1. SHREE KEDARNATH
2. TRIYUGI NARAYAN [ Marriage place of Lord Shiva and Goddess Parvati ]
3.GUPTKASHI
4.RUDRAPRAYAG
5.DHARI DEVI
6. DEV PRAYAG
7.RISHIKESH
8. HARIDWAR
1. FROM :- 20-05-2025 TO 28-05-2025
2. FROM :- 24-05-2025 TO 01-06-2025
3. FROM :- 04-06-2025 TO 12-06-2025
4. FROM :- 17-06-2025 TO 25-06-2025
5. FROM :-14-09-2025 TO 22-09-2025
6. FROM :- 09-10-2025 TO 17-10-2025
Boarding Stations:- Will BE YOURS NEAREST RAILWAY STATION JUNCTION :-
RAIGARH (11.56), KHARSIA (12.21), SAKTI (12.36), BARADWAR (12.50), CHAMPA (13.15), JANJGIR NAILA (13.26), AKALTARA (13.40), BILASPUR Jn (14.30), PENDRA ROAD (16.15), BHATAPARA (06.30), TILDA (06.53), RAIPUR Jn (07.40), DURG (08.35), RAJ NANDGAON (08.59), DONGARGARH (09.24), ANUPPUR Jn (17.1
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Sleeper Rate13500
AC2 Rate25000
AC3 Rate22000
Flight Rate29000
एक धाम यात्रा 2025
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श्री केदारनाथ एक पवित्र अनुभव*
केदार तीर्थ यात्रा आपको एक धाम यात्रा के लिए विश्वसनीय, सुव्यवस्थित और आध्यात्मिक सेवाएं प्रदान करता है।
1. केदारनाथ धाम
केदारनाथ को चार धाम यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री)
का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:-
पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए यहाँ तपस्या की थी।
ऐसा माना जाता है कि शिव ने बैल के रूप में दर्शन दिए, और उनका कूबड़ (ज्योतिर्लिंग) यहीं प्रकट हुआ।
प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर के चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़, मंदाकिनी नदी और हिमनद (ग्लेशियर) जैसे चोराबारी ग्लेशियर इसे अनुपम बनाते हैं।
केदारनाथ न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक और साहसिक दृष्टिकोण से भी एक अनूठा गंतव्य है।
यहाँ भगवान शिव की पूजा "केदार" रूप में की जाती है।
- स्थान: मंदाकिनी नदी के किनारे, 3,583 मीटर की ऊँचाई पर।
- महत्व: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, भगवान शिव का निवास।
- आकर्षण: केदारनाथ मंदिर, भैरव नाथ मंदिर, वासुकी ताल।
2.त्रियुगीनारायण मंदिर एक प्राचीन हिंदू तीर्थस्थल है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गाँव में स्थित है।
इस मंदिर का इतिहास, पौराणिक कथाएँ और वास्तुकला हिंदू धर्म की परंपरा और मान्यताओं का गहरा परिचायक हैं।
1. धार्मिक महत्व
विष्णु समर्पित मंदिर:
मंदिर भगवान विष्णु (नारायण) को समर्पित है, जिनके साथ माता भूदेवी और लक्ष्मी विराजमान हैं।
दिव्य विवाह स्थल:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का आयोजन किया था। माना जाता है कि विवाह समारोह में भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी और विवाह के पुजारी भगवान ब्रह्मा थे।
अखंड धुनी (अखंड ज्योति):
मंदिर के सामने स्थित अग्निकुंड में एक अखण्ड ज्योति जलती रहती है, जिसे दिव्य विवाह के समय से ही माना जाता है। भक्त इसे अत्यंत पवित्र मानते हैं और पूजा के पश्चात् राख को अपने वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक समझते हैं।
2.
त्रियुगीनारायण मंदिर न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि यह भारतीय पौराणिक कथाओं, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक
विरासत का भी जीवंत प्रमाण है। भगवान विष्णु के प्रति समर्पित यह मंदिर, भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह स्थल के रूप में प्रसिद्ध है,
जहाँ अखण्ड ज्योति और पवित्र कुंडों का आकर्षण देखने योग्य है। यह तीर्थस्थल आने वाले भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति,
सौभाग्य और धार्मिक अनुभव प्रदान करता है।
इस प्रकार, त्रियुगीनारायण मंदिर का समृद्ध इतिहास और पौराणिक कथाएँ इसे एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनाती हैं।
3. गुप्तकाशी
उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित एक पवित्र तीर्थस्थल है। यह स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर केदारनाथ यात्रा के मार्ग में आने के कारण।
यहाँ गुप्तकाशी के बारे में मुख्य जानकारी दी जा रही है:
1. धार्मिक महत्त्व:
केदारनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव: गुप्तकाशी, केदारनाथ धाम से लगभग 47 किमी पहले स्थित है और अधिकतर यात्री यहीं रुकते हैं।
विश्वनाथ मंदिर: यहाँ भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है जिसे 'विश्वनाथ मंदिर' कहा जाता है। यह काशी (वाराणसी)
के विश्वनाथ मंदिर की प्रतिकृति मानी जाती है।
अर्धनारीश्वर मंदिर: यह मंदिर शिव और शक्ति के संयुक्त रूप को समर्पित है।
2. नाम का अर्थ और कथा:
‘गुप्त’ का अर्थ है ‘छुपा हुआ’ और ‘काशी’ का अर्थ है ‘तीर्थस्थल’।
मान्यता है कि पांडवों ने केदारनाथ में भगवान शिव का दर्शन पाने की कोशिश की थी, लेकिन भगवान शिव
उनसे छिपकर यहाँ आ गए थे, इसलिए इस स्थान को "गुप्तकाशी" कहा जाता है।
3. प्राकृतिक सौंदर्य:
गुप्तकाशी हिमालय की गोद में बसा हुआ है और यहाँ से चोपता, तुंगनाथ व केदारनाथ की चोटियाँ साफ दिखाई देती हैं।
यहाँ का वातावरण शांत, पवित्र और हरियाली से भरपूर है।
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में स्थित एक प्रमुख नगर और जिला मुख्यालय है।
यह स्थान धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भौगोलिक स्थिति और महत्व
रुद्रप्रयाग उन पंच प्रयागों (पाँच पवित्र संगमों) में से एक है, जहाँ अलकनंदा और मंदाकिनी नदियाँ मिलती हैं।
यह संगम स्थल हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और तीर्थयात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इस स्थान का नाम भगवान शिव के 'रुद्र' रूप पर आधारित है। मान्यता है कि नारद मुनि ने यहाँ भगवान शिव की तपस्या की थी,
जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें संगीत का ज्ञान प्रदान किया। यहाँ स्थित रुद्रनाथ मंदिर और नारद शिला इस कथा से जुड़े हुए हैं।
प्रमुख धार्मिक स्थल
रुद्रनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर संगम स्थल पर स्थित है।
4.रुद्रप्रयाग
उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में स्थित एक प्रमुख नगर और जिला मुख्यालय है। यह स्थान धार्मिक,
सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भौगोलिक स्थिति और महत्व
रुद्रप्रयाग उन पंच प्रयागों (पाँच पवित्र संगमों) में से एक है, जहाँ अलकनंदा और मंदाकिनी नदियाँ मिलती हैं।
यह संगम स्थल हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और तीर्थयात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इस स्थान का नाम भगवान शिव के 'रुद्र' रूप पर आधारित है। मान्यता है कि नारद मुनि ने यहाँ भगवान शिव की तपस्या की थी,
जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें संगीत का ज्ञान प्रदान किया। यहाँ स्थित रुद्रनाथ मंदिर और नारद शिला इस कथा से जुड़े हुए हैं।
प्रमुख धार्मिक स्थल
रुद्रनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर संगम स्थल पर स्थित है।
5.धारी देवी मंदिर:
यह मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच स्थित है और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है।
चामुंडा देवी मंदिर: यह मंदिर भी संगम स्थल पर स्थित है और देवी चामुंडा को समर्पित है।
कोटेश्वर मंदिर: यह एक प्राकृतिक गुफा में स्थित शिव मंदिर है।
कार्तिक स्वामी मंदिर: भगवान कार्तिकेय को समर्पित यह मंदिर रुद्रप्रयाग से लगभग 38 किमी दूर है और
यहाँ से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
बासुकेदार मंदिर: यह मंदिर पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है और ध्यान योग के लिए उपयुक्त स्थान है !
धारी देवी मंदिर: यह मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच स्थित है और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है।
चामुंडा देवी मंदिर: यह मंदिर भी संगम स्थल पर स्थित है और देवी चामुंडा को समर्पित है।
कोटेश्वर मंदिर: यह एक प्राकृतिक गुफा में स्थित शिव मंदिर है।
कार्तिक स्वामी मंदिर: भगवान कार्तिकेय को समर्पित यह मंदिर रुद्रप्रयाग से लगभग 38 किमी दूर है और यहाँ से
हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
बासुकेदार मंदिर: यह मंदिर पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है और ध्यान योग के लिए उपयुक्त स्थान है !.धारी देवी: उत्तराखंड की संरक्षक देवी
धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) में
अलकनंदा नदी के किनारे स्थित एक प्राचीन मंदिर है।
यह देवी काली का एक रूप मानी जाती है
और गढ़वाल क्षेत्र की संरक्षक देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
धारी देवी का इतिहास और महत्व
माना जाता है कि इस मंदिर की मूर्ति स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है और यह सदियों से इस स्थान पर विराजमान है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार,
धारी देवी दिन के समय में एक कन्या के रूप में और रात के समय में एक वृद्धा के रूप में पूजी जाती हैं।
2013 की घटना और मान्यता
2013 में, जब अलकनंदा नदी पर बनने वाले जल विद्युत परियोजना के कारण इस मंदिर की मूर्ति को हटाकर दूसरी
जगह स्थापित किया गया, तो उसी दिन उत्तराखंड में विनाशकारी बाढ़ आई, जिसे देवी का प्रकोप माना गया। इसके बाद,
प्रशासन ने मूर्ति को पुनः मंदिर में स्थापित कर दिया।
धारी देवी मंदिर का धार्मिक महत्व
देवी भक्तों को रक्षा और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
यह मंदिर चार धाम यात्रा मार्ग पर स्थित है, इसलिए हर साल हज़ारों यात्री यहां दर्शन करने आते हैं।
माना जाता है कि देवी गढ़वाल क्षेत्र की रक्षक हैं और इस क्षेत्र पर आने वाली आपदाओं को रोकती हैं।
6.देवप्रयाग
उत्तराखंड राज्य में स्थित एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जहाँ अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है।
इसी संगम के बाद यह नदी गंगा के नाम से जानी जाती है। यह स्थान हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और पंच प्रयागों
(पाँच प्रमुख संगम स्थलों) में से एक है।
देवप्रयाग का धार्मिक महत्व
यहाँ स्थित रघुनाथ मंदिर भगवान राम को समर्पित है, जो माना जाता है कि स्वयं अयोध्या के राजा रामचंद्र जी द्वारा स्थापित किया गया था।
यहाँ गंगा संगम स्नान का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे पवित्र और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
यह स्थल संतों और ऋषियों की तपोभूमि रहा है, जहाँ कई महान साधु-संतों ने ध्यान और साधना की है।
देवप्रयाग का भौगोलिक महत्व
यह स्थान समुद्र तल से लगभग 830 मीटर (2,723 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
यहाँ से हिमालय के सुंदर पर्वतीय दृश्य देखने को मिलते हैं, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
यह चार धाम यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) के मार्ग में आता है और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख पड़ाव होता है।
यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
7.ऋषिकेश
उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल और योग नगरी है। इसे "विश्व की योग राजधानी" भी कहा जाता है
क्योंकि यहाँ हर साल हजारों साधक योग और ध्यान सीखने आते हैं। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य,
आध्यात्मिकता और रोमांचक गतिविधियों का संगम है।
ऋषिकेश का महत्व
1. आध्यात्मिक केंद्र – ऋषिकेश कई प्राचीन मंदिरों, आश्रमों और संतों की तपोभूमि रहा है। त्रिवेणी घाट, परमार्थ निकेतन,
स्वर्ग आश्रम और बीटल्स आश्रम यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
2. योग और ध्यान – यहाँ अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव का आयोजन होता है, जहाँ दुनियाभर से योग प्रेमी आते हैं।
3. साहसिक खेल – ऋषिकेश भारत के सर्वश्रेष्ठ रिवर राफ्टिंग, बंजी जंपिंग और ट्रैकिंग स्थलों में से एक है।
4. गंगा आरती – हर शाम त्रिवेणी घाट पर होने वाली गंगा आरती भक्तों को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराती है।
5. संगीत और आध्यात्मिकता – प्रसिद्ध संगीत बैंड The Beatles ने यहाँ ध्यान साधना की थी, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ।
8.हरिद्वार
उत्तराखंड राज्य का एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है, जो गंगा नदी के किनारे स्थित है।
यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए आते हैं।
हरिद्वार का महत्व
1. गंगा आरती – हरिद्वार की प्रमुख आकर्षणों में से एक है हरकी पैड़ी पर होने वाली भव्य गंगा आरती।
यह धार्मिक अनुभव न केवल श्रद्धालुओं बल्कि पर्यटकों के लिए भी बहुत प्रभावशाली होता है।
2. तीर्थ स्थल – हरिद्वार का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह सप्तपुरियों में से एक है। यहाँ कई प्रमुख मंदिर जैसे माया देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर,
बिल्केश्वर महादेव मंदिर और पतंजलि आश्रम स्थित हैं।
3. पवित्र स्नान – हरिद्वार गंगा के किनारे स्थित है, और यहाँ हर साल कुंभ मेला का आयोजन होता है।
यह मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, और लाखों श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं।
4. आध्यात्मिक अनुभव – हरिद्वार में कई आश्रम, ध्यान केंद्र और योग संस्थान हैं, जहाँ लोग ध्यान और साधना के लिए आते हैं।
5. धार्मिक गतिविधियाँ – यहाँ पिंड दान, श्राद्ध और अन्य धार्मिक क्रियाएँ की जाती हैं, जो तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
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श्री केदारनाथ एक पवित्र अनुभव*
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1. केदारनाथ धाम
केदारनाथ को चार धाम यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री)
का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
इतिहास और पौराणिक कथा:-
पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए यहाँ तपस्या की थी।
ऐसा माना जाता है कि शिव ने बैल के रूप में दर्शन दिए, और उनका कूबड़ (ज्योतिर्लिंग) यहीं प्रकट हुआ।
प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर के चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़, मंदाकिनी नदी और हिमनद (ग्लेशियर) जैसे चोराबारी ग्लेशियर इसे अनुपम बनाते हैं।
केदारनाथ न केवल धार्मिक, बल्कि प्राकृतिक और साहसिक दृष्टिकोण से भी एक अनूठा गंतव्य है।
यहाँ भगवान शिव की पूजा "केदार" रूप में की जाती है।
- स्थान: मंदाकिनी नदी के किनारे, 3,583 मीटर की ऊँचाई पर।
- महत्व: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, भगवान शिव का निवास।
- आकर्षण: केदारनाथ मंदिर, भैरव नाथ मंदिर, वासुकी ताल।
2.त्रियुगीनारायण मंदिर एक प्राचीन हिंदू तीर्थस्थल है, जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गाँव में स्थित है।
इस मंदिर का इतिहास, पौराणिक कथाएँ और वास्तुकला हिंदू धर्म की परंपरा और मान्यताओं का गहरा परिचायक हैं।
1. धार्मिक महत्व
विष्णु समर्पित मंदिर:
मंदिर भगवान विष्णु (नारायण) को समर्पित है, जिनके साथ माता भूदेवी और लक्ष्मी विराजमान हैं।
दिव्य विवाह स्थल:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का आयोजन किया था। माना जाता है कि विवाह समारोह में भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी और विवाह के पुजारी भगवान ब्रह्मा थे।
अखंड धुनी (अखंड ज्योति):
मंदिर के सामने स्थित अग्निकुंड में एक अखण्ड ज्योति जलती रहती है, जिसे दिव्य विवाह के समय से ही माना जाता है। भक्त इसे अत्यंत पवित्र मानते हैं और पूजा के पश्चात् राख को अपने वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक समझते हैं।
2.
त्रियुगीनारायण मंदिर न केवल एक धार्मिक केंद्र है, बल्कि यह भारतीय पौराणिक कथाओं, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक
विरासत का भी जीवंत प्रमाण है। भगवान विष्णु के प्रति समर्पित यह मंदिर, भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह स्थल के रूप में प्रसिद्ध है,
जहाँ अखण्ड ज्योति और पवित्र कुंडों का आकर्षण देखने योग्य है। यह तीर्थस्थल आने वाले भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति,
सौभाग्य और धार्मिक अनुभव प्रदान करता है।
इस प्रकार, त्रियुगीनारायण मंदिर का समृद्ध इतिहास और पौराणिक कथाएँ इसे एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनाती हैं।
3. गुप्तकाशी
उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित एक पवित्र तीर्थस्थल है। यह स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर केदारनाथ यात्रा के मार्ग में आने के कारण।
यहाँ गुप्तकाशी के बारे में मुख्य जानकारी दी जा रही है:
1. धार्मिक महत्त्व:
केदारनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव: गुप्तकाशी, केदारनाथ धाम से लगभग 47 किमी पहले स्थित है और अधिकतर यात्री यहीं रुकते हैं।
विश्वनाथ मंदिर: यहाँ भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है जिसे 'विश्वनाथ मंदिर' कहा जाता है। यह काशी (वाराणसी)
के विश्वनाथ मंदिर की प्रतिकृति मानी जाती है।
अर्धनारीश्वर मंदिर: यह मंदिर शिव और शक्ति के संयुक्त रूप को समर्पित है।
2. नाम का अर्थ और कथा:
‘गुप्त’ का अर्थ है ‘छुपा हुआ’ और ‘काशी’ का अर्थ है ‘तीर्थस्थल’।
मान्यता है कि पांडवों ने केदारनाथ में भगवान शिव का दर्शन पाने की कोशिश की थी, लेकिन भगवान शिव
उनसे छिपकर यहाँ आ गए थे, इसलिए इस स्थान को "गुप्तकाशी" कहा जाता है।
3. प्राकृतिक सौंदर्य:
गुप्तकाशी हिमालय की गोद में बसा हुआ है और यहाँ से चोपता, तुंगनाथ व केदारनाथ की चोटियाँ साफ दिखाई देती हैं।
यहाँ का वातावरण शांत, पवित्र और हरियाली से भरपूर है।
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में स्थित एक प्रमुख नगर और जिला मुख्यालय है।
यह स्थान धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भौगोलिक स्थिति और महत्व
रुद्रप्रयाग उन पंच प्रयागों (पाँच पवित्र संगमों) में से एक है, जहाँ अलकनंदा और मंदाकिनी नदियाँ मिलती हैं।
यह संगम स्थल हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और तीर्थयात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इस स्थान का नाम भगवान शिव के 'रुद्र' रूप पर आधारित है। मान्यता है कि नारद मुनि ने यहाँ भगवान शिव की तपस्या की थी,
जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें संगीत का ज्ञान प्रदान किया। यहाँ स्थित रुद्रनाथ मंदिर और नारद शिला इस कथा से जुड़े हुए हैं।
प्रमुख धार्मिक स्थल
रुद्रनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर संगम स्थल पर स्थित है।
4.रुद्रप्रयाग
उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में स्थित एक प्रमुख नगर और जिला मुख्यालय है। यह स्थान धार्मिक,
सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भौगोलिक स्थिति और महत्व
रुद्रप्रयाग उन पंच प्रयागों (पाँच पवित्र संगमों) में से एक है, जहाँ अलकनंदा और मंदाकिनी नदियाँ मिलती हैं।
यह संगम स्थल हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और तीर्थयात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इस स्थान का नाम भगवान शिव के 'रुद्र' रूप पर आधारित है। मान्यता है कि नारद मुनि ने यहाँ भगवान शिव की तपस्या की थी,
जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें संगीत का ज्ञान प्रदान किया। यहाँ स्थित रुद्रनाथ मंदिर और नारद शिला इस कथा से जुड़े हुए हैं।
प्रमुख धार्मिक स्थल
रुद्रनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर संगम स्थल पर स्थित है।
5.धारी देवी मंदिर:
यह मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच स्थित है और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है।
चामुंडा देवी मंदिर: यह मंदिर भी संगम स्थल पर स्थित है और देवी चामुंडा को समर्पित है।
कोटेश्वर मंदिर: यह एक प्राकृतिक गुफा में स्थित शिव मंदिर है।
कार्तिक स्वामी मंदिर: भगवान कार्तिकेय को समर्पित यह मंदिर रुद्रप्रयाग से लगभग 38 किमी दूर है और
यहाँ से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
बासुकेदार मंदिर: यह मंदिर पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है और ध्यान योग के लिए उपयुक्त स्थान है !
धारी देवी मंदिर: यह मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच स्थित है और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है।
चामुंडा देवी मंदिर: यह मंदिर भी संगम स्थल पर स्थित है और देवी चामुंडा को समर्पित है।
कोटेश्वर मंदिर: यह एक प्राकृतिक गुफा में स्थित शिव मंदिर है।
कार्तिक स्वामी मंदिर: भगवान कार्तिकेय को समर्पित यह मंदिर रुद्रप्रयाग से लगभग 38 किमी दूर है और यहाँ से
हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
बासुकेदार मंदिर: यह मंदिर पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है और ध्यान योग के लिए उपयुक्त स्थान है !.धारी देवी: उत्तराखंड की संरक्षक देवी
धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) में
अलकनंदा नदी के किनारे स्थित एक प्राचीन मंदिर है।
यह देवी काली का एक रूप मानी जाती है
और गढ़वाल क्षेत्र की संरक्षक देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
धारी देवी का इतिहास और महत्व
माना जाता है कि इस मंदिर की मूर्ति स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है और यह सदियों से इस स्थान पर विराजमान है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार,
धारी देवी दिन के समय में एक कन्या के रूप में और रात के समय में एक वृद्धा के रूप में पूजी जाती हैं।
2013 की घटना और मान्यता
2013 में, जब अलकनंदा नदी पर बनने वाले जल विद्युत परियोजना के कारण इस मंदिर की मूर्ति को हटाकर दूसरी
जगह स्थापित किया गया, तो उसी दिन उत्तराखंड में विनाशकारी बाढ़ आई, जिसे देवी का प्रकोप माना गया। इसके बाद,
प्रशासन ने मूर्ति को पुनः मंदिर में स्थापित कर दिया।
धारी देवी मंदिर का धार्मिक महत्व
देवी भक्तों को रक्षा और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
यह मंदिर चार धाम यात्रा मार्ग पर स्थित है, इसलिए हर साल हज़ारों यात्री यहां दर्शन करने आते हैं।
माना जाता है कि देवी गढ़वाल क्षेत्र की रक्षक हैं और इस क्षेत्र पर आने वाली आपदाओं को रोकती हैं।
6.देवप्रयाग
उत्तराखंड राज्य में स्थित एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जहाँ अलकनंदा और भागीरथी नदियों का संगम होता है।
इसी संगम के बाद यह नदी गंगा के नाम से जानी जाती है। यह स्थान हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और पंच प्रयागों
(पाँच प्रमुख संगम स्थलों) में से एक है।
देवप्रयाग का धार्मिक महत्व
यहाँ स्थित रघुनाथ मंदिर भगवान राम को समर्पित है, जो माना जाता है कि स्वयं अयोध्या के राजा रामचंद्र जी द्वारा स्थापित किया गया था।
यहाँ गंगा संगम स्नान का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे पवित्र और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
यह स्थल संतों और ऋषियों की तपोभूमि रहा है, जहाँ कई महान साधु-संतों ने ध्यान और साधना की है।
देवप्रयाग का भौगोलिक महत्व
यह स्थान समुद्र तल से लगभग 830 मीटर (2,723 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
यहाँ से हिमालय के सुंदर पर्वतीय दृश्य देखने को मिलते हैं, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
यह चार धाम यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) के मार्ग में आता है और श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख पड़ाव होता है।
यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
7.ऋषिकेश
उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल और योग नगरी है। इसे "विश्व की योग राजधानी" भी कहा जाता है
क्योंकि यहाँ हर साल हजारों साधक योग और ध्यान सीखने आते हैं। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य,
आध्यात्मिकता और रोमांचक गतिविधियों का संगम है।
ऋषिकेश का महत्व
1. आध्यात्मिक केंद्र – ऋषिकेश कई प्राचीन मंदिरों, आश्रमों और संतों की तपोभूमि रहा है। त्रिवेणी घाट, परमार्थ निकेतन,
स्वर्ग आश्रम और बीटल्स आश्रम यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
2. योग और ध्यान – यहाँ अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव का आयोजन होता है, जहाँ दुनियाभर से योग प्रेमी आते हैं।
3. साहसिक खेल – ऋषिकेश भारत के सर्वश्रेष्ठ रिवर राफ्टिंग, बंजी जंपिंग और ट्रैकिंग स्थलों में से एक है।
4. गंगा आरती – हर शाम त्रिवेणी घाट पर होने वाली गंगा आरती भक्तों को आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराती है।
5. संगीत और आध्यात्मिकता – प्रसिद्ध संगीत बैंड The Beatles ने यहाँ ध्यान साधना की थी, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुआ।
8.हरिद्वार
उत्तराखंड राज्य का एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है, जो गंगा नदी के किनारे स्थित है।
यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए आते हैं।
हरिद्वार का महत्व
1. गंगा आरती – हरिद्वार की प्रमुख आकर्षणों में से एक है हरकी पैड़ी पर होने वाली भव्य गंगा आरती।
यह धार्मिक अनुभव न केवल श्रद्धालुओं बल्कि पर्यटकों के लिए भी बहुत प्रभावशाली होता है।
2. तीर्थ स्थल – हरिद्वार का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह सप्तपुरियों में से एक है। यहाँ कई प्रमुख मंदिर जैसे माया देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर,
बिल्केश्वर महादेव मंदिर और पतंजलि आश्रम स्थित हैं।
3. पवित्र स्नान – हरिद्वार गंगा के किनारे स्थित है, और यहाँ हर साल कुंभ मेला का आयोजन होता है।
यह मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, और लाखों श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं।
4. आध्यात्मिक अनुभव – हरिद्वार में कई आश्रम, ध्यान केंद्र और योग संस्थान हैं, जहाँ लोग ध्यान और साधना के लिए आते हैं।
5. धार्मिक गतिविधियाँ – यहाँ पिंड दान, श्राद्ध और अन्य धार्मिक क्रियाएँ की जाती हैं, जो तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
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5. यात्रा के दौरान भोजन की व्यवस्था ट्रेन में की गई हैं। ट्रेन से बाहर यात्रा के दौरान जब कभी आप दर्शनीय स्थल पर रहेंगे
आपकी भोजन की व्यवस्था स्वयं की रहेगी।
6. 1 या 2 माह पूर्व कोई भी यात्रा की बुकिंग कराते है और किसी कारण वश आप यात्रा में नहीं जा पा रहे है।
यदि आप दूसरे यात्रा में जाना चाहते हैं है / इच्छूक है तो उसकी जानकारी आपको समिति को पूर्व देनी रहेगी।
7. यात्रा करते समय आपकी अपनी ऑरिजनल आई डी. कार्ड जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, व्होटर आई डी कार्ड आदि रखना अनिर्वाय है।
अगर आप अपनी ऑरिजन्ल आई डी. कार्ड नहीं रखते है, सफर के दौरान टी.टी.ई आपको फाईन कर सकता है, ट्रेन से बाहर उतार सकता है।
इसकी पूर्ण जवाबदारी आपकी रहेगी।
8 यात्रा में सीनियर सिटीजन को पहली प्राथमिक्ता दी जावेगी। चाहे वो ट्रेन हो, बस हो या होटल / धर्मशाला हो ।
9. अ) 3 से 8 वर्ष की उम्र में बच्चों का सहयोग राशि 50% जो कुल राशि से देना होगा तथा शयन वर्थ आबंटित नहीं की जावेगी।
वरिष्ठ यात्रियों को पूर्ण सहयोग राशि देना होगा।
ब) 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों का आयु के प्रमाण पत्र के फोटो जमा करना अनिवार्य है अन्यथा पूरा टिकट लगेगा।
10. जिस यात्री का आरक्षण होगा वही यात्री यात्रा कर सकता है। उसके स्थान पर कोई भी दूसरा व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकता यात्रा पूर्णतः पूर्व निर्धारित रहेगी 1.
यात्रा के दौरान मांस, मंदिरा, धूम्रपान का सेवन पूर्णतः प्रतिबंधित है। उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करते पाये जाने पर आपकी यात्रा वहीं निरस्त कर दी जावेगी।
12. सभी यात्री अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा तथा जान माल की हिफाजत के लिये स्वयं जिम्मेदार रहेंगे, यात्रा के दौरान किसी भी तरह की आकस्मिक
दुर्घटना या नुकसान के लिए समिति जिम्मेदार नहीं होगी।
13. अपरिहार्य कारणों से यात्रा कार्यक्रम में परिवर्तन किया जा सकता है। उसमें आपको सहयोग प्रदान करना रहेगा।
14. टी बी शुगर ब्लडप्रेशर हदय रोग या अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे अकेले सफर न करें। साधारणत, अपनी दवाईयों साथ रखें।
बीच में किसी भी प्रकार कि (स्वास्थ्य सबंधी) समस्या आने पर समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी इसके लिये आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
यात्रा में सम्मिलित होने के पूर्व स्वास्थ्य संबंधी चेकअप डॉक्टर से अवश्य करा लेवें ये आपकी स्वंय की जवाबदारी रहेगी।
15. 60 से अधिक आयु के यात्री के साथ पारिवारिक यात्री सदस्य का होना अनिवार्य है। यात्रा करते समय आप चाहे तो यात्रा बीमा करवा सकते है।
उसकी राशि आपको स्वंय को वहन करनी होगी।
16. किसी भी प्रकार की विवादपूर्ण परिस्थितियों में हमें आप का सहयोग चाहिये और जो निर्णय समिति लेगी वह अंतिम व सर्वमान्य होगा।
17. समिति द्वारा दी गई समय सारिणी के 1 घंटा पूर्व आपको रेल्वे स्टेशन में उपलब्ध रहकर अपनी उपस्थिति अपने कोच प्रभारी को देना होगा।
अन्यथा समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगीं यदि स्टेशन से ट्रेन छूट जाती है, तो अगले स्टेशन में यात्री अपने सुविधानुसार यात्रा में शामिल हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हो सकता है लो समिति इसकी जिम्मेदार नहीं रहेगी। 18. यह ट्रेन आपकी है कृपया करके हमें सहयोग प्रदान करें। आप जो
समिति का राशि दे रहें है। उसके एवज में आपको ट्रेन भोजन की व्यवस्था बस की व्यवस्था व आपकी
सेवा समिति दे रहीं है कृपया करके आप भी हमें सहयोग प्रदान करें। 19. यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान शांति सौहाद्रपूर्ण एवं भक्तिमय,
भाई चारा वातावरण निर्मित कर यात्रा करें। जिससे यात्रा आनंदमय हो और आप आनंदित रहे।
20 रेल्वे प्रबंधन द्वारा हमारी समिति को 2 घंटे पूर्व ही यात्रा ट्रेन हमें प्रदान करती है जिससे हमारे समिति को ट्रेन में बिजली व पंखें पानी की स्थिति से हमें अनभिज्ञ रहते हैं
अतः यात्रा के दौरान कोई समस्या आती है तो कृपया संयम से काम लेवें इसमें समिति की किसी प्रकार की गलती नहीं रहती।
आपका समस्या का समाधान जल्द समिति द्वारा पूर्ण प्रयास किया जायेगा।
21. सभी श्रद्धालुओं को ट्रेन में बैठने के पश्चात् ही चाय नाश्ते की व्यवस्था करायी जावेगी।
22. यात्रा के दौरान ट्रेन में वैष्णव भोजन की व्यवस्था रहती है।
23. सभी यात्री को बैच रखना अनिवार्य है बैच गुमने पर संस्था से 200 रुपयें दूसरा बैच बनवा लें।
अन्यथा चेकिंग के दौरान बैच नहीं मिलने पर 300 रुपये समिति द्वारा
जुर्माना लिया जावेगा।
24. सभी भक्तजनों को हमारी समिति द्वारा सूचित किया जाता है कि भगवान के दर्शन के समय पूरा ध्यान केवल भगवान के श्री विग्रह (मूर्ति) पर ही लगायें।
जिससे दर्शन हो इसमें समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी।
25. श्री केदार तीर्थ यात्रा सेवा समिति कोरबा जानकारी हमें विज्ञापन व इष्ट मित्रों परिवार के सदस्य अन्य व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त हुआ है,
अन्य यात्रा सेवा समिति इसमें किसी भी प्रकार से दावा आपत्ति नहीं कर सकती है।
26. यदि किसी भी यात्री द्वारा चेन पुलिंग किया जाता है तो आर'पी' एफ' द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही उस यात्री पर करता है तो उसमें
समिति की जवाबदारी नहीं रहेगी कृपया करके इन सावधानियों को ध्यान देवें।
27. समिति 2 या 3 कि. मी. की दूरी के धर्मशाला या मंदिर में रहनें पर वाहनों की व्यवस्था नहीं करेगी। आप अपने स्वयं की व्यवस्था से
मंदिर दर्शन करेंगे व स्टेशन धर्मशाला पहुंचेंगे। समिति के सदस्य मंदिर तक आपके साथ में रहेंगे।
28. समिति ट्रेन व स्टेशनों (तीर्थ स्थलों) को बदल सकती है किसी भी कारण वश आप उसके लिये दावा आपत्ति नहीं कर सकतें ।
29. समिति द्वारा आप सभी भक्तजनों को मंदिर द्वारा या तीर्थ स्थल तक ले जाया जावेगा। किसी कारणवश कोई भक्तजन दशर्न से वंचित रहते है तो
समिति इसके लिये जवाबदार नहीं रहेगी !
30. यात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा, रोड का बंद हो जाना, ट्रेन कैसिल, राजनितिक व प्रसाशनिक कारणों से यात्रा अवरूध हो जाती है
उस परिस्थिती में यात्रीगण अपने होटल, लॉज और खाने में जो व्यय होगा उन्हे स्वयं करना होगा। यात्रा की अवधि या ट्रेन कैंसल की स्थिति में
अतिरिक्त राशि आप से ली जा सकती है। जब यह समस्या निर्मीत होगी ।
31. समिति स्पेशल ट्रेन / कोच के लिये रेलवे में आवेदन करती है। परन्तु किसी कारण वश रेलवे स्पेशल ट्रेन / कोच उपलब्ध नही करापाती है तो उस स्थिति अनुसार आपको रिजर्वेशन कोच में यात्रा करनी रहेगी। आप सहमति पर ही बुकिंग करायें ।
उपरोक्त नियम व शर्तों से मैं पूर्णता सहमत हूँ।
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