआ ।
- मंदिर का शिखर 150 फीट ऊँचा है और इसका कलश 10 टन वजनी है ।
### 4. *स्थापत्य कला और मंदिर की विशेषताएँ*
- मंदिर चोल शैली में बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है।
- मंदिर में तीन प्रमुख भाग हैं: गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप।
- मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं ।
### 5. *अन्य महत्वपूर्ण तथ्य*
- यहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी अंतिम लीला की थी, जिसके कारण इस स्थान को "भालका तीर्थ" भी कहा जाता है ।
- मंदिर के पास ही गीता मंदिर है, जहाँ श्रीमद्भगवद गीता के श्लोक संगमरमर के स्तंभों पर अंकित हैं ।
- यहाँ का "अबाधित समुद्री मार्ग" दक्षिण ध्रुव की ओर जाता है, जो प्राचीन भारतीय ज्ञान का प्रतीक है ।
### *निष्कर्ष*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यहाँ का दर्शन भक्तों को आध्यात्मिक शांति और दिव्य अनुभूति प्रदान करता है।
2.द्वारकाधीश
द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम है, जिसका अर्थ है "द्वारिका का राजा"।
वे द्वारिका नगरी के संस्थापक और शासक थे।गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यह मंदिर चार धामों में से एक (पश्चिम दिशा का धाम) माना जाता है।मंदिर का मुख्य आकर्षण है द्वारकाधीश की मूर्ति,
जो काले पत्थर से बनी है और भगवान कृष्ण को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाती है, जिसमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं।
यह मंदिर भक्ति, भव्यता और प्राचीन वास्तुकला का प्रतीक है।
यहाँ साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
3.द्वारिका भेंट
द्वारिका भेंट का तात्पर्य आमतौर पर द्वारिका नगरी और द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से है।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका श्रीकृष्ण द्वारा समुद्र तट पर बसाई गई थी।
महाभारत में वर्णित इस नगरी को कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद स्थापित किया था,
ताकि यदुवंशियों को जरासंध के आक्रमणों से बचाया जा सके।द्वारिका को "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता था,
क्योंकि यह समृद्धि और वैभव का केंद्र थी।
आज यह स्थान पुरातात्विक और धार्मिक महत्व का है, क्योंकि यह माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी।
द्वारिका भेंट में भक्त न केवल द्वारकाधीश मंदिर जाते हैं, बल्कि नजदीकी पवित्र स्थलों जैसे बेट द्वारिका
(एक द्वीप, जहाँ कृष्ण का प्राचीन निवास था),
गोमती नदी का तट, और रुक्मिणी मंदिर के दर्शन भी करते हैं।द्वारिका भेंट का महत्वयह यात्रा भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और
भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।यहाँ की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,
क्योंकि द्वारिका चार धामों में शामिल है।
द्वारिका की प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तट और पौराणिक महत्व इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं।
4.रुक्मिणी मंदिर
गुजरात के द्वारका शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है।
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
रुक्मिणी को भगवान कृष्ण ने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में उनकी इच्छा के विरुद्ध हरण कर विवाह किया था।
एक कथा के अनुसार, रुक्मिणी ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा के दौरान जल लेने के लिए एक ब्राह्मण को बुलाया, जिससे भगवान कृष्ण नाराज हो गए।
इससे रुक्मिणी को अलग मंदिर में रहना पड़ा, जो आज रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है।स्थापत्य और विशेषताएं:मंदिर की वास्तुकला नागर शैली में है,
जिसमें सुंदर नक्काशी और एक ऊंचा शिखर (गोपुरम) शामिल है।मंदिर में देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित है,
जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं।मंदिर परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।
धार्मिक महत्व:यह मंदिर भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक है।यहाँ विशेष रूप से विवाह और दांपत्य जीवन की
सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।एकादशी, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
अन्य रोचक तथ्य:मंदिर के पास एक कुआँ है, जिसके जल को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं,
लेकिन यह खारा है, जो एक पौराणिक श्राप से जोड़ा जाता है।
5.गोपी तालाब
गुजरात के द्वारका शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटा, प्राचीन, और पौराणिक जलाशय है,
जो हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है।
यह तालाब भगवान श्री कृष्ण और गोपियों की कथाओं से गहराई से जुड़ा है,
जिसके कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।इतिहास और
पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण वृंदावन से द्वारका आए, तो गोपियाँ,
जो उनकी भक्त और प्रेमी थीं, उनसे मिलने के लिए इस स्थान पर आई थीं।
कृष्ण से बिछड़ने का दुख सहन न कर पाने के कारण,
वे भावनाओं में अभिभूत होकर इस तालाब के पास धरती में समा गईं और कृष्ण में विलीन हो गईं।
इस घटना के बाद इस स्थान को "
गोपी तालाब" के नाम से जाना गया। तालाब के किनारे की पीली मिट्टी को "गोपी चंदन" कहा जाता है,
जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और
तिलक के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि गोपियाँ प्रत्येक पूर्णिमा को इस तालाब के किनारे
कृष्ण के साथ रासलीला करती थीं।विशेषताएँआकार और संरचना: गोपी तालाब एक छोटा लेकिन गहरा जलाशय है,
जिसके चारों ओर
पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। तालाब का पानी स्वच्छ है, और इसके किनारे छोटे मंदिर और पूजा स्थल मौजूद हैं
।वातावरण: तालाब के आसपास
हरियाली और पेड़ों की छाया इसे शांत और आध्यात्मिक बनाती है। प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार इसकी भव्यता को बढ़ाता है।
गोपी चंदन: तालाब के किनारे की पीली, नरम मिट्टी को गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है।
भक्त इसे पवित्र स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं
और इसे तिलक लगाने या पूजा में उपयोग करते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वगोपी तालाब भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और
भक्ति का प्रतीक है। यहाँ हर साल धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार आयोजित होते हैं,
जिनमें कृष्ण से जुड़े भजन और कथाएँ गाई जाती हैं।
विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। तालाब का पानी पवित्र माना जाता है,
और भक्त इसे अपने घरों में ले
जाकर पूजा में उपयोग करते हैं।ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्वइतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार,
गोपी तालाब प्राचीन काल में
बनाया गया था और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया गया है।
विभिन्न राजाओं और शासकों ने इसके रखरखाव में योगदान दिया।
द्वारका के पुरातात्विक अभियानों में तालाब के पास प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख भी मिले हैं,
जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।पर्यटनगोपी तालाब द्वारका के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है,
जो शहर से लगभग 20 किमी उत्तर में स्थित है। हाल के वर्षों में,
गुजरात सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए हैं,
जिससे यहाँ की सुविधाएँ और सौंदर्य बढ़ा है। तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ शांति, आध्यात्मिक अनुभव और
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ने के लिए आते हैं।गोपी तालाब (सूरत) से भिन्नताध्यान दें कि गुजरात के सूरत में भी एक "गोपी तालाब" है,
जो लगभग 600 वर्ष पुराना है और हाल ही में इसका सौंदर्यीकरण किया गया है। यह तालाब ऐतिहासिक है,
लेकिन द्वारका के गोपी तालाब की तरह पौराणिक या धार्मिक महत्व नहीं रखता।
निष्कर्षगोपी तालाब न केवल एक जलाशय है,
बल्कि भगवान कृष्ण और गोपियों की प्रेम-भक्ति की अमर कथा का जीवंत प्रतीक है।
यह स्थान द्वारका की तीर्थ यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो श्रद्धालुओं को
आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का अनुभव कराता है।
यदि आप द्वारका की यात्रा कर रहे हैं, तो गोपी तालाब का दर्शन अवश्य करें।
6.पुष्कर
राजस्थान, भारत में एक पवित्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है।
यह अजमेर से लगभग 15 किमी दूर अरावली पहाड़ियों के बीच बसा है।
पुष्कर हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इसे तीर्थराज (तीर्थों का राजा) कहा जाता है।
यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं:1. पुष्कर झील:पुष्कर की प्रसिद्ध झील हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र है।
मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान ब्रह्मा ने किया था।झील के चारों ओर 52 घाट हैं, जहाँ श्रद्धालु स्नान और पूजा करते हैं।
गंगा स्नान की तरह यहाँ स्नान को भी मोक्षदायी माना जाता है।कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ स्नान का विशेष महत्व है।
2. ब्रह्मा मंदिर:पुष्कर में भगवान ब्रह्मा का विश्व में एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर है। यह 14वीं शताब्दी में बना था,
हालाँकि इसका मूल ढाँचा और भी प्राचीन माना जाता है।मंदिर में ब्रह्मा, उनकी पत्नी सावित्री,
और अन्य देवताओं की मूर्तियाँ हैं।3. पुष्कर मेला:पुष्कर का वार्षिक ऊँट मेला (Pushkar Camel Fair) विश्व प्रसिद्ध है,
जो कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) में आयोजित होता है।
यह मेला पशु व्यापार, सांस्कृतिक प्रदर्शन, ऊँट दौड़, और लोक नृत्य-संगीत का अनूठा संगम है। यह पर्यटकों के लिए भी
आकर्षण का केंद्र है।4. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:पुष्कर को पंच तीर्थों में से एक माना जाता है।
यहाँ कई प्राचीन मंदिर हैं, जैसे सावित्री मंदिर, रंगजी मंदिर, और वाराह मंदिर।यह शहर योग, ध्यान,
और आयुर्वेद के लिए भी जाना जाता है, जहाँ कई आश्रम और प्रशिक्षण केंद्र हैं।
5. पर्यटन और जीवनशैली:पुष्कर का बाज़ार रंग-बिरंगे हस्तशिल्प, कपड़े,
और गहनों के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ शाकाहारी भोजन की परंपरा है, और मांस-मदिरा निषिद्ध है।
शहर का शांत और आध्यात्मिक माहौल पर्यटकों को आकर्षित करता है।
6. इतिहास और पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा ने यहाँ यज्ञ किया था,
जिसके लिए उन्होंने कमल पुष्प से झील बनाई (इसलिए नाम "पुष्कर", जिसका अर्थ है कमल)।
सावित्री के शाप के कारण ब्रह्मा की पूजा अन्य स्थानों पर कम होती है, लेकिन पुष्कर में उनकी पूजा प्रमुख है।
7. आधुनिक पुष्कर:पुष्कर अब एक वैश्विक पर्यटन स्थल है, जहाँ विदेशी और भारतीय पर्यटक आध्यात्मिकता,
संस्कृति, और रोमांच के लिए आते हैं।यहाँ कई कैफे, गेस्टहाउस, और होटल हैं, जो स्थानीय और पश्चिमी संस्कृति का मिश्रण पेश करते हैं।
कैसे पहुँचें:नजदीकी हवाई अड्डा: जयपुर (लगभग 150 किमी)नजदीकी रेलवे स्टेशन: अजमेर (15 किमी)सड़क मार्ग: जयपुर, जोधपुर,
और दिल्ली से अच्छी बस और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
पुष्कर एक ऐसा स्थान है जो आध्यात्मिकता, इतिहास, और संस्कृति का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
7.माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है,
जो अरावली पर्वतमाला में 1,722 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ठंडी जलवायु और धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
प्रमुख आकर्षण:दिलवाड़ा जैन मंदिर: 11वीं-13वीं सदी के ये मंदिर अपनी उत्कृष्ट संगमरमर की
नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।नक्की झील: यह खूबसूरत झील माउंट आबू का केंद्रबिंदु है,
जहाँ बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है।गुरु शिखर:
अरावली की सबसे ऊँची चोटी, जहाँ से मनोरम दृश्य दिखते हैं और गुरु दत्तात्रेय का मंदिर है।
सनसेट पॉइंट: सूर्यास्त के शानदार नज़ारे के लिए लोकप्रिय।अचलगढ़ किला और मंदिर: ऐतिहासिक किला और अचलेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ शिवलिंग पर प्राकृतिक जलधारा बहती है।टॉड रॉक: मेंढक जैसी आकृति वाली चट्टान,
जो पर्यटकों को आकर्षित करती है।जलवायु: गर्मियों में तापमान 20-33 डिग्री सेल्सियस
और सर्दियों में 5-15 डिग्री सेल्सियस रहता है, जो इसे साल भर घूमने के लिए उपयुक्त बनाता है।
सांस्कृतिक महत्व: माउंट आबू जैन धर्म के साथ-साथ हिंदू धार्मिक स्थलों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ कई धार्मिक उत्सव और मेले आयोजित होते हैं।कैसे पहुँचें:निकटतम रेलवे स्टेशन: आबू रोड (28 किमी दूर),
जो प्रमुख शहरों से जुड़ा है।निकटतम हवाई अड्डा: उदयपुर (185 किमी) या अहमदाबाद (235 किमी)।सड़क मार्ग:
जयपुर, उदयपुर, और अहमदाबाद से बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं।अन्य जानकारी: माउंट आबू में शराब और मांसाहार पर प्रतिबंध है,
क्योंकि यह एक धार्मिक स्थल है। यहाँ ट्रेकिंग, वन्यजीव अभयारण्य (माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी),
और शांत वातावरण का आनंद लिया जा सकता है।
8.जयपुर
राजस्थान की राजधानी और "पिंक सिटी" के नाम से प्रसिद्ध, भारत का एक ऐतिहासिक और
सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है। 1727 में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा स्थापित,
यह शहर अपनी शानदार वास्तुकला, जीवंत संस्कृति और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है।
आइए, जयपुर के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से जानते हैं:
1. इतिहासजयपुर का निर्माण आमेर के राजपूत शासक महाराजा जय सिंह द्वितीय ने किया था।
उन्होंने इसे अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया और शहर की योजना वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के
आधार पर बनाई गई। यह भारत का पहला नियोजित शहर माना जाता है, जिसे बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने डिज़ाइन किया था।
1876 में, महारानी विक्टोरिया के स्वागत में शहर को गुलाबी रंग में रंगा गया, जिसके कारण इसे "पिंक सिटी" कहा जाता है।
2. भौगोलिक स्थितिजयपुर राजस्थान के पूर्वी हिस्से में स्थित है और अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है।
यह दिल्ली से लगभग 280 किमी और आगरा से 240 किमी दूर है,
जिसके कारण यह गोल्डन ट्रायंगल (दिल्ली-आगरा-जयपुर) का हिस्सा है।
इसका क्षेत्रफल लगभग 467 वर्ग किमी है, और यह समुद्र तल से 431 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है
।3. प्रमुख दर्शनीय स्थलजयपुर अपनी शाही इमारतों, किलों और महलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
कुछ प्रमुख स्थान हैं:हवा महल: 1799 में निर्मित, यह गुलाबी बलुआ पत्थर से बना पांच मंजिला महल अपनी 953 छोटी खिड़कियों (झरोखों) के लिए प्रसिद्ध है। इसे महाराजा प्रताप सिंह ने बनवाया था ताकि शाही महिलाएं बिना देखे बाहर की गतिविधियां देख सकें।सिटी पैलेस: यह राजसी महल परिसर जयपुर के शाही परिवार का निवास स्थान रहा है। इसमें चंद्र महल, मुबारक महल और दीवान-ए-आम जैसे हिस्से हैं।
संग्रहालय में शाही वस्त्र, हथियार और चित्र प्रदर्शित हैं।जंतर मंतर: यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, यह खगोलीय वेधशाला 18वीं शताब्दी में बनाई गई थी। इसमें सूर्य घड़ी (सम्राट यंत्र) सहित कई यंत्र हैं जो समय और ग्रहों की गति मापते हैं।आमेर किला: जयपुर से 11 किमी दूर,
अरावली पहाड़ियों पर स्थित यह किला अपनी भव्यता और शीश महल (मिरर पैलेस) के लिए प्रसिद्ध है।
यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है।जल महल: मान सागर झील के बीच बना यह महल अपनी
खूबसूरत बनावट के लिए जाना जाता है।नाहरगढ़ किला: शहर के ऊपर पहाड़ी पर स्थित,
यह किला जयपुर के शानदार नज़ारे पेश करता है।
4. संस्कृति और परंपराएंजयपुर की संस्कृति राजस्थानी परंपराओं का जीवंत मिश्रण है।
यहाँ के लोग अपनी आतिथ्य सत्कार, रंगीन वेशभूषा और लोक नृत्यों (घूमर, कालबेलिया) के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहाँ की भाषा मुख्य रूप से राजस्थानी और हिंदी है। जयपुर में कई त्योहार जैसे तेज (Teej), गणगौर, और दिवाली धूमधाम से मनाए जाते हैं।
5. खानपानजयपुर का खाना राजस्थानी स्वाद का प्रतीक है।
यहाँ के प्रमुख व्यंजनों में शामिल हैं:दाल बाटी चूरमा: यह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है,
जिसमें दाल, बाटी (गेहूं की गोल रोटी) और चूरमा (मीठा पाउडर) शामिल है।लाल मास: मटन से बना तीखा और मसालेदार व्यंजन।गट्टे की सब्जी: बेसन से बनी गट्टे की करी।केर सांगरी: रेगिस्तानी सब्जी, जो सूखे केर और सांगरी से बनती है।
मिठाइयाँ: गुलाब जामुन, घेवर, और मावा कचौरी यहाँ की मशहूर मिठाइयाँ हैं।
6. हस्तशिल्प और खरीदारीजयपुर अपने हस्तशिल्प और बाजारों के लिए विश्वविख्यात है।
यहाँ के प्रमुख बाजार हैं:जौहरी बाजार:
आभूषणों और कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध।बापू बाजार: राजस्थानी जूतियाँ, कपड़े और
सजावटी सामान के लिए।चांदपोल बाजार: हस्तशिल्प और संगमरमर की मूर्तियों के लिए।
जयपुर ब्लू पॉटरी, बंधेज, सांगानेरी प्रिंट, और रत्नों (जेम्स) के लिए भी जाना जाता है।
7. जलवायुजयपुर की जलवायु अर्ध-शुष्क है। गर्मियाँ (अप्रैल-जून) में तापमान 45°C तक पहुँच सकता है,
जबकि सर्दियाँ (नवंबर-फरवरी) में तापमान 5-22°C के बीच रहता है। मानसून (जुलाई-सितंबर) में हल्की बारिश होती है।
सर्दियाँ जयपुर घूमने का सबसे अच्छा समय है।8. कनेक्टिविटीहवाई मार्ग: जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (सांगानेर) भारत के प्रमुख शहरों और कुछ अंतरराष्ट्रीय स्थानों से जुड़ा है।रेल मार्ग: जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों से
अच्छी तरह जुड़ा है।सड़क मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-48) जयपुर को दिल्ली और अन्य शहरों से जोड़ता है।9. शिक्षा और अर्थव्यवस्थाजयपुर शिक्षा का भी प्रमुख केंद्र है। यहाँ मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MNIT), राजस्थान विश्वविद्यालय,
और कई अन्य संस्थान हैं। अर्थव्यवस्था में पर्यटन, रत्न और आभूषण उद्योग,
और हस्तशिल्प का बड़ा योगदान है।10. प्रमुख आयोजनजयपुर लिटरेचर फेस्टिवल
(JLF): विश्व का सबसे बड़ा साहित्यिक उत्सव, जो हर साल जनवरी-फरवरी में आयोजित होता है
।तेज उत्सव: यहाँ का प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव, जिसमें झांकियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
11. आधुनिक जयपुरआज जयपुर एक आधुनिक शहर के रूप में भी विकसित हो रहा है। य
हाँ मॉल्स (वर्ल्ड ट्रेड पार्क, ट्राइटन मॉल), मेट्रो रेल, और आईटी हब उभर रहे हैं। फिर भी,
यह अपनी ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित रखे हुए है।
12. पर्यटन टिप्सजयपुर घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है।
स्थानीय बाजारों में सौदेबाजी करना न भूलें।राजस्थानी संस्कृति को समझने के लिए चोखी ढाणी (सांस्कृतिक ग्राम) जरूर जाएँ।
किलों और महलों में गाइड लेना बेहतर अनुभव देता है।निष्कर्षजयपुर एक ऐसा शहर है जो
इतिहास, संस्कृति, और आधुनिकता का अनूठा संगम है। यहाँ के किले, महल, बाजार,
और स्वादिष्ट व्यंजन हर पर्यटक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
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- यह ज्योतिर्लिंग स्कंद पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में वर्णित है।
- मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है ।
- स्कंद पुराण के अनुसार, प्रलय के बाद नई सृष्टि में इसका नाम "प्राणनाथ" होगा ।
### 3. *ऐतिहासिक संघर्ष और पुनर्निर्माण*
- सोमनाथ मंदिर को इतिहास में कई बार आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया।
- वर्तमान मंदिर का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल और महारानी अहिल्याबाई होल्कर के प्रयासों से हुआ ।
- मंदिर का शिखर 150 फीट ऊँचा है और इसका कलश 10 टन वजनी है ।
### 4. *स्थापत्य कला और मंदिर की विशेषताएँ*
- मंदिर चोल शैली में बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्वितीय है।
- मंदिर में तीन प्रमुख भाग हैं: गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप।
- मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं ।
### 5. *अन्य महत्वपूर्ण तथ्य*
- यहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी अंतिम लीला की थी, जिसके कारण इस स्थान को "भालका तीर्थ" भी कहा जाता है ।
- मंदिर के पास ही गीता मंदिर है, जहाँ श्रीमद्भगवद गीता के श्लोक संगमरमर के स्तंभों पर अंकित हैं ।
- यहाँ का "अबाधित समुद्री मार्ग" दक्षिण ध्रुव की ओर जाता है, जो प्राचीन भारतीय ज्ञान का प्रतीक है ।
### *निष्कर्ष*
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यहाँ का दर्शन भक्तों को आध्यात्मिक शांति और दिव्य अनुभूति प्रदान करता है।
2.द्वारकाधीश
द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम है, जिसका अर्थ है "द्वारिका का राजा"।
वे द्वारिका नगरी के संस्थापक और शासक थे।गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यह मंदिर चार धामों में से एक (पश्चिम दिशा का धाम) माना जाता है।मंदिर का मुख्य आकर्षण है द्वारकाधीश की मूर्ति,
जो काले पत्थर से बनी है और भगवान कृष्ण को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाती है, जिसमें वे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं।
यह मंदिर भक्ति, भव्यता और प्राचीन वास्तुकला का प्रतीक है।
यहाँ साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भारी भीड़ होती है।
3.द्वारिका भेंट
द्वारिका भेंट का तात्पर्य आमतौर पर द्वारिका नगरी और द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन से है।
यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारिका श्रीकृष्ण द्वारा समुद्र तट पर बसाई गई थी।
महाभारत में वर्णित इस नगरी को कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद स्थापित किया था,
ताकि यदुवंशियों को जरासंध के आक्रमणों से बचाया जा सके।द्वारिका को "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता था,
क्योंकि यह समृद्धि और वैभव का केंद्र थी।
आज यह स्थान पुरातात्विक और धार्मिक महत्व का है, क्योंकि यह माना जाता है कि प्राचीन द्वारिका समुद्र में डूब गई थी।
द्वारिका भेंट में भक्त न केवल द्वारकाधीश मंदिर जाते हैं, बल्कि नजदीकी पवित्र स्थलों जैसे बेट द्वारिका
(एक द्वीप, जहाँ कृष्ण का प्राचीन निवास था),
गोमती नदी का तट, और रुक्मिणी मंदिर के दर्शन भी करते हैं।द्वारिका भेंट का महत्वयह यात्रा भक्तों के लिए आध्यात्मिक शुद्धि और
भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।यहाँ की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है,
क्योंकि द्वारिका चार धामों में शामिल है।
द्वारिका की प्राकृतिक सुंदरता, समुद्र तट और पौराणिक महत्व इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं।
4.रुक्मिणी मंदिर
गुजरात के द्वारका शहर में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है।
यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
रुक्मिणी को भगवान कृष्ण ने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री के रूप में उनकी इच्छा के विरुद्ध हरण कर विवाह किया था।
एक कथा के अनुसार, रुक्मिणी ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा के दौरान जल लेने के लिए एक ब्राह्मण को बुलाया, जिससे भगवान कृष्ण नाराज हो गए।
इससे रुक्मिणी को अलग मंदिर में रहना पड़ा, जो आज रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है।स्थापत्य और विशेषताएं:मंदिर की वास्तुकला नागर शैली में है,
जिसमें सुंदर नक्काशी और एक ऊंचा शिखर (गोपुरम) शामिल है।मंदिर में देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित है,
जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं।मंदिर परिसर शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करता है।
धार्मिक महत्व:यह मंदिर भक्तों के लिए प्रेम, भक्ति और वैवाहिक सुख का प्रतीक है।यहाँ विशेष रूप से विवाह और दांपत्य जीवन की
सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।एकादशी, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
अन्य रोचक तथ्य:मंदिर के पास एक कुआँ है, जिसके जल को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं,
लेकिन यह खारा है, जो एक पौराणिक श्राप से जोड़ा जाता है।
5.गोपी तालाब
गुजरात के द्वारका शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटा, प्राचीन, और पौराणिक जलाशय है,
जो हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है।
यह तालाब भगवान श्री कृष्ण और गोपियों की कथाओं से गहराई से जुड़ा है,
जिसके कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।इतिहास और
पौराणिक कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण वृंदावन से द्वारका आए, तो गोपियाँ,
जो उनकी भक्त और प्रेमी थीं, उनसे मिलने के लिए इस स्थान पर आई थीं।
कृष्ण से बिछड़ने का दुख सहन न कर पाने के कारण,
वे भावनाओं में अभिभूत होकर इस तालाब के पास धरती में समा गईं और कृष्ण में विलीन हो गईं।
इस घटना के बाद इस स्थान को "
गोपी तालाब" के नाम से जाना गया। तालाब के किनारे की पीली मिट्टी को "गोपी चंदन" कहा जाता है,
जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और
तिलक के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि गोपियाँ प्रत्येक पूर्णिमा को इस तालाब के किनारे
कृष्ण के साथ रासलीला करती थीं।विशेषताएँआकार और संरचना: गोपी तालाब एक छोटा लेकिन गहरा जलाशय है,
जिसके चारों ओर
पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। तालाब का पानी स्वच्छ है, और इसके किनारे छोटे मंदिर और पूजा स्थल मौजूद हैं
।वातावरण: तालाब के आसपास
हरियाली और पेड़ों की छाया इसे शांत और आध्यात्मिक बनाती है। प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार इसकी भव्यता को बढ़ाता है।
गोपी चंदन: तालाब के किनारे की पीली, नरम मिट्टी को गोपी चंदन के नाम से जाना जाता है।
भक्त इसे पवित्र स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाते हैं
और इसे तिलक लगाने या पूजा में उपयोग करते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वगोपी तालाब भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और
भक्ति का प्रतीक है। यहाँ हर साल धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार आयोजित होते हैं,
जिनमें कृष्ण से जुड़े भजन और कथाएँ गाई जाती हैं।
विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी यहाँ बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। तालाब का पानी पवित्र माना जाता है,
और भक्त इसे अपने घरों में ले
जाकर पूजा में उपयोग करते हैं।ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्वइतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार,
गोपी तालाब प्राचीन काल में
बनाया गया था और समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण और संरक्षण किया गया है।
विभिन्न राजाओं और शासकों ने इसके रखरखाव में योगदान दिया।
द्वारका के पुरातात्विक अभियानों में तालाब के पास प्राचीन मूर्तियाँ और शिलालेख भी मिले हैं,
जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।पर्यटनगोपी तालाब द्वारका के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है,
जो शहर से लगभग 20 किमी उत्तर में स्थित है। हाल के वर्षों में,
गुजरात सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए हैं,
जिससे यहाँ की सुविधाएँ और सौंदर्य बढ़ा है। तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ शांति, आध्यात्मिक अनुभव और
कृष्ण की लीलाओं से जुड़ने के लिए आते हैं।गोपी तालाब (सूरत) से भिन्नताध्यान दें कि गुजरात के सूरत में भी एक "गोपी तालाब" है,
जो लगभग 600 वर्ष पुराना है और हाल ही में इसका सौंदर्यीकरण किया गया है। यह तालाब ऐतिहासिक है,
लेकिन द्वारका के गोपी तालाब की तरह पौराणिक या धार्मिक महत्व नहीं रखता।
निष्कर्षगोपी तालाब न केवल एक जलाशय है,
बल्कि भगवान कृष्ण और गोपियों की प्रेम-भक्ति की अमर कथा का जीवंत प्रतीक है।
यह स्थान द्वारका की तीर्थ यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो श्रद्धालुओं को
आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का अनुभव कराता है।
यदि आप द्वारका की यात्रा कर रहे हैं, तो गोपी तालाब का दर्शन अवश्य करें।
6.पुष्कर
राजस्थान, भारत में एक पवित्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है।
यह अजमेर से लगभग 15 किमी दूर अरावली पहाड़ियों के बीच बसा है।
पुष्कर हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इसे तीर्थराज (तीर्थों का राजा) कहा जाता है।
यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं:1. पुष्कर झील:पुष्कर की प्रसिद्ध झील हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र है।
मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान ब्रह्मा ने किया था।झील के चारों ओर 52 घाट हैं, जहाँ श्रद्धालु स्नान और पूजा करते हैं।
गंगा स्नान की तरह यहाँ स्नान को भी मोक्षदायी माना जाता है।कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ स्नान का विशेष महत्व है।
2. ब्रह्मा मंदिर:पुष्कर में भगवान ब्रह्मा का विश्व में एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर है। यह 14वीं शताब्दी में बना था,
हालाँकि इसका मूल ढाँचा और भी प्राचीन माना जाता है।मंदिर में ब्रह्मा, उनकी पत्नी सावित्री,
और अन्य देवताओं की मूर्तियाँ हैं।3. पुष्कर मेला:पुष्कर का वार्षिक ऊँट मेला (Pushkar Camel Fair) विश्व प्रसिद्ध है,
जो कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) में आयोजित होता है।
यह मेला पशु व्यापार, सांस्कृतिक प्रदर्शन, ऊँट दौड़, और लोक नृत्य-संगीत का अनूठा संगम है। यह पर्यटकों के लिए भी
आकर्षण का केंद्र है।4. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:पुष्कर को पंच तीर्थों में से एक माना जाता है।
यहाँ कई प्राचीन मंदिर हैं, जैसे सावित्री मंदिर, रंगजी मंदिर, और वाराह मंदिर।यह शहर योग, ध्यान,
और आयुर्वेद के लिए भी जाना जाता है, जहाँ कई आश्रम और प्रशिक्षण केंद्र हैं।
5. पर्यटन और जीवनशैली:पुष्कर का बाज़ार रंग-बिरंगे हस्तशिल्प, कपड़े,
और गहनों के लिए प्रसिद्ध है।यहाँ शाकाहारी भोजन की परंपरा है, और मांस-मदिरा निषिद्ध है।
शहर का शांत और आध्यात्मिक माहौल पर्यटकों को आकर्षित करता है।
6. इतिहास और पौराणिक कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा ने यहाँ यज्ञ किया था,
जिसके लिए उन्होंने कमल पुष्प से झील बनाई (इसलिए नाम "पुष्कर", जिसका अर्थ है कमल)।
सावित्री के शाप के कारण ब्रह्मा की पूजा अन्य स्थानों पर कम होती है, लेकिन पुष्कर में उनकी पूजा प्रमुख है।
7. आधुनिक पुष्कर:पुष्कर अब एक वैश्विक पर्यटन स्थल है, जहाँ विदेशी और भारतीय पर्यटक आध्यात्मिकता,
संस्कृति, और रोमांच के लिए आते हैं।यहाँ कई कैफे, गेस्टहाउस, और होटल हैं, जो स्थानीय और पश्चिमी संस्कृति का मिश्रण पेश करते हैं।
कैसे पहुँचें:नजदीकी हवाई अड्डा: जयपुर (लगभग 150 किमी)नजदीकी रेलवे स्टेशन: अजमेर (15 किमी)सड़क मार्ग: जयपुर, जोधपुर,
और दिल्ली से अच्छी बस और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
पुष्कर एक ऐसा स्थान है जो आध्यात्मिकता, इतिहास, और संस्कृति का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
7.माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है,
जो अरावली पर्वतमाला में 1,722 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ठंडी जलवायु और धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
प्रमुख आकर्षण:दिलवाड़ा जैन मंदिर: 11वीं-13वीं सदी के ये मंदिर अपनी उत्कृष्ट संगमरमर की
नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।नक्की झील: यह खूबसूरत झील माउंट आबू का केंद्रबिंदु है,
जहाँ बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है।गुरु शिखर:
अरावली की सबसे ऊँची चोटी, जहाँ से मनोरम दृश्य दिखते हैं और गुरु दत्तात्रेय का मंदिर है।
सनसेट पॉइंट: सूर्यास्त के शानदार नज़ारे के लिए लोकप्रिय।अचलगढ़ किला और मंदिर: ऐतिहासिक किला और अचलेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ शिवलिंग पर प्राकृतिक जलधारा बहती है।टॉड रॉक: मेंढक जैसी आकृति वाली चट्टान,
जो पर्यटकों को आकर्षित करती है।जलवायु: गर्मियों में तापमान 20-33 डिग्री सेल्सियस
और सर्दियों में 5-15 डिग्री सेल्सियस रहता है, जो इसे साल भर घूमने के लिए उपयुक्त बनाता है।
सांस्कृतिक महत्व: माउंट आबू जैन धर्म के साथ-साथ हिंदू धार्मिक स्थलों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ कई धार्मिक उत्सव और मेले आयोजित होते हैं।कैसे पहुँचें:निकटतम रेलवे स्टेशन: आबू रोड (28 किमी दूर),
जो प्रमुख शहरों से जुड़ा है।निकटतम हवाई अड्डा: उदयपुर (185 किमी) या अहमदाबाद (235 किमी)।सड़क मार्ग:
जयपुर, उदयपुर, और अहमदाबाद से बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं।अन्य जानकारी: माउंट आबू में शराब और मांसाहार पर प्रतिबंध है,
क्योंकि यह एक धार्मिक स्थल है। यहाँ ट्रेकिंग, वन्यजीव अभयारण्य (माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी),
और शांत वातावरण का आनंद लिया जा सकता है।
8.जयपुर
राजस्थान की राजधानी और "पिंक सिटी" के नाम से प्रसिद्ध, भारत का एक ऐतिहासिक और
सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है। 1727 में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा स्थापित,
यह शहर अपनी शानदार वास्तुकला, जीवंत संस्कृति और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है।
आइए, जयपुर के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से जानते हैं:
1. इतिहासजयपुर का निर्माण आमेर के राजपूत शासक महाराजा जय सिंह द्वितीय ने किया था।
उन्होंने इसे अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया और शहर की योजना वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के
आधार पर बनाई गई। यह भारत का पहला नियोजित शहर माना जाता है, जिसे बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने डिज़ाइन किया था।
1876 में, महारानी विक्टोरिया के स्वागत में शहर को गुलाबी रंग में रंगा गया, जिसके कारण इसे "पिंक सिटी" कहा जाता है।
2. भौगोलिक स्थितिजयपुर राजस्थान के पूर्वी हिस्से में स्थित है और अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है।
यह दिल्ली से लगभग 280 किमी और आगरा से 240 किमी दूर है,
जिसके कारण यह गोल्डन ट्रायंगल (दिल्ली-आगरा-जयपुर) का हिस्सा है।
इसका क्षेत्रफल लगभग 467 वर्ग किमी है, और यह समुद्र तल से 431 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है
।3. प्रमुख दर्शनीय स्थलजयपुर अपनी शाही इमारतों, किलों और महलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
कुछ प्रमुख स्थान हैं:हवा महल: 1799 में निर्मित, यह गुलाबी बलुआ पत्थर से बना पांच मंजिला महल अपनी 953 छोटी खिड़कियों (झरोखों) के लिए प्रसिद्ध है। इसे महाराजा प्रताप सिंह ने बनवाया था ताकि शाही महिलाएं बिना देखे बाहर की गतिविधियां देख सकें।सिटी पैलेस: यह राजसी महल परिसर जयपुर के शाही परिवार का निवास स्थान रहा है। इसमें चंद्र महल, मुबारक महल और दीवान-ए-आम जैसे हिस्से हैं।
संग्रहालय में शाही वस्त्र, हथियार और चित्र प्रदर्शित हैं।जंतर मंतर: यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, यह खगोलीय वेधशाला 18वीं शताब्दी में बनाई गई थी। इसमें सूर्य घड़ी (सम्राट यंत्र) सहित कई यंत्र हैं जो समय और ग्रहों की गति मापते हैं।आमेर किला: जयपुर से 11 किमी दूर,
अरावली पहाड़ियों पर स्थित यह किला अपनी भव्यता और शीश महल (मिरर पैलेस) के लिए प्रसिद्ध है।
यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है।जल महल: मान सागर झील के बीच बना यह महल अपनी
खूबसूरत बनावट के लिए जाना जाता है।नाहरगढ़ किला: शहर के ऊपर पहाड़ी पर स्थित,
यह किला जयपुर के शानदार नज़ारे पेश करता है।
4. संस्कृति और परंपराएंजयपुर की संस्कृति राजस्थानी परंपराओं का जीवंत मिश्रण है।
यहाँ के लोग अपनी आतिथ्य सत्कार, रंगीन वेशभूषा और लोक नृत्यों (घूमर, कालबेलिया) के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहाँ की भाषा मुख्य रूप से राजस्थानी और हिंदी है। जयपुर में कई त्योहार जैसे तेज (Teej), गणगौर, और दिवाली धूमधाम से मनाए जाते हैं।
5. खानपानजयपुर का खाना राजस्थानी स्वाद का प्रतीक है।
यहाँ के प्रमुख व्यंजनों में शामिल हैं:दाल बाटी चूरमा: यह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है,
जिसमें दाल, बाटी (गेहूं की गोल रोटी) और चूरमा (मीठा पाउडर) शामिल है।लाल मास: मटन से बना तीखा और मसालेदार व्यंजन।गट्टे की सब्जी: बेसन से बनी गट्टे की करी।केर सांगरी: रेगिस्तानी सब्जी, जो सूखे केर और सांगरी से बनती है।
मिठाइयाँ: गुलाब जामुन, घेवर, और मावा कचौरी यहाँ की मशहूर मिठाइयाँ हैं।
6. हस्तशिल्प और खरीदारीजयपुर अपने हस्तशिल्प और बाजारों के लिए विश्वविख्यात है।
यहाँ के प्रमुख बाजार हैं:जौहरी बाजार:
आभूषणों और कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध।बापू बाजार: राजस्थानी जूतियाँ, कपड़े और
सजावटी सामान के लिए।चांदपोल बाजार: हस्तशिल्प और संगमरमर की मूर्तियों के लिए।
जयपुर ब्लू पॉटरी, बंधेज, सांगानेरी प्रिंट, और रत्नों (जेम्स) के लिए भी जाना जाता है।
7. जलवायुजयपुर की जलवायु अर्ध-शुष्क है। गर्मियाँ (अप्रैल-जून) में तापमान 45°C तक पहुँच सकता है,
जबकि सर्दियाँ (नवंबर-फरवरी) में तापमान 5-22°C के बीच रहता है। मानसून (जुलाई-सितंबर) में हल्की बारिश होती है।
सर्दियाँ जयपुर घूमने का सबसे अच्छा समय है।8. कनेक्टिविटीहवाई मार्ग: जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (सांगानेर) भारत के प्रमुख शहरों और कुछ अंतरराष्ट्रीय स्थानों से जुड़ा है।रेल मार्ग: जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों से
अच्छी तरह जुड़ा है।सड़क मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-48) जयपुर को दिल्ली और अन्य शहरों से जोड़ता है।9. शिक्षा और अर्थव्यवस्थाजयपुर शिक्षा का भी प्रमुख केंद्र है। यहाँ मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MNIT), राजस्थान विश्वविद्यालय,
और कई अन्य संस्थान हैं। अर्थव्यवस्था में पर्यटन, रत्न और आभूषण उद्योग,
और हस्तशिल्प का बड़ा योगदान है।10. प्रमुख आयोजनजयपुर लिटरेचर फेस्टिवल
(JLF): विश्व का सबसे बड़ा साहित्यिक उत्सव, जो हर साल जनवरी-फरवरी में आयोजित होता है
।तेज उत्सव: यहाँ का प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव, जिसमें झांकियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
11. आधुनिक जयपुरआज जयपुर एक आधुनिक शहर के रूप में भी विकसित हो रहा है। य
हाँ मॉल्स (वर्ल्ड ट्रेड पार्क, ट्राइटन मॉल), मेट्रो रेल, और आईटी हब उभर रहे हैं। फिर भी,
यह अपनी ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित रखे हुए है।
12. पर्यटन टिप्सजयपुर घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है।
स्थानीय बाजारों में सौदेबाजी करना न भूलें।राजस्थानी संस्कृति को समझने के लिए चोखी ढाणी (सांस्कृतिक ग्राम) जरूर जाएँ।
किलों और महलों में गाइड लेना बेहतर अनुभव देता है।निष्कर्षजयपुर एक ऐसा शहर है जो
इतिहास, संस्कृति, और आधुनिकता का अनूठा संगम है। यहाँ के किले, महल, बाजार,
और स्वादिष्ट व्यंजन हर पर्यटक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
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वह राशि अगली यात्रा में स्थानांतरित हो जायेगी।
5. यात्रा के दौरान भोजन की व्यवस्था ट्रेन में की गई हैं। ट्रेन से बाहर यात्रा के दौरान जब कभी आप दर्शनीय स्थल पर रहेंगे
आपकी भोजन की व्यवस्था स्वयं की रहेगी।
6. 1 या 2 माह पूर्व कोई भी यात्रा की बुकिंग कराते है और किसी कारण वश आप यात्रा में नहीं जा पा रहे है।
यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
7. यात्रा करते समय आपकी अपनी ऑरिजनल आई डी. कार्ड जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, व्होटर आई डी कार्ड आदि रखना अनिर्वाय है।
अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
उपरोक्त नियम व शर्तों से मैं पूर्णता सहमत हूँ।
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